बढ़ रहे अपराध चिंता का विषय प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत

पंजाब में अपराधों के बढ़ते ग्राफ ने प्रदेश की फिज़ाओं में चिंता और परेशानी की लहर पैदा कर दी है। पंजाब पहले से ही नशीले पदार्थों की तस्करी और इनके प्रसार की समस्या से जूझ रहा है। यह भी इसी से जुड़ा एक तथ्य/सत्य है कि प्रदेश में घटित होने वाले अपराधों में से अधिकतर के पीछे नशीले पदार्थों से जुड़े लोगों का ही हाथ पाया गया है। अपराध यूं तो पूरे देश में बढ़े हैं, परन्तु पंजाब में पिछले कुछ वर्षों से नशे का सेवन करने वाले लोगों और नशीले पदार्थों की तस्करी में इज़ाफा होने से अपराधों की शिद्दत अधिक महसूस की जाती है। पंजाब में छीना-झपटी (स्नैचिंग) की घटनाएं विगत डेढ़-दो दशकों से बहुत बढ़ी हैं। इन घटनाओं के पीछे भी अधिकतर नशेड़ी युवाओं की मौजूदगी पाई गई है। इससे यह बात साफ होती है कि पंजाब में कानून-व्यवस्था के धरातल पर नशे के कदमों के निशान बहुत गहरे से पड़े हैं। प्रदेश में अपराधों की संख्या बढ़ने का एक और बड़ा कारण जेलों की भूमिका को भी माना जा सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार जेलें आज अपराध-सुधार केन्द्र अथवा सुधार गृह जैसी नहीं रही हैं। जेलों के भीतर आज अपराध होते ही नहीं, अपराध पलते हैं। इनकी चार-दीवारी के भीतर एक बार चले गये अपराधी के सुधरने की कई सम्भावना रहती ही नहीं, अपितु वह घोर अपराधी बन कर निकलता है। यह भी इस संदर्भ में एक चिन्तनीय तथ्य है कि पंजाब की जेलों के निर्माण के समय इनमें जितने लोगों की सामर्थ्य अनुमानित की गई थी, आज यह संख्या उससे 95 प्रतिशत अधिक बढ़ गई है। नि:संदेह बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप अपराधी और अपराधों का ग्राफ बढ़ना लाज़िमी होता है, और इसी हिसाब से प्रशासनिक तंत्र कानून-व्यवस्था के ढांचे का निर्धारण करता है, परन्तु जेलों में अपराधियों की बेतहाशा बढ़ती संख्या यह एहसास देती है कि अपराधों में वृद्धि हुई है। एक आंकलन के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या भी इसी अनुपात से बढ़ी है। प्रत्येक तीन मिनट बाद किसी महिला के विरुद्ध अपराध की रिपोर्ट दर्ज होती है। प्रत्येक 29 मिनट के बाद कोई महिला दुष्कर्म का शिकार हो जाती है। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि विकृत मानसिकता वाले अपराधियों ने मासूम बच्चियों और अवयस्क बालिकाओं को भी दुष्कर्म का शिकार बनाया है। पंजाब में हत्याओं की घटनाओं में वृद्धि और हत्याएं करते समय की निर्ममता, क्रूरता एवं पाशविकता का प्रदर्शन यह भी दर्शाता है कि अपराध करने वालों की मानसिकता किस सीमा तक कुंठित हो चुकी है। अपराध के धरातल पर रिश्तों की मार्मिकता पता नहीं कहां खो गई है। यहां भी नशे की वीभत्सता सामने आई है। पंजाब के अनेक हिस्सों से नशों की आपूर्ति के लिए नशेड़ियों द्वारा अपने माता-पिता, बहन-भाई अथवा पत्नी-बच्चों की हत्या किए जाने के समाचार प्रकाशित हुए हैं। पिछले महीने जलालाबाद में एक नशेड़ी द्वारा नशे के लिए पैसे न देने पर अपनी मां व बहन की हत्या किए जाने का समाचार मिला था। पंजाब के मानसा में एक बाप ने अपनी 17 वर्षीय बेटी को गला घोंट कर मार डाला। बठिंडा में एक महिला द्वारा अपने सात वर्षीय बेटे की बाथरूम में चाकुओं से गोद कर मार डालने की घटना तो अत्याधिक हृदय-विदारक है। पंजाब के ज़ीरकपुर में एक पति द्वारा चाय का पतीला मार कर पत्नी की हत्या कर दिए जाने की घटना भी बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है। संगरूर एवं बरनाला में लूट के लिए दो लोगों की हत्या कर दिए जाने की घटना आपराधिक विद्रूपता का दूसरा चेहरा है।
गांवों में ज़मीन के लिए हत्याएं होना भी अब आम बात हो गई है। पंजाब की ग्रामीण पृष्ठभूमि में पहले भी ऐसी हत्याएं होती रही हैं। अजनाला में एक परिवार की तीन महिलाओं की हत्या के पीछे भी भूमि विवाद को बताया जा रहा है। पंजाब के पटियाला में एक पैट्रोल पम्प पर हुई हत्या भी काफी दिल दहला देने वाली थी। पंजाब में पुलिस तंत्र को कमिश्नरों की सत्ता तले लाये जाते समय यह दावा किया गया था कि इससे अपराधों की संख्या में कमी लाई जा सकेगी, परन्तु यह आस निरन्तर निरास बनती गई है। स्नेचरों की जुर्रत तो यह हो गई है कि वे दीदा-दानिश्ता महिलाओं को उनके घर-द्वार पर और यहां तक कि घरों में घुस कर लूटने और पीटने लगे हैं। पंजाब में गैंग वार की घटनाओं और गैंगस्टरों द्वारा की जाने वाली घटनाएं भी चौंकाने वाली हैं। प्रदेश में दोस्ती एवं दुश्मनी के धरातल पर होने वाली हत्याओं में भी इज़ाफा हुआ है। कुल मिला कर पंजाब आज एक बार फिर अपराधों के दहाने पर आ खड़ा हुआ है। अपराधी सरे-आम दनदनाते फिरते हैं, और आम लोग अपनी जान बचाने के लिए घरों के पिछले से पिछले कमरों में दुबकते जाने को विवश हो रहे हैं। एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब लूट, डाकाज़नी और छीना-झपटी के मामलों में देश में चौथे स्थान पर है। पिछले पांच वर्ष में पंजाब में डकैती के 2700 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं, जबकि ऐसी घटनाओं की संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। हम समझते हैं कि समाज शास्त्र में नि:संदेह समाज और अपराध का स्वाभाविक रूप से आपसी रिश्ता है। किसी भी समाज को पूर्ण रूप से अपराध-मुक्त कर पाना कदापि सम्भव नहीं है। तथापि, समुचित प्रशासनिक प्रबंधन, सक्रियता और सूझ-बूझ से अपराधों की दुनिया को नियंत्रित किया जा सकता है। गैंगस्टरों की गतिविधियों पर अंकुश लगा कर जेलों एवं पुलिस तंत्र की व्यवस्था में सुधार करके भी आपराधिक मानसिकता को संवारा जा सकता है। महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक रोकथाम के लिए अधिक सतर्कता की बड़ी ज़रूरत है। हम यह भी समझते हैं कि दृढ़ इच्छा-शक्ति से सरकार एवं पुलिस प्रशासन चाहें, तो समाज के कंधों पर आपराधिक झूले का भार अवश्य कम कर सकते हैं।