स्वास्थ्य सुधार में गिरावट का संकट

आपने पिछले दिनों देश के अनेक छोटे-बड़े अस्पतालों में मरीज़ों के प्रति दुर्व्यवहार, उपचार में लापरवाही, या मृत्यु के मुंह में जाते मरीज़ों की दुखद स्थिति पर समाचार पढ़े या देखे होंगे। कुव्यवस्था इतनी अधिक है कि मरीज़ के संबंधी-मित्र कानों को हाथ लगाकर तौबा करते हुए नज़र आते हैं। कानपुर के एक बड़े अस्पताल में एसी खराब होने से ही पांच मरीज़ों के लिए मृत्यु का दरवाज़ा खुल गया। ये सभी मरीज़ आपातकालीन (आई.सी.यू.) वार्ड में भर्ती थे। जब आई.सी.यू. की यह दशा है तो दूसरे वार्डों की गति क्या होगी, इसका अनुमान लगाना कठिन न होगा। गोरखपुर से मिले समाचार के अनुसार अस्पताल की लापरवाही की वजह से कुछ बच्चों की जान चली गई।स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच काफी चिंताजनक होती चली गई है और वैश्विक गुणवत्ता में भारत की स्थिति काफी खराब बताई जा रही है। लांसर की रिपोर्ट के अनुसार एक सौ पचानवे देशों की सूची में भारत अपने आस-पास के देशों चीन, बंगलादेश, श्रीलंका, यहां तक कि भूटान से भी पीछे है। रिपोर्ट में वर्णित है कि टी.बी. (तपेदिक), दिल की बीमारी, पक्षाघात, कैंसर, किडनी जैसी बीमारी का मुकाबला करने में भारत का कार्य विधान काफी खराब है। हालांकि 1990 के बाद कुछ सुधार ज़रूर देखा जा सकता है परन्तु वह काफी नहीं है। भारत में गरीबी घुटनों तक है। गरीबी की दलदल में फंसे लोग उपचार के लिए सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं। वहां लापरवाही के अवसर कुछ ज्यादा ही देखने में आते हैं। क्योंकि वे हर जगह धकेले जाते हैं, यहां भी अन्याय सहने को विवश अपने आप को पाते हैं। पूरी दुनिया में कायदे के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं पर जन-जन का अधिकार होना चाहिए परन्तु यहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा नहीं मिलने पर कितने ही लोगों को जान गंवानी पड़ती है और भाग्य को दोष देकर चुप रह जाना पड़ता है। अक्सर बेचारे यह उनके संबंधी यही कह कर रह जाते हैं कि भगवान के कामों के आगे किस का ज़ोर। पूर्व जन्म के कर्म ही ऐसे रहे होंगे।सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा को देखते हुए मध्य वर्ग के लोगों को प्राइवेट अस्पतालों की शरण लेने पर मजबूर होना पड़ता है। परन्तु वे आम तौर पर इतने महंगे होते हैं कि उपचार करवाते कमर टूट जाती है। किसी को अपना घर गिरवी रखना पड़ता है। किसी को ज़मीन, किसी को घर की महिलाओं के आभूषण बेचने पड़ते हैं। किसी को बैंक से कज़र् उठाना पड़ता है। अपना सब कुछ दाव पर लगा कर भी प्राण बच सकें तो गनीमत है। नहीं तो दोनों जहां से गये धन से भी, अपने आत्मीय जन से भी।यह बात भी कम गौरतलब नहीं कि भारत स्वास्थ्य सेवाओं पर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का सबसे कम खर्च करने वाले देशों में एक है। हम जी.डी.पी. का सिर्फ 1.3 प्रतिशत ही व्यय करते हैं जबकि ब्राज़ील और रूस क्रमश: 83 और 7.1 खर्च कर रहे हैं।
जिस रिपोर्ट का ज़िक्र किया गया है वह चेतावनी दे रही है कि यदि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता है तो गम्भीर बीमारियों के चलते हालात अधिक गम्भीर हो सकते हैं। कैंसर के मरीज़ तो बढ़ते ही जा रहे हैं। मधुमेह (शुगर) के मरीज़ों की भारत राजधानी बनता जा रहा है। भारत में छह करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और हर साल लगभग पंद्रह लाख लोग इसके संकट से ग्रस्त होते चले जा रहे हैं और अनेक जानें जा रही हैं इस धीमे ज़हर वाली बीमारी से। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट कर दिया था कि असंक्रामक बीमारियों की तुलना में कैंसर, डायबटीज़, हृदय रोग और सांस संबंधी परेशानी जैसी चार बीमारियों से दुनिया की एक तिहाई आबादी संकट में है। ज्यों-ज्यों लोग ज्यादा बीमार रहने लगे हैं त्यों-त्यों डाक्टरों की कमी एक विचारणीय मुद्दा बनता जा रहा है। देश में चौदह लाख डाक्टरों की कमी है। बताया गया है कि ओड़ीसा, छत्तीसगढ़, राजस्थान के ग्रामीण अस्पतालों में नब्बे प्रतिशत विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी है। आधुनिकता के मोह ने कहिए या शहरीकरण का मोह, गांव की तरफ जल्दी कहीं कोई डाक्टर जाने का रुख ही नहीं करता। इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बड़ी तेजी से निजीकरण हुआ है। जब देश स्वतंत्र हुआ था देश में निजी अस्पताल मात्र आठ प्रतिशत थे। आज यह आंकड़ा 93 प्रतिशत का है। सभी जानते हैं कि निजी अस्पतालों का काम मुनाफा बटोरना ज्यादा है। दवा निर्माता कम्पनियों से साठ-गांठ कर महंगी से महंगी दवा लिख कर मरीज़ को लूटना उनके लिए अपने व्यवसाय का हिस्सा हो चुका है। भारत जहां गरीबी और पिछड़ेपन से जूझ रहा है, स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में छोड़ना कितना मुनासिब हो सकता है।सरकार नि:शुल्क दवाओं के नाम पर खानापूर्ति ही कर रही  है। जबकि मुल्क के गिरते स्वास्थ्य पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी होता चला गया है। सरकार ही सुनिश्चित कर सकती है कि एंबूलैंस के अभाव में एक भी मरीज़ दम न तोड़ जाये। कोई बीमारी व्यक्तिगत नहीं होती। साफ पानी, साफ हवा का न होना भी जानलेवा साबित हो सकता है।