अनेक चुनौतियां हैं श्री अकाल तख्त साहिब के नये जत्थेदार के समक्ष

़गम के सब बादल छटेंगे,
धूप खुल कर आएगी,
मसअलों पर तुम बड़ों से
मशवरे करते रहो।।
श्री अकाल तख्त साहिब के नवनियुक्त जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह ने आज पद संभाल लिया है। हम जत्थेदार साहिब को बधाई देते हुए सम्मान सहित निवेदन करते हैं कि जिन हालात में उन्होंने यह सम्मानजनक पद संभाला है, उन हालात में यह पद सम्भालना कोई फूलों की सेज जैसा एहसास नहीं देता, अपितु कांटों भरे ताज को पहनने के समान है। आज के हालात में सिख कौम के लिए साज़गार हालात नहीं हैं। सरकार में तथा शिरोमणि कमेटी में टकराव शिखर पर है। इस समय पंजाब, देश तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक हालात सिख कौम के लिए बहुत ना-साज़ागार हैं। जत्थेदार साहिब के लिए कौम को इस स्थिति में से उभारना तथा कौम की शान को बहाल करना सबसे बड़ी चुनौती है। इस समय सिखी को क्षरित करने की कोशिशें मुगल शासन के समय की कोशिशों से भी खतरनाक हैं क्योंकि उस समय सिर्फ तलवार की ताकत के ज़ोर की बात थी। कौम उस अन्याय का मुकाबला भी तलवार की ताकत से करने के समर्थ हो गई थी, परन्तु अब हमले प्रत्यक्ष कम और अप्रत्यक्ष अधिक हैं। ये अनेक तरफ से हो रहे हैं। इनका मुकाबला करने के लिए हमारा एक कौम के रूप में सामर्थ्या भी विकसित नहीं हो रहा। अब के हमले मक्कारी भरे तथा अदृश्य हैं। कई बार तो हमारी कौम पर किया जाने वाला हमला हमें हमारे हित में ही दर्शा कर किया जाता है। 
मास्टर तारा सिंह-नेहरू पैक्ट में स्पष्ट था कि 1925 के गुरुद्वारा एक्ट में कोई संशोधन शिरोमणि कमेटी के महा-अधिवेशन के दो तिहाई बहुमत से पारित करवाए प्रस्ताव के बिना नहीं हो सकेगा, परन्तु अब इसकी परवाह नहीं की जा रही। पहले भाजपा सरकार ने हरियाणा में अलग गुरुद्वारा कमेटी बनाते समय इसकी परवाह नहीं की और अब पंजाब की भगवंत मान सरकार ने भी शिरोमणि कमेटी को दरकिनार करके संशोधन कर दिया है। ़खैर, हमारे कहने का भाव यह है कि नये जत्थेदार साहिब के लिए चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। 
मसले तो ज़िन्दगी में रोज़ आते हैं मगर,
ज़िन्दगी के मसलों का हल निकलना चाहिए। 
(मुहम्मद अली साहिल)
चुनौतियां ही चुनौतियां
श्री अकाल तख्त साहिब के नये जत्थेदार साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह के समक्ष जो चुनौतियां हैं, उनमें से सभी का न तो यहां ज़िक्र सम्भव है और शायद मैं स्वयं भी सभी चुनौतियों के प्रति पूरी तरह सचेत नहीं हूं, परन्तु कुछ प्रमुख चुनौतियां जो सिख पंथ को दरपेश हैं, उनका यहां ज़िक्र ज़रूरी है, क्योंकि सिखों को दरपेश हर चुनौती जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब के लिए भी चुनौती ही है। 
पद की विश्वसनीयता बहाल करनी ज़रूरी
