ज़िला परिषद्-पंचायत समिति चुनाव
राजनीतिक पार्टियों को आत्म-निरीक्षण की ज़रूरत
पंजाब में ज़िला परिषद् और पंचायत समितियों के चुनाव सम्पूर्ण हो गये हैं। गिणती होना अभी बाकी है। जब इन चुनावों का ऐलान हुआ था, उस समय कई कारणों के दृष्टिगत इनमें बहुत उत्साह दिखाई नहीं दिया था परन्तु धीरे-धीरे इस प्रक्रिया ने ज़ोर पकड़ना शुरू कर दिया। लगभग 9000 उम्मीदवार खड़े हुए, 22 ज़िला परिषदों और 153 पंचायत समितियों के इन चुनावों के लिए एक करोड़ 36 लाख मतदाता थे। चुनावी माहौल गर्माने पर यह डर ज़रूर पैदा हुआ था कि इनमें प्रत्येक स्तर पर हिंसा हो सकती है। इसी लिए प्रदेश चुनाव कमिशन द्वारा काफी पोलिंग स्टेशनों में हिंसा के डर से पुलिस की तैनाती बढ़ा दी गई थी। विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा यह डर भी प्रकट किया जाता रहा कि इन चुनावों में प्रशासन द्वारा बड़े घोटाले हो सकते हैं। लग रहे इन आरोपों को सरकारी पक्ष द्वारा लगातार नकारा जाता रहा और मतदाताओं को यह अपील भी की जाती रही कि इस प्रक्रिया को शांतिपूर्ण ढंग से पूरा किया जाए।
इस समय में कई स्थानों पर माहौल ज़रूर गर्म होता रहा परन्तु लड़ाई-झगड़े वाली बड़ी घटनाएं नहीं हुईं। चुनावों के दिन भी हुए कुछ एक घटनाक्रम को छोड़कर बाकी सभी चुनाव प्रक्रिया को शांतिपूर्ण ढंग से ही निपटा लिया गया परन्तु एक बात हैरान करने वाली ज़रूर है कि इस बार वोटों की प्रतिशतता बेहद कम नज़र आई। ये चुनाव हर 5 साल बाद करवाये जाते रहे हैं परन्तु इस बार कोरोना महामारी और कुछ अन्य कारणों के कारण यह 7 साल बाद करवाये गये। पिछली बार से इनकी प्रतिशतता काफी कम रही। इसके मुकाबले वर्ष 2008 में यह प्रतिशतता 68 प्रतिशत थी, जो अब कम होकर 48 प्रतिशत रह गई है। विपक्षी पार्टियों के नेताओं द्वारा मतदाताओं में उत्साह न होने का कारण यह हो सकता है कि सत्तापक्ष तथा विपक्ष में से कोई भी पार्टी लोगों को चुनावों के लिए आकर्षित नहीं कर सकी, क्योंकि ये चुनाव पार्टी चुनाव चिन्हों पर हुए थे। सभी राजनीतिक पार्टियों को आत्म-चिन्तन करने की ज़रूरत है। इन चुनावों का संबंध ग्रामीण क्षेत्रों से होने के कारण यह क्षेत्र पंजाब के लिए बहुत अहम माना जाता है। पंजाब के इस क्षेत्र में मतदाताओं ने इन चुनावों के प्रति इस कद्र बेरुखी क्यों दिखाई, इसके कारणों पर गम्भीरता से विचार-विमर्श करने की ज़रूरत होगी।
पंचायती राज कानून इसी भावना से बनाया गया था कि देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निचले स्तर से शुरू किया जाना ज़रूरी है ताकि लोग इस भावना के प्रति पूरी तरह सचेत हो सकें, परन्तु जिस प्रकार अनुमान लगाया जाता था, इस के परिणाम उस भावना के अनुकूल नहीं कहे जा सकते, क्योंकि जिस प्रकार निचले स्तर तक राजनीतिक हस्तक्षेप बहुत बढ़ा है, वह इसकी मूल भावना के विपरीत है। इसलिए सभी पार्टियों को इस बात के लिए सचेत होने की ज़रूरत होगी कि इन प्राथमिक चुनावों में राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो और इन ग्रामीण इकाइयों को अपने-अपने क्षेत्रों के प्रत्येक तरह के विकास के लिए खुला माहौल उपलब्ध किया जाए, परन्तु जबसे यह कानून अस्तित्व में आया है, उस समय से ही यह अक्सर देखा जाता है कि इसमें लगातार राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ता गया है, जिससे ग्रामीण समाज में आपसी कटुता भी पैदा होती रही है।
नि:संदेह इस निचले स्तर के प्रबंध को खुला तथा आकर्षक बनाने की ज़रूरत होगी, जिससे ग्रामीण स्तर के विकास को अच्छे मार्ग पर लाया जा सके। इस प्रबंध के लिए राजनीतिक पार्टियों की आपसी सहमति वाला दृष्टिकोण भी बेहद ज़रूरी होगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

