बच्चों के दिमागी विकास को प्रभावित करता वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण का स्तर इन दिनों खतरनाक स्तर पर है। कमोवेश सर्दियों के मौसम में हर साल वायु प्रदूषण के कारण ऐसे ही चिंताजनक हालात देखने को मिलते हैं। वायु प्रदूषण अब ऐसी वैश्विक समस्या बन चुका है, जिससे अनेक तरह की खतरनाक बीमारियां जन्म ले रही हैं और लाखों लोग असमय ही काल के ग्रास बन रहे हैं। भारत में भी वायु प्रदूषण का प्रभाव खतरनाक रूप से पड़ रहा है। वायु प्रदूषण का खतरा सबसे ज्यादा छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर बना है क्योंकि वे बहुत संवेदनशील होते हैं और जहरीली हवा की चपेट में जल्दी आते हैं। दरअसल व्यस्कों की तुलना में छोटे बच्चे ज्यादा तेज़ गति से सांस लेते हैं, जिससे उनके शरीर में प्रदूषण के कण तेज़ी से तथा ज्यादा मात्रा में चले जाते हैं, इसी कारण वायु प्रदूषण छोटे बच्चों को बहुत जल्दी अपनी चपेट में लेता है और उनमें अस्थमा से लेकर फेफड़ों के संक्रमण तक कई बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। बेहद प्रदूषित दिल्ली-एनसीआर हो या देश के अन्य प्रदूषित इलाके, छोटे-छोटे बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं। हवा में बढ़ती नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें और प्रदूषक कण बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं। प्रदूषित हवा में जो जहरीले 2.5 नैनोपार्टिकल होते हैं, वे छोटे बच्चों के फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर उन्हें बीमार बना रहे हैं। वायु प्रदूषण छोटे बच्चों की श्वसन प्रणाली को बहुत जल्द अपनी चपेट में लेता है, जिससे उनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। बच्चों में प्रदूषित हवा के कारण निमोनिया, फेफड़ों की समस्याएं, कमजोर दिल, ब्रोंकाइटिस, साइनस और अस्थमा जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। प्रदूषित हवा के कारण फेफड़े कमजोर होने से बच्चे अन्य बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। वायु प्रदूषण के कारण समय पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं और ये दोनों ही शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे अगर बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है।
बच्चों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को लेकर दुनियाभर में समय-समय पर परेशान करने वाली रिपोर्टें सामने आती रही हैं। किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है लेकिन बेहद चिंताजनक स्थिति है कि कई अध्ययनों में बताया जा चुका है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी वायु प्रदूषण का घातक असर पड़ता है। एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है। अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रह रही माताओं के नवजात शिशु के फेफड़े सिकुड़ने का भी खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण बच्चों के दिमाग को भी कमजोर कर रहा है। यूनीसेफ की ‘डेंजर इन एयर’ रिपोर्ट के अनुसार भी बढ़ता प्रदूषण दिमाग को खराब कर सकता है, जिससे बच्चों के दिमागी विकास पर असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित कण फेफड़ों के जरिये शरीर के कई दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं और कुछ मामलों में ये बच्चों की दिमाग की कार्यप्रणाली पर भी असर डाल सकते हैं। हालांकि प्रदूषण का सीधा संबंध दिमाग की कार्यप्रणाली से नहीं है लेकिन लम्बे समय तक प्रदूषण रहने पर यह गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण हवा में नाइट्रोजन, सल्फर जैसी विषाक्त गैसों का स्तर बहुत ज्यादा हो गया है और जब बच्चे सांस के जरिये इसी प्रदूषित हवा को अपने शरीर में लेते हैं तो इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य और विकास पर पड़ता है। ये विषाक्त गैसें बच्चों के दिमाग तक पहुंचकर उनके मानसिक और बौद्धिक विकास को धीमा कर देती हैं। नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दो हजार से भी ज्यादा लोगों पर एक व्यापक अध्ययन किया और अध्ययन के दौरान बच्चों की मानसिक सेहत पर वायु प्रदूषण के प्रभावों का आकलन किया गया। कई दशकों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि शहरों में प्रदूषित वायु और वायु प्रदूषण के बीच पलने-बढ़ने वाले बच्चों में व्यस्कावस्था में मानसिक सेहत संबंधी विकार होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।
बच्चों पर प्रदूषण के कहर को लेकर वैश्विक स्तर पर कई चिंता पैदा करने वाली रिपोर्टें आ चुकी हैं। यूनीसेफ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत मंत लगभग सभी स्थानों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस, दमा तथा फेफड़ों से संबंधित बीमारियों और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से दस प्रतिशत से अधिक की मौत वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण होती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अधिकांश बच्चों के मस्तिष्क की कार्यप्रणाली वायु प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण बच्चे मंदबुद्धि हो रहे हैं, जन्म के समय कम वजन के बच्चे पैदा हो रहे हैं। गर्भ में भी बच्चे वायु प्रदूषण के प्रभाव से अछूते नहीं हैं, उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो रहा है। बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं, उनमें दमा और हृदय रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वायु प्रदूषण के कारण हर साल लाखों बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के कारण हो रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि दुनियाभर में पांच वर्ष से कम आयु के करीब छह लाख बच्चों की मृत्यु प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है, जिनमें से एक लाख से भी ज्यादा बच्चे भारत के ही होते हैं। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सर्वाधिक मौतें अफ्रीका तथा एशिया में होती हैं। डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार विश्वभर में करीब 90 प्रतिशत बच्चे, जिनकी कुल संख्या लगभग 1.8 अरब है, ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। भारत जैसे विकासशील देशों में तो स्थिति और भी खराब है, जहां करीब 98 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक प्रदूषित माहौल में रहते हैं। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी विश्वभर में करीब दो अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 62 करोड़ दक्षिण एशियाई देशों में हैं। अमरीका के एक गैर सरकारी संगठन ‘हैल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (एच.ई.आई.) द्वारा वायु प्रदूषण के दुनिया पर प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि भारत में स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा खतरा वायु प्रदूषण है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण अब मौत के लिए सबसे बड़े खतरे वाला कारक बन गया है और नवजातों में 21 प्रतिशत मौत का कारण घर और आसपास का वायु प्रदूषण है। बहरहाल, बच्चों पर वायु प्रदूषण के पड़ते दुष्प्रभावों और हर साल इसके कारण हो रही लाखों बच्चों की मौतों को लेकर पूरी दुनिया को अब बहुत संजीदगी से इस पर विचार मंथन करने और ऐसे उपाय किए जाने की आवश्यकता है, जिससे मासूम बचपन प्रदूषण का इस कदर शिकार न बने।

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