नये जत्थेदार के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि गत लम्बे समय से श्री अकाल तख्त साहिब के भिन्न-भिन्न जत्थेदारों ने जिस प्रकार का व्यवहार किया है, उसने जत्थेदार के प्रतिष्ठित पद की इस सर्वोच्च मानी जाती पदवी की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाई है। जिस प्रकार डेरा सिरसा प्रमुख को बिना मांगे माफी दी गई और फिर वापस ली गई, ऐसे फैसलों ने बुरा प्रभाव डाला है। वैसे भी जत्थेदारों द्वारा समय-समय पर दिये गये आदेशों तथा परामर्शों की बहुत बार स्वयं शिरोमणि कमेटी द्वारा ही परवाह नहीं किये जाने से भी जत्थेदार की विश्वसनीयता तथा ताकत को ठेस लगी है। कई जत्थेदार भी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक मसलहतों के शिकार दिखाई दिये। वैसे भी जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब को अब प्रत्येक कदम ऐसी साबुत-कदमी तथा सोच-विचार के साथ उठाना चाहिए कि कौम में पुन: यह विश्वास पैदा हो कि श्री अकाल तख्त साहिब से जो भी कहा जाता है, वह सत्य व अटल है। 
कुछ तात्कालिक चुनौतियां
हालांकि जत्थेदार के समक्ष असंख्य चुनौतियां हैं, परन्तु कुछ तत्काल ध्यान आकर्षित करती चुनौतियों में पहली तो पंजाब सरकार द्वारा मास्टर तारा सिंह-नेहरू पैक्ट की परवाह न करते हुए 1925 के गुरुद्वारा एक्ट में किये गये संशोधन पर जत्थेदार साहिब की प्रतिक्रिया की है। देश और दुनिया के सिखों, हमदर्दों तथा विरोधियों सब की आंखें तथा कान इस बात पर लगे हुए हैं कि पद सम्भालने के बाद वह क्या प्रतिक्रिया देते हैं। इसके साथ ही श्री दरबार साहिब तथा अन्य गुरुद्वारा साहिबान से गुरबाणी के प्रसारण के संबंध में श्री अकाल तख्त साहिब एवं शेष सिंह साहिबान की सलाह से जत्थेदार साहिब द्वारा एक उचित स्टैंड लेना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। 
यहां एक और तात्कालिक चुनौती भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा देश में एक ‘समान नागरिक कानून’ बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। जत्थेदार साहिब को इस कानून की धारायें सिख कौम के कितना पक्ष में हैं और कितना विरोध में, इसके क्या लाभ हैं और क्या नुकसान हैं, इस बारे में विशेषज्ञों से परामर्श लेना चाहिए और उचित प्रतिक्रिया देना तथा उचित स्टैंड लेने के लिए कौम को तैयार करना चाहिए। 
एक रहित मर्यादा
सिख कौम में आए दिन विघटन हो रहा है। इसका बड़ा कारण किसी सर्व-प्रमाणित सिख रहित मर्यादा का प्रत्येक स्थान पर लागू न होना है। सिंह साहिब के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वह इस मामले पर शेष चारों सिंह साहिबान, शिरोमणि कमेटी, संगठनों, डेरा सम्प्रदायों आदि को साथ लेकर हर सिख गुरुद्वारे में एक ही तरह की रहत मर्यादा लागू करवाने में सफल हों। इसके साथ ही सिखों में भिन्नता तथा जाति-पाति को खत्म करने की अपेक्षा जाति-बिरादरियों के नाम पर गुरुद्वारों के नाम रखने, एक ही बिरादरी का अलग गुरुद्वारा बनाने तथा बिरादरी या जाति-पाति के नाम पर बने श्मशानघाटों को क्रियात्मक रूप पर सांझे स्थान बनाने की ओर आगे बढ़ना भी कोई कम चुनौती नहीं है।
़फैसले सर्वसम्मति से लेने की ओर लौटना
