ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर बर्बर हमला, खमियाज़ा भुगतेंगे मजबूर फिलिस्तीनी

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में 14 दिसम्बर 2025 को स्थानीय समय के मुताबिक करीब 6 बजकर 47 मिनट पर बोंडी बीच में स्थित आर्चर पार्क में जब यहूदी लोग अपना एक सप्ताह तक चलने वाला त्योहार हनुक्का मना रहे थे, तभी वहां काले कपड़ों में दो आतंकी हमलावर आये और लोगों पर बर्बरता के साथ अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। आतंकियों द्वारा की गई करीब 50 राउंड की खौफनाक फायरिंग में 11 लोग तत्काल और 5 लोग अस्पतालों तक पहुंचाने के दौरान मारे गये। ये तो शुक्र है कि उसी समय वहां खड़ी कारों के पीछे से छुपते छुपाते अहमद नाम के एक बुजुर्ग पीछे से अपनी जान पर बाजी खेलकर एक हमलावर को काबू कर लिया और उसकी रायफल छीनकर बहुत से लोगों की जान बचायी लेकिन खुद बुजुर्ग अहमद हमलावर को तो मार नहीं सके, लेकिन उसके दूसरे साथी ने उन पर दो गालियां दागकर गंभीर रूप से घायल कर दिया है और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक बुजुर्ग अहमद की हालत स्थिर बनी हुई थी। इस आतंकी हमले में एक इज़रायली नागरिक और एक छोटे बच्चे सहित सोमवार तारीख 15 दिसंबर 2025 की सुबह 10 बजकर 30 मिनट तक 16 लोग दम तोड़ चुके थे और घायल 38 लोगों में से एक दर्जन की हालत बेहद नाजुक थी। 
इस अचानक हुए आतंकी हमले हमले से मची अफरा-तफरी के चलते लोग बेतहाशा इधर-उधर भागने लगे, हालांकि आनन-फानन में पुलिस ने मोर्चा संभाल लिया और दोनों हमलावरों को गोली मार दी, जिसमें एक की मौके पर ही मौत हो गई और दूसरा गंभीर रूप से घायल मगर सुरक्षा एजेंसियों के कब्जे में है। इन हमलावरों में एक की पहचान 24 वर्षीय नवीद अकरम के रूप में हुई है। नवीद अकरम पाकिस्तानी नागरिक है और ऑस्ट्रेलिया में राज मिस्त्री का काम कर रहा था। हालांकि बोंडी बीच के पास आर्चर पार्क में त्योहार मना रहे यहूदियों को ऐसे किसी आतंकी हमले की आशंका नहीं थी लेकिन हाल के सालों में जिस तरह यहूदियों को ऑस्ट्रेलिया में कई बार आतंकी हमले का निशाना बनाया गया है और पिछले दिनों जिस तरह ऑस्ट्रेलिया, इज़रायल के खिलाफ सख्त बयानबाजी कर रहा था, उसको देखते हुए इज़रायल को ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर ऐसे हमले की आशंका पहले से ही थी। इसलिए इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री से यहूदियों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से आगाह किया था लेकिन यहूदियों की सुरक्षा के अतिरिक्त कदम नहीं उठाये जा सके और हाल के सालों में तीसरी बार ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर बर्बर हमला हो गया।
इस हमले की भर्त्सना पूरी दुनिया के राजनीतिक हलकों में हुई है, मगर सवाल है आखिर फिलिस्तीनियों के हमदर्द होने का दावा करने वाले मुस्लिम आतंकी उनके लिए इस कदर परेशानियां क्यों खड़ी कर रहे हैं? गौरतलब है कि लंबी जद्दोजहद के बाद पिछले दिनों गाजा पट्टी में कई सालों के बाद युद्ध विराम और एक हताशाभरी शांति की कामना धीरे-धीरे मूर्त रूप लेते हुए दिखी थी लेकिन अब इस हमले के बाद ये तय है कि इज़रायल इस हमले का गुस्सा फिर से फिलिस्तीनियों पर उतारेगा। ऐसे में यह विचारणीय सवाल है कि आखिर फिलिस्तीनियों के शुभचिंतक ये मुस्लिम आतंकी आखिर उनका जीना इस कदर हराम क्यों किये हैं? क्योंकि ये तय है कि ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर जो बर्बर हमला हुआ है, उसकी प्रतिक्रिया पूरी दुनिया में मुसलमानों के विरुद्ध देखी जायेगी। यह समझने की बात है कि ऑस्ट्रेलिया जैसे देश में यहूदियों पर हमला महज स्थानीय अपराधभर नहीं होता बल्कि यह एंटी-सेमिटिज्म अर्थात यहूदी विरोध का प्रतीक होता है, जिसकी प्रतिक्रिया मिडिल ईस्ट के संघर्ष में और ज्यादा हिंसा से होता है। साथ ही एक आतंकवाद बनाम सभ्य समाज की बहस छिड़ जाती है और न चाहते हुए भी पीड़ित मुस्लिम ही इस बहस में विलेन बनकर उभरते हैं। 
