कहां तक सफल रहीं मोदी सरकार की विकास योजनाएं ?
हर नेता और हर पार्टी जनता की नाराज़गी से डरती है, क्योंकि अगर जनता वोट नहीं देगी तो सत्ता हाथ से निकल जाएगी, लेकिन नरेंद्र मोदी पर यह बात लागू नहीं होती। राहुल गांधी का कहना है कि वह बेपरवाह इसलिए हैं कि चुनाव आयोग से साज़बाज़ करके, फर्जी वोटों को मतदाता सूचियों में जोड़ कर, मतदान हो जाने के बाद प्रतिशत बढ़ा कर यानी कुल मिला कर वोट चोरी करने की कला में वह माहिर हो चुके हैं। हाल ही में जब मैं यह पता लगा रहा था कि मोदी जी ने पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय सत्ता में रहते हुए किस तरह की सरकार चलाई है, तो वास्तव में मुझे लगा कि राहुल ने कितनी सही बात कही है।
आज डालर के मुकाबले भारत का रुपया सौ का आंकड़ा छू रहा है जो भारतीय अर्थव्यवस्था की विफलता का सबसे बड़ा सबूत है। नोटबंदी से काला धन खत्म नहीं हुआ। सरकार दो करोड़ रोज़गार देने का वायदा पूरा नहीं कर पाई। हर व्यक्ति के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख डालने को स्वयं अमित शाह ने चुनावी जुमला मान लिया है। मैं तो यहां कुछ नये तथ्यों पर प्रकाश डालने वाला हूं। सरकार की कोई योजना कामयाब है या नहीं है, इसे परखने का सबसे अच्छा तरीका यह जानना है कि खुद सरकार ने अपनी उस योजना पर खर्च करने के लिए कितनी राशि घोषित की, और क्या वह उस राशि को खर्च कर पाई। योजना आगे तो तभी बढ़ेगी जब उस पर सरकारी पैसा खर्च होगा। अगर आबंटित धन को खर्च ही नहीं किया जाएगा तो वह योजना अपने लक्ष्यों को पूरा कैसे करेगी? यही है वह पोलपट्टी तो मोदी की प्रमुख छह योजनाओं को बेनकाब कर देती है। इससे पता चलता है कि मोदी जी विकास और योजनाओं का हल्लागुल्ला करने में तो माहिर हैं, लेकिन ज़मीन पर काम हो ही नहीं रहा है।
मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का ऐलान किया था। इसके लिए राशि घोषित की गई 5.8 हज़ार करोड़ की, परन्तु ख़र्च हुए कुल 2.2 हज़ार करोड़ रुपए। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भी एक इसी तरह की योजना है जिसके तहत सरकार ने 9.7 हज़ार करोड़ रुपए आबंटित किये, लेकिन कुल खर्च हो पाए 183 करोड़ रुपए ही। आपको बता दें कि अब स्मार्ट सिटी योजना चुपचाप बंद कर दी गई है। शहरी रूपांतरण के ज़रिए शहरों में जान फूंकने के लिए एक अटल मिशन बनाया गया था। इसे 8.4 हज़ार करोड़ दिये गये। लेकिन, सरकार अभी तक केवल 2.4 हज़ार करोड़ का व्यय ही कर पाई। प्रधानमंत्री आवास योजना का बहुत हल्ला किया गया। उसे 9.7 हज़ार करोड़ दिये गये, लेकिन उसमें केवल 2 हज़ार करोड़ ही खर्च हो सके। जिन शहरों को राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर देखा जाता है, उन्हें ठीकठाक रखने के लिए बनायी गई योजना को 248 करोड़ का आबंटन मिला था, लेकिन इस काम में अब तक सरकार केवल और केवल 32.6 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई है। इसी तरह दीनदयाल अंत्योदय योजना पर डेढ़ हज़ार करोड़ रुपए खर्च किये जाने थे, लेकिन इसमे केवल 848 करोड़ ही खर्च हो सके। अगर इन सभी योजनाओं पर आबंटित राशि और खर्च को जोड़ लिया जाए तो कुल जितना आबंटित हुआ है, उसका महज़ 21 फीसदी ही सरकार व्यय कर सकी है यानी इनका एक चौथाई भी पूरा नहीं हुआ। संक्षेप में कहे तो ये योजनाएं पूरी तरह फ्लाप हैं।