विगत लम्बी अवधि से बहुत-से फैसलों की घोषणा जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब बिना शेष चार तख़्तों के जत्थेदारों से विचार किए अकेले ही करते दिखाई देते रहे हैं। जत्थेदार साहिब को अकेले ़फैसले लेने की बात छोड़ कर शेष चारों तख़्तों के जत्थेदारों की सलाह से ही ़फैसले लेने चाहिएं, अपितु इसके लिए जिस मामले संबंधी फैसला लेना हो, उस मामले के विशेषज्ञों से भी सलाह ली जानी चाहिए ताकि एक बार लिया गया ़फैसला न तो बाद में वापिस लेना पड़े तथा न ही कोई सिख पक्ष उसे अस्वीकार या अनदेखा कर सके। वैसे आपसी सहमति भी एक चुनौती ही है।
नियुक्ति तथा सेवामुक्ति का विधि विधान
जत्थेदारों की नियुक्ति तथा सेवामुक्ति का विधि विधान बनाना भी किसी चुनौती से कम नहीं। जब तक यह बन कर लागू नहीं हो जाता, जत्थेदार साहिब निष्पक्षता तथा हौसले के साथ फैसले लेने में मुश्किल से ही समर्थ हो सकते हैं। इसके साथ ही गुरुद्वारों के ग्रंथियों के लिए भी कम से कम शर्तें तथा कम से कम वेतन संबंधी फैसले लिये जायें। चाहे यह शिरोमणि कमेटी का मामला है परन्तु जत्थेदार साहिब को शेष जत्थेदारों को साथ लेकर प्राथमिकता के आधार पर करवाना चाहिए, क्योंकि यदि ग्रंथी ही योग्य नहीं तथा उन्हें सम्मानजनक वेतन नहीं मिलता तो कौम कैसे गुरुबाणी एवं सही इतिहास से अवगत हो सकती है।
हुक्मनामे के सभी पक्षों पर विचार किया जाये
जब भी कौम किसी मुश्किल दौर से गुज़रती है तो उस संबंधी हुक्मनामा जारी करने के दौरान उसके सभी पक्षों पर भी विचार किया जाये। यदि किसी सम्प्रदाय का प्रमुख कोई ़गलती करता है तो हुक्मनामा भी सिर्फ उसके विरुद्ध ही जारी होना चाहिए, पूरे सम्प्रदाय को दोषी ठहराना या रिश्ता तोड़ना सिखी के सिकुड़ने का काम करता है। हुक्मनामा यह विचार-विमर्श करके ही जारी किया जाये कि, क्या यह लागू भी हो सकेगा?
सिखों की केन्द्रीय ताकत
इस समय शिरोमणि कमेटी बहुत छोटे क्षेत्र की प्रतिनिधि रह गई है। सिखों के पास कोई केन्द्रीय ताकत नहीं है। या तो सभी जत्थेदार साहिब सिखों के लिए किसी ऑल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट के संबंध में विचार करें या फिर सभी प्रदेशों में अलग-अलग गुरुद्वारा कमेटी बनने दें तथा उनके प्रतिनिधियों को इकट्ठा कर के तथा विदेशी प्रतिनिधियों को शामिल करके एक केन्द्रीय सर्व-स्वीकार्य तंत्र बनाया जाये जो देश तथा विश्व के हर भाग में सिखों के मामले हल करवाने पर स्टैंड लेने में समर्थ हो, जिसका नेतृत्व श्री अकाल तख़्त साहिब के नेतृत्व में पांच तख़्तों के जत्थेदार करें।
टूटे हुओं को जोड़ना
जत्थेदार साहिब के समक्ष एक बड़ी चुनौती यह भी है कि हमारे करोड़ों गुरु नानक नाम-लेवा कबीले तथा बिरादरियां सिखी से टूट रही हैं। उन्हें फिर से सिखी से जोड़ने का कार्यक्रम बनाने हेतु क्रियान्वयन करना ज़रूरी है। इनमें शिकलीगर, वणजारे, सतनामी जौहरी, सिंधी, लामें, नरमापे आदि तथा कई अन्य भी शामिल हैं।
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