गुरु जी का संदेश
इन दिनों गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी वर्ष बहुत ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इसके साथ ही गुरु जी के महान अनुयायियों, भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी की शहादत के लिए भी श्रद्धा के पुष्प भेंट किए जा रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और देश-विदेश में इन महान कुर्बानियों को नमन किया जा रहा है। किसी भी देश के इतिहास में कई बार कुछ ऐसा घटित हो जाता है, जिसकी याद हमेशा मन में उकर जाती है। गुरु साहिब और उनके साथियों की शहादत का वर्णन भी भारतीय इतिहास में ऐसे शब्दों में लिखा गया है, जो हमेशा के लिए मन में उकेरे गए हैं और सदैव के लिए बन चुके हैं। गुरु जी का जन्म वर्ष 1621 ई. में हुया था और उन्हें औरंगज़ेब के आदेश से वर्ष 1675 में शहीद कर दिया गया था। इस तरह वह मानवीय जीवन में 54 वर्ष ही रहे परन्तु अपनी हयाती में जिस तरह उन्होंने समय व्यतीत किया वह बेहद उत्साहपूर्ण और मार्ग-दर्शन करने वाला था।
वह महान गुरु हरगोबिंद साहिब जी के सबसे छोटे पुत्र थे। प्रारंभिक समय उन्होंने कीरतपुर साहिब में अपने पिता जी के साथ व्यतीत किया। बाद में वह बाबा बकाला आ गए और गुरु की पदवी प्राप्त करने के उपरांत वह फिर कीरतपुर साहिब और अपने बसाये नगर (अब आनंदपुर साहिब) में आ गए, जहां से चल कर उन्होंने समय की साम्प्रदायिक हुकूमत को ललकारा और मानवीय हकों के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी ने उनकी वाणी आदि ग्रंथ में शामिल की। इस इलाही वाणी के 59 शब्द और 57 श्लोक गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं, जो आज तक श्रद्धालुओं के मन को समर्पण और उत्साह की भावनाओं से सरोबार कर रहे हैं। गुरु जी को अनेक प्रवचनों के साथ याद किया जाता है। उन्हें ‘हिन्द की चादर’ भी कहा जाता है और ‘शहीदों के सरताज’ भी और गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुसार
तिलक जंजु राखा प्रभ ता का।।
और
सीसु दीया पर सिररु न दीया।
की उत्तम भावनाओं के साथ भी याद किया जाता है। नि:संदेह उनके जीवन पर दृष्टिपात करते और वाणी पढ़ते उसमें से त्याग, परोपकार, साधना, दया और वैराग्य के भाव मन में उतर जाते हैं।
उन्होंने देश में लगभग 19 वर्ष तक यात्राएं कीं और अहंकार, लालसा के शब्दों की भावनाएं त्याग करके सब्र, संतोष और निरलेपता की भावनाओं को मन में बसाने की प्रेरणा दी। उन्होंने सिख सिद्धांतों के अनुसार क्रियात्मक रूप में संगत और पंगत की प्रथा को लगातार कायम रखा। अपने जीवन काल में उन्होंने अपनी सोच और भावनाओं को और भी निखार देने के लिए उदासीयों, ब्राह्मणों, बोद्धियों, जोगियों और स़ूिफयों के साथ लगातार संवाद जारी रखा। किरत करो, नाम जपो और वंड छको के सिद्धांतों का उन्होंने देश में प्रचार किया, जो आज भी श्रद्धालुओं के मन में उनके प्रति श्रद्धा और वैराग्य की भावना पैदा करते हैं।
सदियों पहले एक ऐसी अज़ीम शख्सियत का धरती पर आना एक ऐसा सुअवसर था, जो आज तक भी मन को रौशन कर रहा है। हम गुरु जी की शख्सियत और उनकी महान कुर्बानी को अपनी अकीदत के पुष्प भेंट करते हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास को चेतना और अमलों के रूप में एक नये मोड़ पर ला खड़ा किया था।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

