संसद भी घबरा गई है सोशल मीडिया के प्रदूषण से

सोशल मीडिया के प्रदूषण का आतंक पूरे देश में तहलका मचा रहा है। माता-पिता के साथ ही समाज के दूसरे लोग ही अभी तक चिंतित थे, पर अब देश की सर्वोच्च संस्था संसद भी इससे घबरा गई है। हालत यह है कि अब इस प्रदूषण को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग सांसद ही कर रहे हैं। उनकी चिंता है कि यदि तुरंत इस पर रोक नहीं लगी, तो हमारे पारिवारिक संबंध तहस-नहस हो जाएंगे। राजस्थान के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तथा राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ ने राज्यसभा में डिजिटली प्रदूषण की शिकायत करते हुए सरकार से कहा कि इसके खिलाफ एक कानून बनाया जाए, जिससे हमारी परिवार संस्था बच सके। राठौड़ ने जो बात राज्यसभा में रखी, वह पूरी दुनिया में गंभीरता की पराकाष्ठा है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर डिजिटल प्रदूषण इस कदर हावी है कि यह हमारी पारिवारिक संरचना के लिए गंभीर खतरा बन गया है। 
भारत में इस समय लगभग एक अरब से अधिक मोबाइल ग्राहक हैं और इनमें भी स्मार्ट फोन का यूज करने वाले करीब 70 करोड़ लोग हैं। भारत के ये स्मार्ट फोन यूज करने वाले हर माह 30 जीवी तक डेटा अनुमानित उपयोग करते हैं। यह बात भी ध्यान रखने की है कि भारत के कम से कम 60 प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता का फोन उपयोग करते हैं और उसमें वे या तो गेम खेलते हैं या फिर रील देखते हैं, शार्ट वीडियो देखते हैं या उन ऐप की दूसरी उन साइटों को सर्च करते हैं, जो उनके माता-पिता आमतौर पर यूज करते हैं। एक बात यह भी कि 8 से 12 वर्ष तक बच्चों-किशोरों के पास अपने फोन हैं, जिसमें उन्होंने लॉक लगा रखा होता है या फिर वे क्या करते हैं, इसकी जानकारी उनके माता-पिता के पास समयाभाव के कारण नहीं होती। सर्वाधिक चिंता इस बात की है कि यही बच्चे अब फेसबुक, गूगल, व्हाटसअप जैसे लोकप्रिय प्लेटफार्म पर रील देखने, प्रसारित करने, नए समाचार देखने, सेलिब्रिटी के बारे में सूचना आदान-प्रदान करने जैसी चीजों को देखने में अपना समय खर्च कर रहे हैं। 
अब जरा याद कीजिए, ही-मैन धर्मेन्द्र का निधन हुआ भी नहीं था और सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने के साथ ही उनके निधन की सूचना कुछ ही मिनटों में पूरी दुनिया में फैल गई। बाद में उनके परिवारजनों ने किस प्रकार से विरोध किया, सभी को पता है। मराठी फिल्मों की अभिनेत्री गिरिजा ओक को सोशल मीडिया ने नेशनल क्रश बना दिया और उनकी एक खास तस्वीर इतनी वायरल हो गई कि उन्हें खुद कहना पड़ा कि मुझे सोशल मीडिया के कारण परेशान करने वाले संदेश मिल रहे हैं और अगर उनका बेटा इन तस्वीरों को देखेगा, तो उनके बारे में क्या सोचेगा। वह मानती हैं कि इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा असर नहीं पड़ेगा। चाहे धरम जी का परिवार हो या गिरिजा ओक या फिर मदन राठौड़ का, सभी की चिंता है, सोशल मीडिया का डर या कह लें प्रदूषण या फिर आतंक। सोशल मीडिया आज की तारीख में ज़रूरत कम, समस्या अधिक बन रहा है। क्यों? इसे ऐसे समझ सकते हैं। मदन राठौड़ ने कहा कि आज जो रील-शार्ट वीडियो दिखाए जा रहे हैं, उनमें देवर-भाभी, भाई-बहन, पिता-बेटी, बहू-ससुर जैसे पवित्र रिश्तों को अशोभनीय तरीके से पेश किया जा रहा है। 
