क्रिकेट के मैदान में चीयर लीडर्स का जलवा

आईपीएल मैचों में जीत का जश्न किसी के भी नाम लिखा हो सकता है, लेकिन चीयर लीडर्स के लिए हर मैच एक जश्न है। पार्टनर और प्रायोजक के लिए यह राजस्व कमाने का बहुत ही उपयोगी जरिया है। विदेशों में फुटबाल, बॉस्केटबाल जैसे खेलों के इंटरवल के दौरान अपने करतब दिखाने वाली चीयर लीडर्स को लेकर पूर्वाग्रह कायम है। इन्हें सुंदर दिखने वाली ‘स्टंटबाज गुड़िया’ से लेकर ‘कमसिन चिड़िया’ जैसे संबोधनों से नवाज़ा जाता है। वहीं ‘एक्रोबेटिक, जिम्नास्टिक और डांस’ के मिश्रण को अपने काम में समेटे खुद चीयर लीडर्स मानती हैं कि खिलाड़ियों का जोश बढ़ाने से शुरू हुआ उनका काम आज अपने आप में एक खेल है।
हर चौके-छक्के पर एक मैच में औसतन 60-70 बार फिरकियां खा रहीं इन चीयर लीडर्स के लिए कैच पकड़ना भी खुशी की वजह है और कई बार कैच छूट जाना भी। फटाफट क्रिकेट के आईपीएल मेले की सभी टीमों की अपनी चीयर लीडर्स हैं और उनमें से कई विदेशी हैं। विदेशी मैदानों में, जैसे अमरीका के नैशनल फुटबॉल लीग में चीयर लीडर्स के लिए हॉफ टाइम स्लॉट होता है लेकिन आईपीएल में इसके विपरीत चीयर लीडर्स को कुछ ज्यादा ही झूमना पड़ रहा है। हालांकि अमरीका, जर्मनी, रूस जैसे देशों में इन्हें पिरामिड बनाने जैसे स्टंट भी दिखाने होते हैं जो उनके काम का सबसे खतरनाक हिस्सा है जबकि विरोध के कारण पिछले साल आईपीएल में कई चीयर लीडर्स ढोलक की थाप के साथ थिरकीं और भारतीय परिधान में बॉलीवुड का डांस भी करती रहीं। इसके बावजूद क्रिकेट में चीयर्स लीडर्स के काम को लेकर सवाल उठाने वालों की कमी नहीं। इन्हें खेल से ध्यान हटाने वाली और दर्शकों को ‘बहकाने’ वाली खूबसूरत बला भी कहा जाता है।
चीयर का चलन
खेलों की शुरुआत के साथ ही खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने वाली भीड़ मौजूद थी लेकिन संगठित रूप से चीयर करने का चलन 1880 के दशक में अमरीका से ही बाकी सभी देशों में फैला। अमरीका के हाई स्कूल्स से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर तक चीयर लीडिंग का क्रेज इतना ज्यादा है कि आज की कई सेलिब्रिटी भी अपने जमाने में चीयर लीडर्स रह चुकी हैं।
अकेले जर्मनी में ही चीयर लीडर्स की 200 से ज्यादा संस्थाएं हैं। शाब्दिक परिभाषा के हिसाब से चीयर लीडिंग एक शारीरिक गतिविधि है जो कभी-कभी प्रतिस्पर्धात्मक खेल में बदल जाती है। इसके तयशुदा कार्यक्रम में आमतौर पर एक से तीन मिनट के डांस, जम्प, चीयर्स और स्टंट से दर्शकों और खिलाड़ियों का जोश बढ़ाया जाता है।
चीयर लीडिंग की प्रकृति को देखते हुए इसे कई जगह खेल का दर्जा दे दिया गया है और इसकी विश्व चैम्पियनशिप है। विश्व चैम्पियनशिप में चीयर लीडर्स को दो हिस्सों में प्रदर्शन करना होता है। एक हिस्सा तय नियमों के अनुसार अनिवार्य होता है जबकि दूसरा अपनी मर्जी का। अमरीका के यूनिवर्सल  चीयर लीडिंग एसोसिएशन ने तो बाकायदा पत्र लिखकर अंतर्राष्ट्रीय (यूसीए) ओलम्पिक समिति से इसे खेल के तौर (आईओसी) पर ओलम्पिक में शामिल करने की मांग की है। अमरीका में चीयर लीडर के लिए बाकायदा कोच होते हैं और उनके ट्रेनिंग कैम्प लगाए जाते हैं।
जॉर्ज डब्ल्यू बुश, फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट, मडोना, कैटी कूज, मेयर्ल स्ट्रीप, शर्ली क्रो, जैसिका सिम्पसन, लिंडसे लोहान, कैमरून डियाज, हैले बैरी जैसी कई हस्तियां हाई स्कूल चीयर लीडर रह चुकी हैं।
चमक चीयर की
अकेले अमरीका में लगभग 35 लाख चीयर लीडर और डांस टीम मेम्बर्स हैं। 20 से अधिक प्रांतों के हाई स्कूल संगठन इसे खेल मानते हैं।
अमरीका और यूरोपीय देशों में चीयर लीडिंग को लेकर खासा रुझान है। 1994 में अपने प्रकाशन के 8 साल बाद ही अमरीकी चीयर लीडर मैग्जीन की प्रसार संख्या दो लाख और पाठक 10 लाख हो गए थे।
आईपीएल से पहले भी 28 अप्रैल 2006 को नेहरू स्टेडियम, मारागाओ (गोवा) में महिन्द्रा यूनाइटेड स्पोर्ट्स क्लब डे गोवा के मैच में पहली बार चीयर लीडर्स दिखाई दे चुकी हैं।
2011 के आईपीएल में मुंबई इंडियंस की 22 वर्षीय दक्षिणी अफ्रीकी चीयर लीडर्स ग्राबिएला पास्क्यूलोटो ने अपने ब्लॉग में आईपीएल पार्टियों में कुछ विदेशी खिलाड़ियों के व्यवहार पर लिखा था, ‘ये हमसे ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे हम चलता-फिरता गोश्त का टुकड़ा हों।’
100 साल का सफर
* 1880 में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में फुटबाल गेम के दौरान चीयर्स का गठन हुअ*  1890 में येल स्क्वाड ने मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में मैगाफोन का उपयोग किया।
*  1920 में चीयर स्क्वाड ने अपने रूटीन में टम्बलिंग और पिरामिड को शामिल किया।
*  1940 में पुरुषों के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के काल में अब महिलाएं भी इसमें आने लगीं।
*  1948 में चीयर के अगुवा लारेंस ‘हैर्की’ हैर्कीमर ने नेशनल एसोसिएशन का गठन किया।
* 1978 में सीबीएस टेलीवाइजेज कॉलेज छात्रों ने चीयरिंग चैम्पियनशिप का चलन शुरू किया।
*  1980 में स्टंट और पिरामिडों के जटिलतर होने के चलते सुरक्षा निर्देशों की जरूरत महसूस हुई।
*  1990 में डांस स्क्वाड के रूप में चीयर लीडर्स की एक शाखा तेज़ी से लोकप्रिय हुई।
*  2002 में अकेले अमरीका में चीयर लीडर्स और डांस टीम सदस्यों की संख्या लाखों के पार पहुंच गई।
* 2008 में भारत में इंडियन प्रीमियर लीग के जरिए पहली बार चीयर लीडर्स की शुरुआत हुई। (अदिति)