फसली विभिन्नता के लिए फलों की काश्त बढ़ाना ज़रूरी
पंजाब में चावल की काश्त का रकबा कम करके फसली विभिन्नता लाने की आवश्यकता है। फलों की काश्त फसली विभिन्नता के लिए एक योग्य फसल है। इसके उत्पादन में भारत की गिनती विश्व के प्रमुख देशों में होती है। पंजाब, जो गेहूं और धान का उत्पादन करके केंद्रीय अनाज भंडार में में अहम योगदान दे रहा है, में फलों की काश्त के अधीन सिर्फ करीब दो प्रतिशत रकबा है। इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। बाग लगाने, खेतों और ट्यूबवैल फर फलों के पौधे लगाने का उत्साह दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है, परन्तु इसमें अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही। क्योंकि यह शिकायत है कि फलों के पौधे पनपते नहीं, विशेषज्ञों द्वारा बताए नतीजे नहीं मिलते और पौधे मर जाते हैं। इसका कारण किसानों और बागवानों को फलों की काश्त संबंधी अच्छी तकनीकी जानकारी की कमी है।
फिर वे पौधे गैर-प्रमाणित नर्सरियों, फेरी वालों और सड़कों पर बेचने वालों से खरीद लेते हैं, जो सही न होने के कारण पनप नहीं पाते और मर जाते हैं। बागवानी विभाग के फलों के विशेषज्ञ और पूर्व डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह मान किसानों को सलाह देते हैं कि उन्होंने पौधे बागवानी विभाग, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए..यू.) या बागवानी बोर्ड की नर्सरियों से खरीदने चाहिएं। जानकारी के लिए पी.ए.यू. तथा बागवानी विभाग के विशेषज्ञों से सम्पर्क करना चाहिए।
पौधों के विकास तथा उनसे गुणवत्ता भरपूर फल प्राप्त करने के लिए खाद डालने का बहुत महत्व है। पौधों सही समय पर सही मात्रा में, सही ढंग से खाद डालनी चाहिए। इससे अच्छी गुणवत्ता के फल मिलेंगे। इस पतझड़ के मौसम में जब फलदार पेड़ों के पत्ते गिर रहे हैं और उत्पादकों ने दिसम्बर में अब तक खान न डाली हो तो अब उन्हें खाद डाल देनी चाहिए। बेहतर होगा कि रूढ़ी की खाद जाली जाए। सुपरफास्फेट तथा म्यूरेट आफ पोटाश विशेष तौर पर नाशपाती, आड़ू, अलूचा, आम तथा किन्नू को अब दे देने चाहिए (यदि पहले न दिए गए हों)। फलदार पौधों को खाद पौधों की छतरी (कानोपी) के नीचे डालनी चाहिए। तने से एक फुट दूर खाद डालनी चाहिए। खाद डाल कर हलकी-सी गुडाई कर देनी चाहिए। तत्वों की कमी के कारण पौधे कमज़ोर रह जाते हैं जिस कारण इन्हें बीमारियां लग जाती हैं। नाइट्रोजन की कमी के कारण पौधों की सेहत तथा उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। नाइट्रोजन सिफारिश की गई मात्रा में ही डालनी चाहिए, क्योंकि अधिक नाइट्रोजन भी पौधों को खराब करती है। फास्फोरस तथा पोटाशियम भी सिफारश की गई मात्रा में उचित समय पर डाल देनी चाहिए। फास्फोरस की कमी से पौधों का रंग नहीं बदलता और विकास नहीं होता। पोटाशियम फल की गुणवत्ता में सुधार लाता है। यदि खादों को मिट्टी की जांच करवाने के बाद डाला जाए तो खर्च में बचत होती है। किसान मिट्टी की जांच बागवानी विभाग, पी.ए.यू. तथा कृषि किसान कल्याण विभाग की मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं से करवा सकते हैं।
आगमी माह के मध्य से फलों के पौधे लगाने का समय आ रहा है। किसानों को स्वीकृति नर्सरियों से अब पौधे बुक करवा लेने चाहिएं। पंजाब बोर्ड, पंजाब नेक्चर, पंजाब ब्यूटी तथा बग्गूगोशा जैसी साफ्ट किस्मों के पौधे भी जनवरी-फरवरी में लगाने शुरू किए जाएंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि कतार से कतार का अंतर योग्य होना चाहिए।
फलदार पौधा लगाने से पहले 2.5 फुट × 2.5 फुट गरहा गड्ढा कर लेना चाहिए। फिर इस में गली-सड़ी गोबर की खाद (आधी मिट्टी, आधी खाद) डाल कर गड्ढे को भर देना चाहिए। वत्तर आने के बाद पौधा लगा देना चाहिए। ज़मीन के स्तर से गड्ढा 2 फुट गहरा हो अन्यथा अधिक पानी खड़ा होने के कारण पौधे की जड़ें सड़ जाएंगी। पौधा लगाने संबंधी इस तकनीक का इस्तेमाल करके जो आम लोगों की शिकायत है कि पौधे चलते नही, वह दूर हो जाएगी।
मध्य जनवरी के बाद तथा फरवरी माह बाग तथा पौधे लगाने के लिए बड़े अनुकूल हैं। पियोंदी आड़ू की शान-ए-पंजाब, अर्ली ग्रैंड, फ्लोरडा प्रिंस तथा प्रताप किस्म भी जनवरी-फरवरी में ही लगती हैं। अंगूर की सुपीरियस सीडलैस, फ्लेम सीडलैस, ब्यूटी सीडलैस तथा पर्लिट किस्में लगाने का भी यही समय होगा। आलू बुखारे की सतलुज, पर्पल तथा काला अमृतसरी किस्में भी इसी समय के दौरान लगती हैं। फतेहगढ़ साहिब ज़िले के धर्मगढ़ (अमलोह) गांव के प्रगतिशील बीज उत्पादक अपने अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि अनाज तथा अंजीर फल पंजाब मं सफलता से उगाए जा सकते हैं। अनार को झाड़ी नहीं बनने देना चाहिए। एकल तने पर ही रखना चाहिए।



