महिला बैडमिंटन का युगल वर्ग आशा की किरण है ट्रीसा-गायत्री की जोड़ी

हालांकि बैडमिंटन के एकल वर्ग में भारत के दोनों पुरुष व महिला खिलाड़ियों ने विश्व मंच पर अपना जबरदस्त दबदबा कायम किया हुआ है, लेकिन युगल वर्ग में कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं हो सकी है। हालांकि पुरुष वर्ग में सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी व चिऱाग शेट्टी की जोड़ी ने रह रहकर कुछ खुश होने के क्षण भारतीय खेल प्रेमियों को अवश्य दिए हैं, लेकिन महिला वर्ग में ज्वाला गुट्टा व अश्वनि पोनप्पा की जोड़ी के बाद कुछ खास नज़र नहीं आया है। बहरहाल, अब ट्रीसा जॉली व गायत्री गोपीचंद पुल्लेला की जोड़ी ने दो अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार सेमीफाइनल में पहुंचकर और अपने इस सफर में टॉप टेन की जोड़ियों पर निर्णायक जीत दर्ज करके आशा की नई जोत अवश्य जलाई है।
गौरतलब है कि बैडमिंटन में एकल व युगल खेल एक दूसरे से बहुत भिन्न होते हैं। इसलिए दो अच्छे एकल खिलाड़ियों की जोड़ी बनाकर कोर्ट पर उतारना जीत की गारंटी नहीं होती। व्यक्तिगत तौर पर उनसे जो कमजोर खिलाड़ी होंगे, उनकी जोड़ी भी उन्हें आसानी से हरा देगी। इसलिए एकल व युगल खिलाड़ियों को अलग-अलग तरह से ट्रेनिंग दी जाती है। इन दोनों वर्गों के कोच भी अलग-अलग ही होते हैं। यही वजह है कि गायत्री के पिता गोपीचंद जो साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, श्रीकांत आदि को चौंपियन बना चुके हैं, वह अपनी बेटी को कोच नहीं करते हैं। ट्रीसा व गायत्री की जोड़ी को मथायस बो कोच कर रहे हैं। दरअसल, युगल वर्ग में अपने पार्टनर को अपने लाइफ पार्टनर की तरह ट्रीट करना पड़ता है। सारा दिन दोनों एक-दूसरे के साथ रहने की कोशिश करते हैं। यह बात लोगों को शायद अजीब लगे, लेकिन इसी से ही सकारात्मक परिवर्तन आता है। इस बात को आगे बढ़ाते हुए एक बार सात्विक ने कहा था, ‘डबल्स विवाह की तरह होता है, दोनों पार्टनर्स को ही मिलकर फिक्स करना होता है। चिराग हमेशा मुझे प्रोत्साहित करता है। वह सदैव मेरे पीछे दीवार बनकर खड़ा रहता है। डबल्स में हर समय एक-दूसरे को सपोर्ट करना ज़रूरी होता है। आपका पार्टनर आपकी यात्रा में पार्टनर होता है।’
बहरहाल, ट्रीसा व गायत्री की जोड़ी इस बार की आल इंग्लैंड चैंपियनशिप्स में पहुंची, जहां कोरिया की बाएक ना हा और ली सो ही की जोड़ी से वह 10-21, 10-21 से सीधे सेटों में हार गईं। 45 मिनट से अधिक चला यह सेमीफाइनल भारतीय जोड़ी के लिए रक्षात्मक खेल का मास्टरक्लास सबक था, जिसने उन्हें इतना कुंठित कर दिया कि लम्बी रैलियों के कारण वह गलतियां करती रहीं और उनका आक्रमक स्वभाव कोरियाई जोड़ी के डिफेंस के सामने चरमरा कर रह गया। सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए टॉप टेन की तीन जोड़ियों पर ट्रीसा व गायत्री ने अपने आक्रमक खेल से जीत दर्ज की थी। लेकिन कोरियाई जोड़ी ने उन्हें आक्रमक होने का अवसर ही नहीं दिया कि डिफेंस करते हुए शटल को कोर्ट के पिछले हिस्से में परफेक्ट लांग लिफ्ट करती रहीं। स्मैश करने की लेंथ ही नहीं दी। कोच ने ट्रीसा व गायत्री से कहा भी कि अपनी डिफेंस पर भरोसा करो और अवसर मिलने पर ही किल के लिए जाओ, लेकिन वह प्लान बी का पालन न कर सकीं। यह ट्रीसा व गायत्री के लिए बड़ा सबक था कि हर जोड़ी को एक ही तरह से पराजित नहीं किया जा सकता। समय अनुसार तरकश में से अलग-अलग तीर निकालने होते हैं, चौंपियन बनने के लिए। अनुभवी कोरियाई जोड़ी ने ट्रीसा व गायत्री के खिलाफ डिफेंस का तीर सफलतापूर्वक निकाला।
इसके बावजूद इस पराजय में उम्मीद की एक किरण है। लगातार दो प्रतियोगिताओं के सेमीफाइनल में पहुंचकर ट्रीसा व गायत्री की जोड़ी ने साबित किया है कि पिछले साल उन्हें कोर्ट पर सफलता किस्मत से नहीं मिली थी। दोनों ट्रीसा व गायत्री अभी 20 साल की भी नहीं हुई हैं। लेकिन टॉप टेन की तीन जोड़ियों पर उनकी जीत बताती है कि बड़े खिलाड़ियों का सामना करने पर भी वह घबराती नहीं हैं। इस सेमीफाइनल के अंक अंतर से ऐसा लगता है कि वह मुकाबला नहीं कर पायीं, लेकिन उन्होंने बराबर की टक्कर दी बस अंक अर्जित करने से चूक गईं। वह स्पीड व स्ट्रेंथ के साथ कोर्ट में आगे पीछे खेलीं। हां, उन्हें खेल की डिफेंसिव रैली शैली अभी सीखनी होगी, जिसमें शटल रिटर्न करने के अलावा कुछ नहीं किया जाता, तभी वह विश्व की टॉप जोड़ियों का अधिक बेहतर मुकाबला कर सकेंगी। टॉप सात जोड़ियां अपने डिफेंस में दीवार की तरह मज़बूत होती हैं, उनसे पार पाने के लिए उन जैसा ही बनना पड़ता है।
खैर, पिछले दो माह ट्रीसा व गायत्री के लिए अच्छे बीते हैं। एशियन मिश्रित टीम प्रतियोगिता में उन्होंने जीत दर्ज की। राष्ट्रीय खिताब हासिल किया और फिर आल इंग्लैंड के सेमीफाइनल में पहुंचीं। लेकिन सफलता पदकों से मापी जाती है, इससे नहीं कि रैंकिंग वाले कितने खिलाड़ियों को पराजित किया। अब सुद्रिमान कप, एशियन गेम्स, वर्ल्ड चैंपियनशिप्स और ओलिंपिक क्वालीफायर होने जा रहे हैं, इनमें उनके प्रदर्शन से मालूम होगा कि वह किस मिट्टी की बनी हैं।     


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