दोस्ती की मिलकर लिखेंगे नई कहानी
भारत-रूस दोस्ती काफी पुरानी है परन्तु नये दौर में दोनों मुल्क भारत और रूस नई कहानी लिखने को तैयार हैं। इन पांच वर्षों में (2025-2030) 9 लाख करोड़ का ट्रेड होने वाला है। यह नया अध्याय है। दोनों देशों ने 2030 तक नया रोड मैप तैयार करने का संकल्प लिया है। जिसके तहत ट्रेड को 9 लाख करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आगमन पर द्विपक्षीय वार्ता में आशा प्रकट की कि 9 लाख करोड़ का ट्रेड समय रहते ही पूरा कर लिया जाएगा।
इधर दुनिया बदल रही है उधर दोस्ती का पुराना दावा और मज़बूत हो रहा है। दुनिया की तस्वीर जल्दी से बदल रही है। एक साल भी नहीं गुजरा जब विश्व-व्यवस्था बहुपक्षीयता, आपसी व्यवहार, आपसी व्यापार, आर्थिक निर्भरता और जलवायु सुधार के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर थी, परन्तु लाल सागर संकट, इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध और अन्य द्विपक्षीय टकरावों तथा आंतरिक अस्थिरताओं के कारण दुनिया ने अपने-अपने रास्ते चुन लेने का विकल्प अपनाया था। 2025 में अमरीकन टैरिफ नीति से काफी दबाव दृष्टिगोचर हुए। ग्लोबल ट्रेड अस्थिर हुआ जिससे देशों की अर्थ-व्यवस्था प्रभावित हुई। अमरीका ने इयू, क्वाड, ब्रिक्स, एस.सी.ओ., जी-20 जैसे ढांचों को प्रभावित करने की कोशिश की। लिहाज़ा व्यापार समीकरण बदले, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की पुनर्समीक्षा करने का अवसर भी बना। वैश्वीकरण के दौर में जिन्हें अप्रासंगिक माना गया, उनका भी दोबारा विश्लेषण हुआ।
अमरीका के भारत पर टैरिफ लगाने का मुख्य कारण भारत का रूस से कच्चा तेल लेना है। उसका दावा रहा कि भारत का कच्चे तेल का आयात रूस-यूक्रेन युद्ध को प्रभावित कर रहा है इसलिए भारत पर अधिक टैरिफ लगाने की ज़रूरत है। इसे बहुत समझदारी वाला फैसला नहीं माना गया। दो स्वतंत्र देशों के आर्थिक संबंध अपने-अपने देश की परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। इनमें भारत का रूस से रिश्ता ऐतिहासिक है। स्मरण रहे कि भारत-रूस के राजनीतिक रिश्ते 1947 में ही स्थापित हो गए थे। भारत की आज़ादी से पहले। एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में रूस ने स्वत्रंतता के बाद भारत के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
अब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया है कि भारत और रूस में स्किल्ड लेबर मोबिलिटी पर भी करार हुआ है। इसके तहत भारत के स्किल्ड कामगार अस्थाई तौर पर काम के लिए रूस जा सकेंगे। मोदी ने पुतिन से इसरार किया कि रूसी सेना में काम कर रहे भारतीयों की वापसी हो। जोकि एक अच्छा कदम है। रूस ने भारत को न केवल आर्थिक सहयोग दिया है, अपितु संकट के समय भारत का पक्ष लिया है। उन्होंने यू.एन. सुरक्षा परिषद् में कई बार भारत के पक्ष में वीटो किया है। 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में भारत का साथ दिया। जबकि उस समय पाकिस्तान को अमरीका और चीन का समर्थन प्राप्त था। रूस ने दोनों देशों के बीच युद्ध को रोकने और शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थता की। 1966 के ताशकंद समझौते में रूस की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। 1971 की शांति, दोस्ती और सहयोग के आधार पर इस संबंध को औपचारिक मज़बूती प्रदान करने का कदम माना गया। अक्तूबर 2000 में रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान इसे विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का दर्जा दिया गया। मास्को में हुए 22वें शिखर सम्मेलन में भारत-रूस स्थायी व विस्तृत साझेदारी शीर्षक से संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ था। इस बार पुतिन का 23वें समिट के लिए दिल्ली आगमन हुआ है। जब दो देश साफ मन से एक-दूसरे को सहयोग देने पर आते हैं तो दोनों देशों की जनता को मानसिक शांति, गर्व और तसल्ली मिलती है।
वह एक नाज़ुक समय था जब अमरीका ने भारत पर टैरिफ की हाई वोल्टेज लगाकर भारत को दबाव में लाने की कोशिश की। तब भी रूस से पुतिन की आवाज़ भारत के पक्ष में आई। अमरीका की रूस से तेल खरीद कर युद्ध में रूस की सहायता का आरोप लगाया था। तब भी भारत और रूस ऐसे प्रश्न के प्रति लापरवाह रहे और दोस्ती के पथ पर आगे बढ़ते चले गये। इस मित्रता पर भारत-रूस को गर्व है, लेकिन पड़ोसी देश की आंख मैली होती चली। यह पुरानी दोस्ती है जो बेहतर भविष्य के लिए रास्ते खोल रही है।



