‘वोट चोरी’ के खिलाफ प्रभावी रही कांग्रेस की रैली
14 दिसम्बर को इस देश की जनता ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक खास तरह का नज़ारा देखा। किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह सब कुछ देखने को मिलेगा। हमें पहले से पता था कि कांग्रेस इस तारीख में रामलीला मैदान में रैली करेगी। उसमें ज़ाहिर है कि वोट चोरी का मुद्दा भी उठेगा। लेकिन वहां नज़ारा यह दिखाई पड़ा कि मंच के सामने बहुत से बड़े-बड़े बोरों भर का कुछ लाया गया था। लोग सोच रहे थे कि इन बोरों में क्या हो सकता है। जब उन्हें पता चला कि इन बोरों में क्या है तो रामलीला मैदान में उपस्थित भीड़ में नया जोश भर गया। उन बोरों में पांच करोड़ से ज्यादा हिदुस्तानियों के, पांच करोड़ से ज्यादा वोटरों के हस्ताक्षर थे जो कांग्रेस ने सारे देश से वोट चोरी के खिलाफ जमा किये थे। मंच से राहुल गांधी ने ऐलान किया कि वे इन पांच करोड़ से ज्यादा दस्तखतों को राष्ट्रपति को सौंपने वाले हैं। इन बोरों के सार्वजनिक प्रदर्शन से और राहुल गांधी के इस ऐलान से बिल्कुल साफ हो गया कि विपक्ष कांग्रेस और राहुल गांधी के नेतृत्व में क्या कदम उठाने वाला है। देखते ही देखते यह रैली कुल मिला कर वोट चोरी के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान का आगाज़ बन गई। पहले प्रियंका गांधी ने और फिर राहुल गांधी ने चुनाव आयुक्तों के स्पष्ट रूप से नाम लिए। चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार, सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी का नाम जैसे ही मंच से प्रियंका और राहुल द्वारा लिया जाता, वैसे ही उपस्थित विशाल भीड़ पूरे जोश से नारे लगाती, वोट चोर-वोट चोर। दोनों नेताओं के भाषण में यह बार-बार किया गया। इस तरह वोट चोरी के खिलाफ राष्ट्रीय मुहिम अपने पहले चरण में पहुंच गई।
राहुल गांधी और प्रियंका दोनों ही इस रैली के दौरान ज़बरदस्त फॉर्म में थे। प्रियंका गांधी ने कहा कि जीवन में वोट की कीमत समझना ज़रूरी है। आज न्यायालय पर दवाब है। सारी मीडिया अंबानी-अडानी की है। कांग्रेस के नेताओं को तरह-तरह के आरोप लगाकर जेल में बंद किया जा रहा है जो उनकी पार्टी में शामिल हो गए उसे उनकी वॉशिंग मशीन ने साफ कर दिया। राहुल ने अपनी बात शुरू करते हुए जिस तरह से उसे खोलना शुरू किया, वह राजनीतिक विमर्श में एक गम्भीर टेक था। मैं इसे दो बिंदुओं के रूप में व्याख्यायित करना पसंद करूंगा।
पहला, बजाय इसके कि आम नेताओं की तरह राहुल गांधी लफ्फाज़ी का सहारा लेते, उन्होंने सत्य और सत्ता के बीच फर्क करके शुरुआत की। उन्होंने जो कहा, उसके कुछ अलग तरह के मायने थे। ऐसे मायने जिनमें उतरने से आमतौर पर नेता लोग बचते हैं। यह एक तरह देश के लोकतंत्र के सामने आए संकट को समझने की दावत थी। राहुल ने इस बात को इस तरह कहा.. जब मैं गाड़ी में आ रहा था तो गाड़ी में ही मुझे बताया गया कि कि अंडमान निकोबार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक बयान दिया है। मेरा भाषण देने का प्लान दूसरा था। मगर जब मैंने उनका बयान सुना तो मैंने अपना पूरा प्लान बदल दिया। इसके बाद राहुल गांधी ने कहा कि सत्य सबसे ज़रूरी चीज़ है। हमारे धर्म में सत्य को सबसे ऊपर स्थान दिया जाता है। आपने सुना होगा सत्यम शिवम सुंदरम। सुना है न। हमारे धर्म में न सिर्फ कहा जाता है सत्यम शिवम सुंदरम बल्कि आपने सत्यमेव जयते भी सुना होगा सुना है। इसके बाद राहुल ने वहां मौजूद कार्यकर्ताओं से कहा कि अब मोहन भागवत का बयान सुनिए। क्या बोल रहे हैं। वे कह रहे हैं कि विश्व सत्य को नहीं शक्ति को देखता है। जिसके पास शक्ति है उसे माना जाता है। यह है मोहन भगवत की सोच। यह विचारधारा आरएसएस की है। हमारी विचारधारा हिंदुस्तान की विचारधारा है, हिंदू धर्म की विचारधारा है, दुनिया के हर धर्म की विचारधारा है जो कहती है कि सत्य सबसे ज़रूरी है और भागवत कहते हैं कि सत्य का कोई मतलब नहीं है। सत्ता ज़रूरी है। इसी बात की लड़ाई हो रही है हिंदुस्तान में। सत्य और असत्य के बीच में लड़ाई हो रही है और मैं आपको इस स्टेज से गारंटी देकर कहता हूं आप देखना हम सत्य को लेकर, सत्य के पीछे खड़े होकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह को, आरएसएस की सरकार को हिंदुस्तान से हटाएंगे।