दरअसल इन वीडियो या रील में लाइक के लिए अंतरंग संबंधों को बेहूदगी की पराकाष्ठा पर ले जाकर दिखाया जाता है और इन्हें बड़े ही नहीं, मासूम बच्चे तक देखते हैं। सोचिए, जब बच्चे असंसदीय भाषा में अश्लील कंटेंट देखकर बड़े होंगे, तो उनके मन में पवित्र रिश्तों के प्रति क्या सम्मान रहेगा? बच्चे अब मोबाइल पर कार्टून नेटवर्क की दुनिया में नहीं जाते। वे न तो सिनचैन को देखते हैं, न ही छोटू-मोटू, न ही जानवरों के कार्टून। मोबाइल हाथ में आते ही वे सीधे रील पर जाते हैं और कब घंटों हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ऐसी हालत में समाज और आने वाली पीढ़ियों की सामाजिक सुरक्षा कौन करेगा? कैसे बचेंगे पारिवारिक मूल्य? यही चिंता भविष्य में एक नई चुनौती लेकर आ रही है। चुनौती तब और गंभीर हो जाती है, जब भारतीय बाल अकादमी के कोविड काल में किए गए सर्वे को देखते हैं, तो पता चलता है कि 18 माह तक की उम्र के 99 प्रतिशत बच्चे मोबाइल पर रोज़ाना दो से तीन घंटे गुजारते हैं। 
गूगल पर तो जिस तरह की सामग्री आ रही है, वह बेहद खतरनाक है। आप गूगल को मोबाइल पर खोलिए और आपको एक समाचार मिलेगा। इस पर फोटो लगी होगी किसी लोकप्रिय एंकर की या किसी लोकप्रिय सेलिब्रिटी की और लिखा होगा कि-अमुक का निधन, देश में राष्ट्रीय शोक या फिर अवकाश। जब इसके नीचे का कंटेंट देखेंगे तो पता चलेगा कि यह किसी का विज्ञापन दिखाने के लिए कूटरचित है। कितनी खतरनाक है यह पोस्ट, सोचिए? मासूम मन जब इसे पढ़ेगा, तो उस पर क्या असर होगा? सबसे बड़ी बात यह कि किसी सेलिब्रिटी की फर्जी मौत को जिस तरह से पेश किया जाता है, वह सामाजिक रीति-रिवाज के लिए खतरनाक है।  सोशल मीडिया का एक नया खतरा यह उभरकर सामने आ रहा है कि अब एआई के जरिए किसी की भी तस्वीर को मनमाने तरीके से बदलकर वायरल कर दिया जाता है। हाल में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की यात्रा के फोटो इसके उदाहरण हैं। कभी वह मोदी जी के साथ बांके बिहारी के मंदिर में धोती पहनकर नज़र आ रहे हैं, तो कभी वह कहीं और दर्शन करते नज़र आ रहे हैं। कई जगह तो वह दूसरे नेताओं के साथ भी नज़र आते हैं। फोटो ही नहीं, छोटी रीलों में भी एआई के माध्यम से हर उस बात को मजाक बना दिया गया है, जो लाइक या सब्सक्राइब करा सकती है। इधर धर्मेन्द्र के निधन के बाद पुराने अभिनेताओं की मृत्यु को भी ऐसे पेश किया गया जैसे यह घटना तत्काल हुई है। 
आखिर इस समस्या से निजात कैसे मिले, अब यह प्रश्न देश की संसद के सामने है। अश्लील कंटेंट को लेकर कितने ही कानून हैं पर उनका कोई असर नहीं हो रहा। बच्चों का अनियंत्रित भावनात्मक व्यवहार नियंत्रित करने के लिए सोशल साइटों पर, खासकर जिन पर असंसदीय कंटेंट हैं,उनके जाने पर प्रतिबंध कैसे लगे, यह सवाल अब प्रमुख है। परिवार संस्था के संबंधों की गरिमा बचाने के लिए लगने लगा है कि अब डिजिटल प्रदूषण के खिलाफ उन रील या वीडियो पर साइबर कर्फ्यू लगाना होगा, जो मासूम मन को असमय ही वयस्क बना रहे हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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