सन् सैंतालीस का विभाजन और शेख हसीना
सन् सैंतालीस के देश विभाजन के मामले इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी न किसी रूप में उभरते रहते हैं। इनका संबंध बांग्लादेश की शेख हसीना से हो या पाकिस्तान के नासिर हुसैन के साथ विवाह करने वाली सरबजीत कौर उर्फ नूर हुसैन के साथ, ये आए दिन पत्रकारों, बुद्धिजीवियों तथा अदालतों का ध्यान अपनी को आकर्षित करते रहते हैं। धर्म परिवर्तन करके पाकिस्तानी नासिर हुसैन से विवाह करवाने वाली सरबजीत कौर को तो लाहौर हाईकोर्ट की सहमति मिल गई, परन्तु लाल किला धमाके का मामला जल्द सुलझने वाला नहीं। बेझिझक बात करने वाले मुस्लिम राजनीतिज्ञ असदुद्दीन ओवैसी की बात सुने तो उन्होंने लाल किला के आत्मघाती बम उमर नबी के अमानवीय कृत का उचित जबाव दिया है। उन्होंने कहा है कि इस्लाम आत्महत्या को हराम मानता है और निर्दोष लोगों की हत्या को गम्भीर पाप। ओवैसी हैदराबाद से सांसद हैं और आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख भी, जो संजीदा राजनीतिज्ञ भी हैं।
लाल किला धमाके की कुछ अन्य परतें भी तरह-तरह की जानकारी दे रही हैं। इसके तार फरीदाबाद से बहुत दूर कानपुर तथा श्रीनगर से जुड़ रहे हैं। धमाके वाली कार में एक ऐसे जूते का मिलना जिसमें अमोनियम नाइट्रेट तथा टी.ए.टी.पी. के ट्रेस हैं, जांच का विषय बन चुका है। श्रीनगर से पकड़े गए जमीर बिलाल वानी का संबंध इस धमाके को अंजाम देने वाले आत्मघाती हमलावर उमर नबी से रहा होने की भी सूचना मिली है।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री के वहां के अंतर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल द्वारा सुनाई गई मौत की सज़ा का फैसला तो सैंतालीस के विभाजन से जुड़ना स्वाभाविक है। शेख हसीना इस समय भारत में शरण लिए हुए है। अब मौत की सज़ा सुनाते ही वहां की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना की प्रत्यर्पण का मुद्दा भी पूरे ज़ोर से उठाया है। भारत के लिए यह मांग मानना बिल्कुल भी संभव नहीं।
यह भी बताना ज़रूरी है कि नई दिल्ली की ढाका के साथ 2013 की प्रत्यर्पण संधि है, जो हसीना को किसी भी राजनीतिक साज़िश से सुरक्षा देती है। इस संधि की धारा 9 में कहा गया है कि अगर अपराध किसी भी राजनीतिक पहलू से जुड़ा हो तो प्रत्यर्पण से इंकार किया जा सकता है।
हसीना का प्रत्यर्पण एक जटिल और लंबी प्रक्रिया है और मौत की सज़ा ने इसकी जटिलता को और बढ़ा दिया है। भारत के लिए इसमें कानूनी और भू-राजनीतिक दोनों पहलु विचार करने योग्य हैं। शेख हसीना हमेशा भारत की अच्छी दोस्त रही हैं, जिन्होंने न सिर्फ भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों का समर्थन किया है, बल्कि कट्टरपंथी तत्वों को भी काबू में रखा है। ऐसे दोस्त को इस मुश्किल समय में अकेला छोड़ना भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि के लिए नुकसानदायक होगा।
यह तथ्य भी ध्यान मांगता है कि शेख मुजीबुर रहमान ने इस देश का प्रमुख बनने के बाद जीवन भर भारत की तरफ हमेशा सहयोग और मेल-मिलाप का हाथ बढ़ाए रखा था। अब शेख मुजीबुर रहमान का धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश मुस्लिम कट्टरपंथ के गड्ढे में गिरता प्रतीत हो रहा है, जिसके निशाने पर शेख हसीना है। इस संभावना से भी एक गंभीर खतरा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा समर्थित भारत विरोधी तत्व बांग्लादेश में एकजुट हो जाएं, जिन्हें हसीना रोक रही थी। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि ढाका में मौजूदा शासन भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति उदासीन है। वह नई दिल्ली का विरोध करने के लिए आर्थिक नुकसान उठाने के लिए भी तैयार है। इस कारण बांग्लादेश पूर्व में भारत के लिए एक खतरनाक अड्डा बनता जा रहा है। पाकिस्तान पहले ही भारत की सुरक्षा के लिए खतरा रहा है। ऐसी स्थिति में बांग्लादेश का उसके साथ मिल जाना हमारी सुरक्षा एजेंसियों के काम को और भी मुश्किल बना देगा।