अब मैं आता हूँ राहुल के भाषण के दूसरे महत्त्वपूर्ण पहलू पर। उन्होंने अपने भाषण में केंद्र की सरकार को स्पष्ट रूप से आरएसएस की सरकार कहा। यह एक ऐसी बात है जिसे कहने में विपक्षी पार्टियां भी संकोच करती हैं। वे समझती हैं कि सरकार तो भाजपा की है। चुनाव निशान कमल का है जो भाजपा का है। संघ तो चुनाव लड़ नहीं रहा है लेकिन राहुल का दिमाग साफ है। वे बार-बार फोकस दे रहे हैं कि इस तथ्य पर कि देश में संघ की सरकार चल रही है। दरअसल, राहुल गांधी देश के एकमात्र नेता हैं जो लगातार बिना किसी विराम के संघ के खिलाफ बोल रहे हैं। आज रामलीला मैदान में भी उन्होंने यही किया। राहुल गांधी ने भाजपा, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, संघ और चुनाव आयुक्तों को एक साथ जोड़ दिया। जनता से इन सबके खिलाफ नारे लगवाये। उन्होंने कहा कि इन लोगों के पास सत्ता है। वे वोट चोरी करते हैं। फिर उन्होंने मंच के सामने रखे बोरों की तरफ इशारा किया और कहा.. देखिए आपके सामने पड़े हैं इसके सबूत। वो वोट चोरी करते हैं। चुनाव के समय, जब चुनाव हो रहा है, आचार संहिता लगी हुई है, वे 10-10 हज़ार रुपये बांटते हैं। चुनाव कमिश्नरों को याद याद रखना होगा कि यह जो सत्य और असत्य की लड़ाई हो रही है, इलेक्शन कमिशन भाजपा के सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है, यह नहीं चल सकता। नरेंद्र मोदी नया कानून लाए हैं कि इलेक्शन कमिश्नर कुछ भी करें उन पर एक्शन नहीं लिया जा सकता है। उन पर कारवाई नहीं की जा सकती है। राहुल ने कहा कि आप हिंदुस्तान के इलेक्शन कमिश्नर हो। आप नरेंद्र मोदी के इलेक्शन कमिश्नर नहीं हो।
इसके बाद राहुल ने कहा कि हरियाणा से यहां लोग आए। आए हैं? इनके हाथों से चुनाव चोरी किया गया है। ब्राजील की महिला 22 बार हरियाणा की वोटिंग लिस्ट में दिखाई देती है। एक पोलिंग बूथ में एक महिला 200 बार आती है। भाजपा के नेता यूपी से आकर हरियाणा में वोट करते हैं। उधर भी उनका वोट है। इधर भी उनका वोट है। लाखों डुप्लीकेट वोटर हैं। मैंने प्रेस कॉन्फ्रैंस की, लेकिन इन तीन चुनाव कमिश्नरों के पास कोई जवाब नहीं है। जब हमने उनसे सवाल पूछा कि आप हमें समझाइए ब्राजील की महिला कैसे वोटर लिस्ट में एक महिला 200 बार क्यों आती है? एक घर में 500, 600, 700 वोटर क्यों मिलते हैं? उत्तर प्रदेश से भाजपा के नेता हरियाणा में वोट क्यों डालते हैं? कोई जवाब नहीं मिला। और पार्लियामैंट हाउस में कुछ ही दिन पहले ही हाथ कांप रहे थे अमित शाह के। हाथ कंपाते हुए उन्होंने सफाई दी आयोग की। आपने मेरी प्रैस कॉन्फ्रैंस की बात की, आइए डिबेट करते हैं, देश को दिखाते हैं, सच कौन बोल रहा है। चाहे आप पावर में हैं। देश की जनता सत्य को समझती है। सत्य के लिए लड़ती है। यह देश सत्य के लिए जान देता है।
राहुल गांधी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी का आत्मविश्वास खत्म हो गया है। अमित शाह के हाथ कांपते हैं। उन्हें पता है कि उनकी चोरी पकड़ी गई है। ‘वोट चोरी’ की महारैली से बौखलाई भाजपा ने मुद्दे से भटकाने के लिए महारैली के निकाले जाने के पहले यहां पर कुछ लोगों ने पोस्टर लेकर ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ के नारे लगाए जाने को मुद्दा बनाने की कोशिश की। ज़ाहिर है कि अब इस देश में एक नये आंदोलन की ज़मीन पकने लगी है। वोट चोरी की मुहिम जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे राजनीतिक माहौल बदलता चला जाएगा।
लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।



