रोज़गार में अनिश्चितता
पंजाब विधानसभा के एक दिवसीय विशेष सत्र में साल 2006 से चलती आ रही मगनरेगा योजना के स्थान पर केन्द्र सरकार की ओर से विकसित भारत गारंटी रोज़गार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (वी.बी जी राम जी) संबंधी संसद में पास कराए गये बिल को जो कानूनी शकल दी गई योजना को पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित करके रद्द करवा दिया गया है। पहले यह कानून कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार द्वारा बनाया गया था। 20 साल के सफर में इसकी हर स्तर पर चर्चा होती रही थी। चाहे इस योजना के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बड़ी रकम आरक्षित रखी जाती रही है और इससे हुए हर तरह के लाभ के बारे में भी हर स्तर पर चर्चा होती रही थी। यह भी एक पक्ष है कि केन्द्र सरकार द्वारा इस योजना अधीन राज्य सरकारों को दी जाती राशि और इसके साथ करवाए जाने वाले कामों संबंधी बड़े घोटाले भी सामने आते रहे हैं। इस रोज़गार योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के लिए जो काम कराये जाते रहे हैं उनकी उत्पादकता संबंधी होते रहे लेखा-जोखा संबंधी अक्सर नकारात्मक तथ्य सामने आते रहे हैं। परन्तु इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र के समाज के लिए इसके बड़े लाभ भी हुए। बेज़मीने और निचले स्तर पर जी रहे देश के करोड़ों ही ज़रूरतमंद परिवारों के लिए यह कानून एक ढाढस और आसरा ज़रूर बना रहा। इसने ग्रामीण आर्थिकता में उल्लेखनीय वृद्धि भी की। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण लोगों की खरीद शक्ति में इससे 14 प्रतिशत तक वृद्धि हुई थी। इसके साथ ही आंकड़ों के अनुसार इस योजना अधीन बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी भाग लिया। बड़ा ढाढस इसलिए भी था कि कानून अनुसार ज़रूरतमंदों को साल में 100 दिन काम का अधिकार प्राप्त था।
पिछले 20 सालों में समय-समय आए कई तरह के संकटों के समय यह योजना ज़रूरतमंदों के लिए बड़ा सहारा बनी रही। केन्द्र में भाजपा नेतृत्व वाली सरकार इस कानून के बारे में इस कारण भी हिचकचाती नज़र आती रही, क्योंकि यह डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री होते हुए निचले स्तर पर उठाया गया एक बड़ा उपयोगी कदम था। केन्द्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार इस बात की शिकायत ज़रूर करती रही कि राज्यों में इसके फंडों के दुरुपयोग किया जाता है। इनमें बड़े घोटाले नज़र आते रहे हैं और इसका ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने में बड़ा हाथ नहीं रहा। हम केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय इस योजना संबंधी उठाये जाते सवालों पर एतराज नहीं करते परन्तु इस योजना के दुरुपयोग संबंधी पारदर्शिता लाने, इसके फंडों के इस्तेमाल में अनुशासन लाने के साथ-साथ उसके दायरे में और उपयोगी कामों को शामिल करना चाहिए था। परन्तु अब इसके नाम से लेकर इसकी समूची भावना को ही बदल देने के साथ बड़े स्तर पर एतराज पैदा होना कुदरती है। नये कानून में इसको ज़रूरत के अनुसार उपयोगी कामों के साथ जोड़ने का ज़िक्र ज़रूर है परन्तु इसमें संबंधित परिवारों के लिए 125 दिन के रोज़गार की कोई गारंटी नहीं है।
नये कानून के अमली रूप में कारगर साबित होने के बारे में बड़ी शंका इस लिए भी बन गई है कि इसमें केन्द्र और राज्यों के खर्चे का अनुपात 60:40 प्रतिशत तय किया गया है, जबकि पिछले मगनरेगा में यह अनुपात 90:10 प्रतिशत था। इसी अनुसार यदि राज्य 40 प्रतिशत अपना योजदान डालने से अस्मर्थ होते हैं तो उन राज्यों में यह योजना पूरी नहीं होगी जिससे करोड़ों ही ज़रूरतमंद परिवार अपने काम के अधिकार से वंचित रह जाएंगे।
हम इस योजना संबंधी राज्यों द्वारा दिखाई जाती रही लापरवाही की नीति की सख्त आलोचना ज़रूर करते हैं। विधानसभा में हुई इस संबंधी बहस में मुख्यमंत्री ने 2007 से इस संबंधी जो आंकड़े पेश किए, उनसे यह साफ ज़ाहिर होता है कि चाहे अब की सरकार ने इस योजना का लाभ लोगों को दिलाने के लिए पहली सरकारों से बेहतर काम किया है परन्तु पिछली सरकारें इस योजना का पूरा लाभ लेने से अस्मर्थ रही हैं। 100 दिन की बजाय ये 33 दिन भी ज़रूरतमंदों को रोज़गार देने में असमर्थ रही हैं। हम केन्द्र सरकार को यह अपील करते हैं कि वह इस नई योजना अधीन ग्रामीण क्षेत्र के ज़रूरतमंदों के लिए निश्चित किए गये 125 दिनों के लिए काम देने के लिए कानूनी तौर पर पाबंद हो, जिससे बेहद ज़रूरतमंद परिवारों की रोज़गार संबंधी अनिश्चितता खत्म हो जाएगी अन्यथा इस नई योजना संबंधी उठे विवाद और शंकाएं जल्द किए दूर नहीं हो सकेंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

