शिक्षकों को नियमित करने का फैसला

पंजाब सरकार द्वारा प्रदेश के 8736 शिक्षकों की सेवाएं नियमित किये जाने का फैसला नि:सन्देह रूप से अनेक वर्गों के लिए  सुकूनदायी हो सकता है। खास तौर पर शिक्षक वर्ग की इससे चिरकाल से चली आ रही एक बड़ी मांग पूरी हो जाती है। सरकार की ओर से इस संबंध में बाकायदा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार प्रदेश के कच्चे और खासकर ठेका कर्मचारियों को पक्का और नियमित करने की प्रक्रिया को आगे भी जारी रखा जाएगा। एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार नियमितीकरण की कतार में वर्तमान तक 36 हज़ार से अधिक कर्मचारी प्रतीक्षारत हैं।  8736 शिक्षकों को पक्का किये जाने का फैसला इसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है।  अधिसूचना में  बताया गया है कि भविष्य में उन कर्मचारियों की सेवाएं  बाकायदा नियमित की जा सकेंगी जो वर्षों से अस्थायी चले आ रहे हैं, अथवा जो किसी एक अथवा दूसरे कारण और कमी के दृष्टिगत नियमित नहीं किये जा सके। अब चूंकि इस निर्णय की घोषणा स्वयं मुख्यमंत्री ने की है, अत: इस पर अमल किये जाने की सम्भावनाएं भी स्वत: बलवती हो जाती हैं। इस अधिसूचना के जारी होने की पुष्टि लाभान्वित हुए शिक्षकों के एक प्रतिनिधि ने भी की है। इन शिक्षकों में से अनेक ऐसे भी हैं  विगत लगभग डेढ़ दशक से अस्थायी ही चले आ रहे थे। प्रत्येक नई सरकार उनके लिए वायदों और घोषणाओं का अम्बार तो लगाती रही, किन्तु किसी भी सरकार के काल में यह वायदा व़फा नहीं हुआ। इस संबंध में उन्होंने पिछले समय में मुख्यमंत्री के आवास का घेराव भी किया था। ठेका कर्मचारियों की ओर से तो अभी भी लुधियाना-संगरूर मार्ग पर धरना दिया जा रहा है।
अब प्रदेश की भगवंत मान के नेतृत्व वाली ‘आप’ सरकार ने बेशक इस मांग को स्वीकार कर लिया है, और इस फैसले में यह भी शामिल किया गया है कि यह प्रक्रिया बाकायदा सभी विभागों में बकाया पड़ी आसामियों के पूरा होने तक जारी रहेगी।  नई नीति संबंधी फैसले की प्रति प्रदेश के सभी विभागों में भेज दी गई है। तथापि इस एक फैसले के साथ अनेक अन्य यक्ष प्रश्न-चिन्ह भी उठ खड़े होते हैं जो प्रदेश की मौजूदा सरकार की स्थितियों के समक्ष तत्काल उत्तर की भी मांग करते हैं।  नि:सन्देह पंजाब की मौजूदा सरकार की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि अनियोजित तरीके से नई नीतियों अथवा कार्यक्रमों पर अमल किया जा सके।  चुनावी लाभ लेने के लिए अन्य राजनीति दलों की भांति आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान अनेकानेक वायदों और दावों की घोषणा की थी। प्रदेश में मुफ्त की चुनावी रेवड़ियां बांटने जैसी घोषणाएं भी बहुत हुई थीं हालांकि इनमें से अधिकतर लागू नहीं हो सकीं। सभी महिलाओं को एक हज़ार रुपये महीना देने की घोषणा भी अभी अधर में पड़ी है। इसके पीछे का बड़ा कारण भी प्रदेश की वित्तीय स्थिति का दुर्बल होना, और नये वित्तीय स्रोतों की तलाश न हो पाना ही माना जाता है। सिर्फ इस एक मद पर मौजूदा सरकार को 11,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था। मुफ्त बिजली और बिजली सबसिडी के 23,646 करोड़ रुपये के साथ-साथ अन्य सुविधाओं पर भी 10,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
 अब मौजूदा सरकार द्वारा कर्मचारियों अथवा शिक्षकों को पक्का और उनके नियमितीकरण का फैसला भी इसी संदर्भ में लिया जा सकता है।  नि:सन्देह किसी भी सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा उसके कर्मचारियों को दिये जाने वाले वेतन, भत्तों एवं अन्य सुविधाओं पर खर्च होता है। यह भी तय है कि सरकारी कर्मचारी ही किसी सरकार का मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी हुआ करते हैं, अत: उचित और समयानुकूल वेतन-भत्तों और आवश्यक सुविधाओं पर उनका पहला अधिकार बनता भी है। पंजाब में भी नि:सन्देह रूप से सरकारी शिक्षक और अन्य कर्मचारी अच्छा जीवन यापन करने के लिए अच्छे वेतन और नौकरी की सुरक्षा पाने के हकदार हैं। शिक्षकों के लिए तो यह सुविधा अधिक उपयोगी मानी जाती है क्योंकि शिक्षक को राष्ट्र-निर्माता माना जाता है, और कि एक शिक्षक ही अपने भावी समाज खासकर भावी युवा पीढ़ी को सही दशा और दिशा प्रदान कर सकता है। अत: किसी भी समाज और देश की सरकार को अपने कर्मचारी वर्ग खास तौर पर शिक्षकों को संतुष्ट रखना और उनकी नौकरी की सुरक्षा के प्रति आवश्वस्त रखना आवश्यक हो जाता है। इस दृष्टिकोण से मौजूदा पंजाब सरकार का यह फैसला श्रेयस्कर और समाज के कई वर्गों लिए सुखकर हो सकता है, परन्तु मूल प्रश्न फिर वही मुंह-बाये सामने आता है कि भगवंत मान की सरकार इस हेतु समुचित राशि एकत्र करने के लिए नये आय स्रोतों की तलाश कैसे करेगी। पूर्व घोषित अनुमानों के अनुसार चुनाव-पूर्व, घोषित सुविधाओं के लिए किसी भी नई बनी सरकार को कुल 33000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आवश्यकता पड़नी थी। सरकार को विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए 50,000 करोड़ रुपये की दरकार तो पहले से ही है।
हम समझते हैं कि नि:सन्देह यह एक अच्छा फैसला है, और एक प्रकार से यह शिक्षकों एवं कर्मचारी वर्ग और उनके परिवारों के लिए दीपावली का तोहफा भी हो सकता है। परन्तु  यह सरकार बजट अनुमानों के अतिरिक्त होने वाले खर्च की पूर्ति कैसे और कहां से करेगी, इसका खुलासा सरकार ने कभी भी नहीं किया।  कितना अच्छा हो, यदि सरकार ऐसी योजनाओं एवं फैसलों हेतु नये वित्तीय स्रोतों की तलाश करे, और बजट को संतुलित रखने हेतु योजनाएं भी तैयार हों। अभी तक की सरकार की कारगुज़ारी के अनुसार उसने खर्च करते जाने को ही प्राथमिकता दी है। सरकार की आय एवं राजस्व में वृद्धि की अभी तक कोई योजना सामने आती दिखाई नहीं दी है।