प्रदूषण एवं रोज़गार की चुनौती


पंजाब में प्रदूषण की समस्या से निपटना अत्याधिक कठिन कार्य है। प्रदेश का समूचा प्रशासनिक तंत्र ही इस प्रकार का बन गया है कि किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिए बड़ी जद्दोजहद के बाद भी बहुत कम प्राप्ति होती है। राजनीति, पुलिस का ढांचा एवं प्रत्येक धरातल पर अफसरों में व्यापक  स्तर तक उपजी रिश्वतखोरी ने समूचे ढांचे को छिद्रपूर्ण बना दिया है, जिसमें बहुत कुछ छनता रहता है। शहरों में फैक्टरियों से निरन्तर निकलते दूषित धुएं ने खेतों मेें पराली तथा नाड़ तक का सफर कर लिया है। यह सब कुछ इतना गडमड हो चुका है कि लोगों को नित्य-प्रति धुएं एवं मिट्टी के गुब्बार में से निकलना पड़ता है। ऐसे वातावरण में विचरण करते मानव शरीर का क्या हाल होता होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। लाख यत्नों के बावजूद कोई भी सरकार पानी के प्रदूषण पर काबू नहीं पा सकी। नदियों, नालों, नहरों एवं दरियाओं का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि वह मानव एवं जानवरों के पीने योग्य नहीं रहा। खेतों को दिए जाने वाला यह पानी विषाक्त फसलें एवं सब्ज़ियां उगाने का साध्य बनता है। यदि प्रदूषण बोर्ड के कुछ अधिकारी सख्ती के साथ कदम उठाने भी लगते हैं तो उनके कदम अनेक प्रकार के दबावों के कारण थम जाते हैं। प्रदूषण फैलाने वाले इन स्रोतों में ईंटें बनाने वाले भट्ठे भी शामिल हैं। 
प्रदेश में लगभग तीन हज़ार ईंट भट्ठे हैं, जो निरन्तर विषाक्त धुआं छोड़ते रहते हैं। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल एवं पंजाब प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने पिछले समय में इस दिशा में कड़े कदम उठाए हैं। यहां तक कि भट्ठा मालिकों को कुछ महीनों के लिए पूरी तरह से भट्ठों को बंद करने के कड़े निर्देश जारी कर दिए गए थे। इसके बावजूद कई ज़िलों से भट्ठे चलने की शिकायतें भी मिलती रही हैं। नि:संदेह इस उद्योग से निपटने के दौरान कई पक्षों से अत्याधिक सचेत एवं विचारशील होना पड़ेगा। भट्ठों का संबंध श्रमिकों के साथ होता है। इनके बंद होने से लाखों मजदूर बेकार हो गए हैं। इन बेरोज़गारों के लिए कोई अन्य मार्ग तलाश किए जाने की ज़रूरत है। किसी भी ऐसी स्थिति में सरकार को रोज़गार के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करना भी ज़रूरी समझना चाहिए। अब नये प्राप्त हुए निर्देशों के अनुसार पुरानी तकनीक के साथ चलने वाले भट्ठे पूरी तरह से बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं। चाहे राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पहले जो निर्देश जारी किए थे, उनके अनुसार भट्ठों में नई हाई- ड्राफ्ट मशीनरी लगाने एवं उसके अनुरूप भट्ठों का निर्माण करने के ब़गैर उन्हें चलने नहीं दिया जाएगा। कुछ वर्षों से ट्रिब्यूनल एवं प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की ओर से ऐसे निर्देश भट्ठा मालिकों को दिए जा रहे हैं। नई तकनीक के साथ लगभग 400 भट्ठे बनाए भी जा चुके हैं। परन्तु दूसरे हज़ारों भट्ठा मालिकों के लिए हाई-ड्राफ्ट भट्ठा बनाना इसलिए अतीव कठिन है क्योंकि इस पर 40 लाख रुपए के लगभग खर्च आता है, और इसके अनुरूप भट्ठा बनाने के लिए लगभग दो महीने का समय लगता है। नई तकनीक के भट्ठों को चालू करने की इजाज़त दे दी गई है, परन्तु आगामी समय में अन्य भट्ठों का नवीकरण न किए जाने के कारण ईंटों की कमी हो जाने का खदशा है, जिससे ईंटों की कीमतें बहुत बढ़ सकती हैं। इस प्रकार की उत्पन्न हुई स्थिति से लाखों मज़दूरों के रोज़गार का प्रश्न भी आ खड़ा हुआ है। 
भट्ठा मालिकों को तो पहले ही अन्य तकनीकों जैसे सीमेंट एवं फ्लाई-ऐश से बनने वाली ईंटों के बढ़ते प्रयोग से चिंता पैदा हो चुकी है। इसलिए सरकार को इस उद्योग को चलाए रखने के लिए स्वयं हाथ आगे बढ़ाना चाहिए। उन्हें बिना ब्याज ऋण प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि नई तकनीक अपनाने से वे इस क्षेत्र में बने रह सकें। प्रदेश में सभी प्रकार के निर्माण कार्यों में पिछले लम्बे समय से भट्ठों का बड़ा योगदान रहा है। भविष्य में भी यह योगदान तभी बना रह सकता है यदि सरकार सहानुभूति के साथ इनकी कठिनाइयों को सुन कर स्वयं सहायता का हाथ बढ़ाने के लिए आगे आए ताकि यह उद्योग निरन्तर अपना कार्य जारी रख सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द