एक मज़बूत कवच

उस समय वह घर पर अकेला था। मन उदास था। वह अपनी ही कविताओं का ऊंची आवाज़ में पाठ करने लगा। अकेलेपन की बेचैनी से छुटकारा मिल गया था। हां, थोड़ी थकान ज़रूर महसूस होने लगी। चाय पीने की इच्छा जाग उठी। किचन में पहुंच जाता है चाय बनाने के लिए। वहां पहुंच उसने देखा सारे बर्तन जूठे पड़े हैं। काम वाली नहीं आई। वह चाय नहीं बनाता, बर्तन साफ करने लगता है। बर्तन साफ करते समय वह महसूस करता है, थकान दूर हो गई है। ताज़ापन महसूस हो रहा है। बर्तन साफ कर वह बाथरूम में पहुंच जाता है। वहां कुछ मैले कपड़े पड़े हैं। वह कपड़े धोने लगता है। तभी एक बात याद आती है। होंठों पर मुस्कान नाच उठती है और वह कह उठता है—उसका कहना शत-प्रतिशत सच था। कई वर्ष पहले की बात है। वह प्रसिद्ध साहित्यकार ‘रवि’ जी से मिलने उनके घर पहुंचा, घंटी बजाई। एक युवक ने दरवाज़ा खोला। वह बोला—‘रवि’ जी से मिलना है। ‘आईए’। वह अन्दर प्रवेश करता है। सामने एक नल के पास बैठे ‘रवि’ जी कपड़े धो रहे थे। युवक के साथ कमरे में प्रवेश करता। युवक उसे कुर्सी पर बैठने का संकेत करता है, तभी रवि जी भी आ जाते हैं। वह कह उठता है—‘क्षमा चाहता हूं, बिना पूर्व सूचना के आ गया।’ तब रवि जी का उत्तर था—‘सूचना देकर आते तो मेरा यह रूप कैसे देखते। कपड़े धोने के बाद बर्तन साफ करूंगा। पढ़ना, लिखना और गृह कार्य करते रहना एक मज़बूत कवच है, जो हमें चिन्ताओं से बचाता है।

—के.एल. दिवान
मार्फत दीपक दुआ
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