किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसली विभिन्नता ज़रूरी

देश में पंजाब के किसान बहुत खुशहाल माने जाते रहे हैं, परन्तु फसलों की पैदावार बढ़ने के बावजूद अब वे सभी राज्यों के किसानों से अधिक ऋणी हो गए हैं। संयुक्त परिवार टूटने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी खेत छोटे होते गए, जिससे उनका गुज़ारा कठिन हो गया है। पंजाब के कुल भौगोलिक रकबे में से लगभग 41-42 लाख हेक्टेयर रकबा कृषि के अधीन है, जिसके बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है। किसानों को फसलों के दाम स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार नहीं मिल रहे और कृषि का खर्च बढ़ रहा है। 
विगत 30-35 वर्षों से धान-गेहूं का फसली चक्र प्रधान है। धान की काश्त का रकबा कम करके फसली विभिन्नता लाने के प्रयास सफल नहीं हो सके। धान की काश्त का रकबा 32 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया और धान के लिए पानी की ज़रूरत ज़्यादा होने के कारण सबमर्सिबल पम्प लगाकर सिंचाई करने से किसानों का खर्च बढ़ गया। किसान खाद, बीज आदि दुकानदारों, आढ़तियों और व्यापारियों से खरीदते हैं और उनकी सलाह से ही कृषि करते हैं। ये लोग किसानों को कृषि वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों के संपर्क से वंचित रखते हैं, जैसे पीएयू के विशेषज्ञों द्वारा गेहूं में यूरिया 110 किलो तथा डीएपी 55 किलो प्रति एकड़ डालने की सिफारिश की गई है, परन्तु किसान यूरिया 180 किलो तथा डीएपी 100 किलो प्रति एकड़ तक डाल रहे हैं। इससे ज़मीन की उपजाऊ शक्ति कम हो गई है तथा कीड़े-मकौड़ों तथा बीमारियों के हमले बढ़ रहे हैं। किसानों का कीटनाशकों और स्प्रे पर खर्च बढ़ने लगा है। 
फसली विभिन्नता लाने के लिए किसानों को योग्य फसलों की किस्में उपलब्ध नहीं हो रहीं, जो खरीफ के मौसम में धान जितना मुनाफा दे सकें। कृषि का विकास किसानों की खुशहाली के लिए बहुत अहम है क्योंकि पंजाब में लगभग 55 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं। राज्य की आर्थिकता कृषि पर निर्भर है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए फसली विभिन्नता ज़रूरी है। इसमें फलों और सब्ज़ियों की काश्त की विशेष भूमिका है। फलों की काश्त के अधीन 98,000 हेक्टेयर से ज़्यादा रकबा है, जो कुल फसली रकबे का मात्र 2 प्रतिशत है। विशेषज्ञों के अनुसार इसे तीन गुना करने की ज़रूरत है। फलों की काश्त के अधीन कुल रकबे में से 48 प्रतिशत पर किन्नू की फसल है जिसके दाम में उतार-चढ़ाव आने से उत्पादकों की आर्थिक हालत प्रभावित होती है। पूसा द्वारा अम्रपाली, मल्लिका के अलावा अलग-अलग तरह की आम की हाइब्रिड किस्में विकसित की गई हैं जिन्हें लगाकर किसान अमरूद की तरह लाभ उठा सकता है।
राज्य में सब्ज़ी की काश्त का रकबा बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है। किसान ग्रीनहाउस तथा बुआई की अन्य तकनीकें अपनाकर पूरा साल मौसम के अनुसार सब्ज़ियां उगा सकते हैं। तकनीक के इस्तेमाल से अगेती-पिछेती बुआई करके भी किसान आय बढ़ा सकते हैं। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) द्वारा विकसित ‘पूसा वृष्ति’ गाजर 95 दिन में पक जाती है। इसकी काश्त उत्पादकों के लिए फायदेमंद है। पीएयू द्वारा विकसित ‘पंजाब ब्लैक ब्यूटी’ काली गाजर की किस्म ज़्यादा पैदावार देने के अतिरिक्त कैंसर का मुकाबला करने की ताकत रखती है। यह पकने को 110 दिन लेती है। पूसा संस्थान की ‘आसिती’ किस्म भी काले रंग की ही गाजर है। इसका उत्पादन करीब 250 क्ंिवटल है। आजकल इसकी पुटाई होने वाली है।
अगले महीने किसान प्याज की बुआई कर सकेंगे। प्याज की पौध 6 हफ्ते की होनी चाहिए। शिमला मिर्च, टमाटर और खीरा अलग-अलग तकनीकों से, मौसमी और बेमौसमी दोनों ही उगाए जा सकते हैं। सब्ज़ियों की बेमौसमी पौध तैयार करके भी आय बढ़ाई जा सकती है। मूली की पूरा साल होने वाली अलग-अलग किस्में उपलब्ध हैं। पीएयू और पूसा से जानकारी लेकर किसान पूरा साल सब्ज़ियों की काश्त कर सकते हैं। पूसा चेरी टमाटर ग्रीनहाउस वातावरण और सुरक्षित बुआई के लिए अनुकूल किस्म है। इस किस्म के टमाटर बुआई के 70-75 दिन बाद तैयार हो जाते हैं और इसका फल 9 से 10 महीने तक लिया जा सकता है। 
इसकी पैदावार 10 टन प्रति वर्ग 1000 मीटर है। उपभोक्ताओं की पसंदीदा गहरे हरे हंग की सीडलैस पूसा खीरा-6 किस्म अगेती लगाई जा सकती है। इससे नवम्बर से लेकर मार्च तक फल मिलता है जबकि ठंड के कारण खीरे मंडी में नहीं आते। पूसा मृदुला छोटे आकार की और लाल रंग की मूली की किस्म है जिसे उगा कर काश्तकार अपनी आय बढ़ा सकते हैं। मूली आजकल पूरा साल हर मौसम में लगाई जा सकती है। इसकी एक और उपयोगी किस्म पूसा चेतकी है, जिससे किसान लाभ उठा सकते हैं। पूसा रसदार करेले को भी किसान अपनी आय का साधन बना सकते हैं। इसका फल सारा साल लिया जा सकता है। इसके अलावा पूसा की भिंडी, पत्ता गोभी, पालक, धनिया, मिर्च, फूल गोभी और पेठे की किस्में हैं जो किसानों के लिए लाभदायक हैं।
सब्ज़ियों की काश्त करके प्रत्येक वर्ग के किसान लाभ उठा सकते हैं। उत्पादकों को यह ध्यान में रखना होगा कि सब्ज़ियों के लिए कोहरा बहुत हानिकारक है। सुरंगों में काश्त करके या सिंचाई से सब्ज़ियों को कोहरे से बचाया जा सकता है। किसानों के लिए पॉली हाऊस की तकनीक भी लाभदायक है।

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