नेपाल के साथ व्यापार संबंधों में भारत की ढील से चीन को फायदा

नेपाल चाहता है कि भारत द्विपक्षीय सड़क विकास परियोजनाओं में सहायता प्राप्तकर्ता देश के रूप में 50 प्रतिशत भारतीय वस्तुओं के अनिवार्य उपयोग/खरीद की सीमा को घटाकर 30 प्रतिशत कर दे। नेपाल सरकार (जीओएन) के अधिकारियों ने कुछ महीने पहले यह मांग उठायी थी, लेकिन भारत ने अभी तक आधिकारिक तौर पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। चाहे जो भी हो, नेपाली अनुरोध को कुछ अन्य हालिया घटनाक्रमों के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। 
पूर्व हिमालयी साम्राज्य ने पूरी तरह से चीन द्वारा वित्त पोषित होने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बिजली आपूर्ति परियोजना को अंतिम रूप दिया है। यह नेपाल के बिजली उत्पादन/आपूर्ति क्षेत्र में पहली चीन-नेपाली द्विपक्षीय परियोजना होगी। इस क्षेत्र में नेपाल पहले से ही दिल्ली की वित्तीय मदद और विशेषज्ञता के साथ, एक दर्जन बड़े निवेश वाली जलविद्युत उत्पादन परियोजनाओं में भारत के साथ साझेदारी कर रहा है। इनमें से कुछ वर्तमान में निष्पादन के विभिन्न चरणों में हैं। ज़ाहिर तौर पर नेपाल अब ऐसे मामलों में एकल-स्रोत निर्भरता को दूर करने के लिए अन्य देशों को भी शामिल करते हुए अपने बुनियादी ढांचे के विकास को मज़बूत करने हेतु अतिरिक्त सहायता का उपयोग करना पसंद करता है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि भारत के साथ कभी-कभार होने वाले राजनयिक तनाव और पहली बार राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान 2015 में नेपाल द्वारा झेली गयी दुर्भाग्यपूर्ण आर्थिक नाकेबंदी के दौरान इसके कड़वे अनुभव ने देश के नीति निर्माताओं को अपने क्षेत्रीय राजनयिक विकल्पों का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया है। एक मजबूत क्षेत्रीय शक्ति के रूप में चीन का आर्थिक दबदबा और अन्य दीर्घकालिक लाभों की संभावना इतनी आकर्षक थी कि काठमांडू के वर्तमान सत्ता अभिजात वर्ग द्वारा इसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता था।
चीन की ओर झुकाव को उस नकारात्मक कूटनीतिक कीमत के हिस्से के रूप में देखा जा सकता है जो भारत को गलत सलाह वाली आर्थिक नाकेबंदी के लिए चुकानी पड़ी है। हालांकि अब तक यह कहने का कोई कारण नहीं है कि चीन ने कूटनीतिक दांव में भारत पर बड़ा स्कोर बना लिया है। हाल के वर्षों में बीजिंग से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करने के बावजूद नेपाल के लोगों ने अक्सर चीन के राजनीतिक नेतृत्व के साथ-साथ भ्रष्टाचार, स्थानीय कानूनों के उल्लंघन, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट का क्षेत्र के निकट नेपाली भूमि पर कथित अतिक्रमण के मामलों के लिए विभिन्न परियोजनाओं में काम करने वाली चीनी कंपनियों/एजेंसियों के खिलाफ  प्रदर्शन किया है। 
नेपाली प्रधान मंत्री पी.के. दहल की चीन यात्रा के बाद इस वर्ष सितम्बर में परियोजना के पहले संक्षिप्त विवरण को रेखांकित करने वाला एक संयुक्त द्विपक्षीय बयान जारी किया गया था। नेपाल में चिलीम हब में एक सब स्टेशन बनाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यदि आवश्यक हो तो बढ़ती नेपाली आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मामूली पैमाने पर भी तत्काल आपूर्ति शुरू की जा सके। इस बीच विस्तृत द्विपक्षीय सड़क/राजमार्ग विकास परियोजनाओं आदि को पूरा करने के लिए आवश्यक कम से कम 50 प्रतिशत भारतीय-स्रोत वाली वस्तुओं की अनिवार्य खरीद को कम करने के लिए नेपाल के भारत से अनुरोध पर इस साल की शुरुआत में आधिकारिक वार्ता के बाद दिल्ली ने बांग्लादेश के लिए हाल ही में रियायत की अनुमति दी थी। नेपाल द्वारा भारत से राहत की मांग करने वाले शुरुआती अनुरोध 2014 से किये गये थे और अंतत: भारतीय सामग्री खरीद आवश्यकताओं को 75 से घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया था। अब जब भारत राजमार्ग/सड़क संबंधी विकास परियोजनाओं में शामिल हो गया है, जिनका कार्यान्वयन मध्यम अवधि से आगे बढ़ जायेगा, जिसमें कम से कम 1.65 अरब डॉलर का खर्च आयेगा तो नेपाल में यह सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ रहा है कि प्रक्रियात्मक और अन्य देरी को न्यूनतम रखा जाये। कुछ द्विपक्षीय परियोजनाओं में काम पहले ही शुरू हो चुका है, ठेकेदार और संबंधित एजेंसियां मुख्य रूप से खरीदी जाने वाली वस्तुओं की कीमतों के निर्धारण के कारण भारत की ओर से होने वाली असामान्य देरी की शिकायत कर रही हैं। अक्सर शुरू में निर्धारित किये गये लागत बाज़ार में उतार-चढ़ाव और भारतीय कानूनों में बदलाव के कारण बढ़ जाते हैं और फिर इसे पुन: बातचीत के बाद संशोधित करने की आवश्यकता होती है। इससे नेपाल में चल रहे निर्माण और अन्य कार्यों में लम्बी देरी होती है। कुछ मामलों में नेपाल में घरेलू आपूर्तिकर्ताओं/विक्रेताओं से उचित मूल्य पर वस्तुओं की तत्काल खरीद की अनुमति देकर ऐसी समस्याओं का बहुत सरल और समय पर समाधान निकाला जा सकता है। काठमांडू स्थित सूत्रों का सुझाव है कि यह एक बड़ी मदद होगी, अगर भारत नेपाल स्थित परियोजनाओं के लिए घरेलू वस्तुओं की अनिवार्य बिक्री को 50 प्रतिशत  से घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमत हो जाये। (संवाद)