विश्व बैंक ने दिया गरीबी का नया आंकड़ा

विश्व बैंक ने गरीबी का नया आंकड़ा दिया है जिसमें 167 रुपए से कम प्रतिदिन कमाने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया है। प्रतिदिन के 167 अर्थात 5010 रुपए प्रतिमाह। यदि किसी आदमी को पांच हजार रुपए माह की तनख्वाह मिलती है तो वह अत्यंत गरीब की श्रेणी में है। पिछले दिनों भारत की उत्तर प्रदेश सरकार ने भी गरीब कौन है, यह निर्धारित किया था। उन्होंने लोगों से गरीबी रेखा के राशन कार्ड वापस देने की गुहार लगायी थी और यह बताया था कि गरीब कौन है। गरीबी के जो आंकड़े उन्होंने दिए थे, उस पर देशभर में व्यंग्य किया गया। असल में व्यवस्था ही हमारे साथ व्यंग्य कर रही है, हर पल कोई न कोई व्यंग्य किया जा रहा है।
गरीबी के सारे आंकड़े व्यर्थ हैं और केवल कागज़ों पर हैं। व्यक्ति की वास्तविक समस्या तो धरातल पर आती ही नहीं है और सरकारें आसमानी समस्या पर चर्चा करती रहती हैं, ऐसी आसमानी समस्या के निपटान के तरीके खोजे जाते हैं। अगर हम ध्यान से देखें तो कोई पांच हज़ार रुपए कमाने वाला गरीब नहीं है बल्कि वह तो मर ही चुका होगा क्योंकि पांच हजार रुपए में या तो भिक्षा मांगकर जिया जा सकता है या फिर आत्म-सम्मान की खातिर मौत को गले लगाना होता है। मैंने एक व्यक्ति को देखा जिसे असाध्य रोग था। डाक्टर ने उसके हाथ काटने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया और जवाब दिया कि मेरे पीछे कोई नहीं है जो मेरी सेवा कर सके। अगर मेरे हाथ काटे गए तो मुझे भीख मांगनी होगी इसलिए मैं मौत के आगोश में सोने को तैयार हूं। अंतत: वह व्यक्ति उस असाध्य रोग से मर गया।
उत्तर प्रदेश सरकार ने भी जो आंकड़ा गरीबी का दिया, उसमें कोई भी आदमी जीवित नहीं रह सकता। जीवित रहने के लिए केवल हवा और वायुमंडल ही नहीं चाहिए अपितु वह सब कुछ चाहिए जो एक जीवन के लिए ज़रूरी है। मंगल पर जीवन तलाश किया जा रहा है और वहां केवल हवा पर चर्चा हो रही है जबकि अभी उन्होंने वहां  ईंधन, गेहूं, चावल, टेलीविजन, कपड़े, बिजली पर तो चर्चा ही नहीं की है। अनेक युवा बेरोज़गार हैं। वे तो 167 रुपए प्रतिदिन भी नहीं कमा रहे लेकिन उनके माता-पिता के घर हैं जहां वे रह रहे हैं। अब घर होने की वजह से सरकार उन्हें गरीब नहीं मानेगी लेकिन वे गरीबी के शिखर पर हैं। गरीबी केवल किसी से खाना लेकर ही खाना नहीं है अपितु एक पान वाले से सिगरेट उधार लेकर पीना भी गरीबी ही है। सरकारें यहीं चूक कर जाती हैं जो व्यक्ति के वास्तविक अवचेतन को नहीं समझ पाती हैं। कोई व्यक्ति एक दिन 167 रुपए कमा लेता है और अगले पांच दिन बेरोज़गार रहे, तब उस स्थिति को क्या कहा जाए? घर, मकान, भैंस गाय, मोटरसाइकिल किसी भी व्यक्ति के पास हो सकती है लेकिन गरीबी का अलग मसला है। यह सब होकर भी आदमी गरीब हो सकता है। जैसे एक शिक्षित बेरोजगार युवक को लोग दस हजार रुपए माह में काम करने को कह रहे हैं जबकि खर्च उसका बीस हजार रुपए माह है।
गरीबी का मानक तय करने वाले केवल एक व्यक्ति का मानक तय करते हैं जबकि भारत में एक व्यक्ति ही सारे परिवार को पालता है जहां उसकी ज़िम्मेदारी उसके वृद्ध मां-बाप, उसकी पत्नी और उसके दो बच्चे भी हैं। एक कुंवारी बहन भी उसकी ज़िम्मेदारी है जिसके विवाह में ससुराली नुमा डकैत दहेज लूटने को एक पैर पर बैठे हैं।  एक शहरी व्यक्ति अपने बीवी बच्चों के साथ बीस से पच्चीस हजार रुपए माह में मुश्किल से जीवन यापन करता है लेकिन सरकारें गरीब ऐसे लोगों को मान रही हैं जो इस धरती पर कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। सारे आंकड़े काल्पनिक हैं जो मर्सिडीज में घूमने वाले लोगों ने बनाए हैं। (युवराज)