सरकार की विफलताओं की यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। दरअसल, यहां से तो यह कहानी शुरू होती है। 2025 तक बुलट ट्रेन बन जानी चाहिए थी। क्या कोई बता सकता है कि बुलट ट्रेन कहां है, क्या वह किसी को दिखाई दे रही है, उस प्रोजेक्ट की प्रगति क्या है? किसी को नहीं पता। मोदी जी के शासनकाल में देश की आबोहवा इतनी ज़्यादा खराब हो चुकी है कि लोगों का सांस लेना मुश्किल है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) की हालत यह है कि वह आम तौर पर पाच सौ, छह सौ और सात सौ के इर्दगिर्द रहती है, लेकिन सरकार ने मूर्ख बनाने के लिए एक्यूआई मापने वाले मीटरों में इस तरह का बंदोबस्त कर दिया है कि वे पांच सौ से ऊपर की रीडिंग ही नहीं देते। दिल्ली में जहां जहां मीटर लगे हैं, वहां सरकार ने आसपास पानी का छिड़काव कराती रहती है ताकि इन मीटरों की रीडिंग कुछ गिर जाए।
मोदी सरकार के मंत्रालयों के प्रदर्शन पर भी गौर किया जाना चाहिए। सबसे पहले अमित शाह के गृह मंत्रालय के प्रदर्शन पर निगाह डालते हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि अमित शाह की बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद न कश्मीर में आतंकवाद खत्म हुआ है और न ही देश के दूसरे हिस्सों में।
विदेश नीति की हालत यह है कि इस समय भारत के साथ दुनिया का कोई भी देश खड़े होने से लिए तैयार नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं धुआंधार जारी हैं। 2021 से लेकर 2025 तक प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं पर कुल 362 करोड़ रुपये खर्च हुए। रूस और यूक्रेन समेत 16 देशों में 109 करोड़ रुपये खर्च किए गए। प्रधानमंत्री ने चार बार अमरीका की यात्रा की है। फ्रांस व जापान की प्रधानमंत्री ने तीन-तीन यात्राएं कीं। मोदी की सऊदी अरब यात्रा पर सरकार के कुल 15,54 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इससे भी अधिक हैरान करने वाली बात यह है कि इस कुल राशि में से केवल होटल के कमरों के नाम पर 10 करोड़ से अधिक खर्च किया गया है। सामान्यत: राजकीय यात्रा पर जाने वाले नेताओं की रहने-खाने की व्यवस्था मेजबान देश की सरकार करती है।
रक्षा नीति की स्थिति यह है कि अग्निवीर योजना नाकाम हो चुकी है और भारत की तीनों सेनाओं किसी भी तरीके से एक लम्बा युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं हैं। सैन्य साजो-सामान भारत में ही बनाने के सरकार के सभी दावे पूरी तरह से झूठे साबित हो चुके हैं। न तो लाइट काम्बेट एअरक्राफ्ट तेजस बना कर दुनिया के सामने उसका सफल प्रदर्शन किया जा सका है, न ही मेन बैटल टैंक ‘अर्जुन’ बन पाया है। ज़्यादातर कलपुर्जे विदेश से मंगवाए जाते हैं। जहां तक अर्थव्यवस्था का सवाल है, मोदी सरकार ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस की बातें बहुत करती है, परन्तु ज़मीन पर स्थिति यह है कि भारत में व्यापार करना दुनिया में सबसे मुश्किल है। यही कारण है कि पैसे वाले भारतीय लगातार देश छोड़ रहे हैं। खासकर 2022 के बाद तो इसमें और भी तेज़ी आई है। भारत में 2024 तक 20 लाख से ज्यादा लोगों ने नागरिकता छोड़ी है। इसमें लगभग आधे लोगों ने पिछले पांच सालों में देश छोड़ा है। शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि पिछले पांच साल में तकरीबन 10 लाख भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ चुके हैं। मोदी सरकार में अगर आप ट्रेनों में बैठेंगे तो आपको गंदगी, लेटलतीफी, स्तरहीन भोजन और कभी भी हो सकने वाली दुर्घटना के अंदेशों का सामना करना पड़ेगा। एयर इंडिया की ऐतिहासिक रूप से भयानक विमान दुर्घटना और इंडिगो के एकाधिकार वाले घोटाले को देखा जा सकता है। कौशल विकास मंत्रालय एकदम फ्लाप है।
आखिर में केवल इतना कहूंगा कि मोदी जी ने चुनाव जीतने के हथकंडे सफल करने में ही सारा वक्त बिता दिया है। शासन के मामले में उनकी विफलताएं ऐतिहासिक हैं। उन्होंने अमृत काल नामक एक फिकरा तैयार किया है, लेकिन क्या ऊपर बताया गया विवरण यह साबित करता कि आज देश वास्तव में अमृतकाल से गुज़र रहा है?
-लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं में अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक रह चुके हैं।