यह भी सर्वविदित तथ्य है कि शेख हसीना के सख्त प्रशासन के खिलाफ चरमपंथियों द्वारा सरकार के खिलाफ एक ऐसी लहर पैदा कर दी गई जिसके कारण पूरे देश में अशांति, हत्याएं और आगज़नी की घटनाएं होने लगीं। पिछले साल 15 जुलाई से 15 अगस्त तक बांग्लादेश में पूरी तरह से हिंसक विद्रोह फैल गया, जिसे शेख हसीना ने बलपूर्वक दबाने की कोशिश की, परन्तु इसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए। आखिर यह हिंसक विद्रोह नियंत्रण में नहीं रहा, जिसके कारण शेख हसीना को 5 अगस्त, 2024 को देश छोड़ कर भारत में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसके बाद कट्टरपंथी ताकतों ने मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बना कर अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। इस तरह अप्रत्यक्ष ढंग से उन्होंने सभी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और बाद में वहां की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया। अब फरवरी 2026 में आम चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया, जिसमें प्रतिबंधित अवामी लीग को भाग लेने का कोई अधिकार नहीं। इस अंतरिम सरकार द्वारा एक विशेष अदालत बना कर हसीना और उनके दर्जनों साथियों पर मुकद्दमा चलाया गया, जिस दौरान हसीना को फांसी की सज़ा सुनाई गई।
इस फैसले से कुछ समय पहले ही अवामी लीग के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए, जो और भी तेज़ हो गए हैं। इससे एक बार फिर जहां इस देश का भविष्य अनिश्चित हो गया है, वहीं भारत के लिए भी इस मोर्चे पर एक और बड़ी चुनौती पैदा हो गई है।
जहां तक देश के विभाजन के कारण पंजाब के अवसान का संबंध है तो आज पंजाब के पास विभाजन से पहले के पंजाब की धरती का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही है। पांच नदियों की धरती अढ़ाई नदियों तक सिकुड़ गई है। लंबे समय से मामलो का हल न कर पाने के कारण राज्य लगातार घाटे में जाता दिख रहा है। इसके दर्जनों गांवों को उजाड़ कर बनाई गई राजधानी भी उसके पास नहीं है। नदियों के पानी का विवाद भी किसी तरह से हल होता दिखाई नहीं दे रहा। हाल ही में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के ढांचे में बड़े बदलाव करने से यह संस्थान भी पंजाब के हाथ से छिनता प्रतीत हो रहा है। चाहे पंजाब को हरित क्रांति का संस्थापक माना जाता रहा है, लेकिन कई कारणों से इसकी कज़र् की गठरी लगातार भारी होती गई और यहां रोज़गार के उचित मौके पैदा न होने की वजह से भारी संख्या में युवा यहां से निकलने को प्राथमिकता दे रहे हैं और बहुत-से युवा दिशाहीन होकर नशे की दलदल में फंसते जा रहे हैं।
पाकिस्तान ने भी कुछ हासिल नहीं किया है। पहले भारत और फिर बांग्लादेश के अलग होने के बाद उसने कोई तरक्की नहीं की। अधिकतर सड़कें खस्ताहाल हैं। सामान बेचने वाले सड़कों के किनारे बैठ कर पौनी सदी पहले की तरह तम्बू लगा कर सामान बेच रहे हैं। दूसरी ओर बांग्लादेश की मौजूदा राजनीति सैन्य शासकों से किस तरह के काम करवाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
अंतिका
(टीन एन. राज़)
उर्दु का मुहाफिज़ है हिन्दु ना मुसलमा ही
बेगोद से बच्चे को अब किस ने उठाना है।