पिछले कुछ वर्षों में अनेक पश्चिमी देशों जैसे- फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में यहूदियों पर मुस्लिम आतंकियों द्वारा जो हमले किये गये हैं, इज़रायल ने उन हमलों का बदला बेकसूर और हताश फिलिस्तीनियों पर ज्यादा जुल्म ढाकर लिए हैं। पश्चिमी देशों में जब-जब यहूदियों पर हमला हुआ है, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष तब-तब ज्यादा उग्र हुआ है। इसका कारण है पूरी दुनिया में जहां भी यहूदी हैं, इज़रायल बिना कहे उनको अपना नागरिक समझता है और उन पर हुए हमलों को अपने देश पर हुए हमला मानता है। इसलिए ऐसी घटनाओं के बाद इज़रायल में यहूदी जहां पश्चिमी देशों के विरुद्ध और ज्यादा एकजुट और उग्र हो जाते हैं वहीं अपने अस्तित्व के नाम पर इज़रायल इन हमलों के विरुद्ध कई गुना ज्यादा अत्याचार करना अपना फर्ज समझने लगता है। ऐसे में ये हमला यहूदियों पर भले प्रतीक के तौर पर किया गया हो, मगर इसके बेहद संवेदनशील नतीजे निकलेंगे और ये हमारे राजनीतिक ढांचे से लेकर कार्यवाई की प्रक्रिया तक को कटघरे में खड़ा करेगा।
जिस तरह हमास ने दो साल पहले इज़रायल पर बर्बर हमला किया था, जिसमें उसके 1200 लोग मारे गये थे और कुछ हजार लोगाें को हमास के लड़ाकों ने बंधक बना लिया था। उसके बाद से लगातार यहूदियों के लिए सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही नहीं बल्कि फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड और अन्य देशों में भी घात लगाकर बर्बर हमलों की स्थितियां बन गई है। यह समझने की बात है कि आखिर हमास या दूसरे मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा फिलिस्तीन की हमदर्दी में इज़रायल या यहूदियों के विरुद्ध किये गये इस तरह के हमलों के नतीजों के रूप में किस तरह से दुनिया के आम मुसलमानों को गुस्से, घृणा और विरोध का शिकार होना पड़ता है। साथ ही इसका खामियाजा फिलिस्तीनियों को भी भुगतना पड़ता है। अगर उनके पक्ष में कोई स्थिति बन रही होती है, तो भी इस तरह के हमले दुनिया को उनकी प्रति निष्ठुर कर देती है। 
ऐसे में ये सवाल उठता है कि फिर तथाकथित ये इस्लामी आतंकवादी यहूदियों और इज़रायल के विरूद्ध इस तरह उकसावे वाली हरकतें क्यों करते हैं? इन हरकतों से तो फिलिस्तीनियों की मुक्ति या अपने स्वतंत्र देश का सपना और ज्यादा शक के घेरे में आ जाता है। क्योंकि ऐसी घटनाओं के बाद इज़रायल यह कहकर कि हम आत्मरक्षा में हैं, समूचे फिलिस्तीन पर जबर्दस्त कहर ढाता है और पूरी दुनिया में सहानुभूति फिलिस्तीनियों के बजाये यहूदियों और इज़रायल के पक्ष में बन जाती है, जिससे न केवल फिलिस्तीनी, इज़रायली आतंक का मज़बूर शिकार बनकर रह जाता है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति भी फिलिस्तीन से दूरी बनाकर इज़रायल की तरफ झुक जाती है। इस हमले से भी यही होगा। पश्चिमी देश प्रो-फिलिस्तीन आवाजों को इस हमले के बाद और ज्यादा शक की निगाह से देखने लगे हैं। इतिहास गवाह है कि यूरोप में जब-जब यहूदियों पर हमला हुआ है, इज़रायल में सैन्य कार्यवाई काफी ज्यादा तेज हुई है। ..और गाज़ा तथा बेस्ट बैंक के आम फिलिस्तीनी नागरिकों को इस गुस्से और ईर्ष्या का मजबूर शिकार होना पड़ा है। 
सच बात यही है कि जब भी इस्लामिक आतंकवादी फिलिस्तीन के प्रति हमदर्दी जताते हुए दुनिया में कहीं भी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं, तो उसका शिकार फिलिस्तीनियों को और ज्यादा पीड़ा और अत्याचार से भुगतना पड़ता है। ऐसे में ज़रूरी है कि दुनिया के इस्लामिक बुद्धिजीवी ऐसी उकसावे वाली आतंकवादी घटनाओं का जबर्दस्त विरोध करें और कुछ सिरफिरे लोगों की बर्बर मनमानियों को इस्लाम की मर्जी न मानने दें। यह तभी होगा जब दुनियाभर के सम्मानित और प्रभावशाली इस्लामिक बुद्धिजीवी ऐसी आत्मघाती हरकतों का बहुत ताकतवर ढंग से विरोध करेंगे लेकिन ज्यादातर मौकों में देखा जाता है कि ऐसी घटनाओं को लेकर अव्वल तो मुस्लिम बुद्धिजीवी खामोश रहते हैं या इनके घटने की सारी जिम्मेदारी का ठीकरा इज़रायल और वहां की सरकार पर फोड़ देते हैं। मुस्लिम जगत को इस सरलीकरण के दुष्परिणामों को समझना होगा और ऐसी कोई स्थिति नहीं बननी देनी चाहिए कि ऐसी बर्बर घटनाओं को भी धार्मिक, वैचारिक और सामुदायिक सहानुभूति से देखना पड़े।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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