संयुक्त किसान मोर्चा फिर आंदोलन के लिए विवश

देश का अन्नदाता फिर से आंदोलन करने को विवश हुआ है। केन्द्र सरकार ने पूर्व में उनकी जिन-जिन मांगों को मानने की हामी भरी, किसी को पूरा नहीं किया। सभी मांगों से मुकर गई। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चो दोबारा से आंदोलन करने सड़क पर उतर रहा है। पिछले सप्ताह भी हज़ारों किसानों ने दिल्ली-एनसीआर में कई घंटे प्रदर्शन करके वाहनों के पहियों को रोक दिया था। अब 16 फरवरी से राष्ट्र-व्यापी हड़ताल, भारत बंद व बड़े आंदोलन करने के ऐेलान ने केन्द्र सरकार की सांसें फुला दी हैं। इस बार किसानों ने खुलकर केन्द्र व राज्य सरकारों से कह दिया है कि हम बार-बार विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहते। हमारे भी बाल-बच्चे, और घर-परिवार हैं, लेकिन हमें ऐसा करने को मज़बूर किया जा रहा है। किसानों ने कहा है कि अगर केन्द्र सरकार हमारी मांगों पर ध्यान नहीं देती है, तो हम अब विशाल आंदोलन करेंगे, जो कृषि कानूनों वाले आंदोलन से भी बड़ा होगा।
किसानों के इस ऐलान के बाद केन्द्र सरकार सकते में है। चुनाव के ऐन वक्त अगर बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ, तो भाजपा को राजनीतिक रूप से बड़ा नुकसान हो सकता है। भाजपा जानती है कि किसान वर्ग देश का बड़ा वोट बैंक रहा है। खुदा न खास्ता अगर किसान भाजपा से रूठ गए, तो सारा राजनीतिक खेल बिगड़ सकता है। हालांकि किसानों को मनाने में केन्द्र के लोग जुटे हैं, सभी प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। केन्द्र के दो मंत्री पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा को मोर्चे पर लगाया गया है लेकिन ये ऐसे मंत्री हैं जिनसे शायद ही किसान संगठन के नेता बात करना उचित समझें। किसान नेता इस बार सिर्फ सीधे प्रधानमंत्री या गृह मंत्री से ही बात करना चाहेंगे, लेकिन यह भी तय है, कि मोदी-शाह किसी भी सूरत किसानों से आमने-सामने बात करने नहीं आएंगे। पूर्व में भी कई प्रदर्शन हुए हैं, किसानों के अलावा पहलवानों ने भी आंदोलन किया। तब भी ये दोनों लोग सामने नहीं आए। मणिपुर भी जलता रहा और अब उत्तराखंड़ का हल्द्वानी भी निशाने पर है। तब भी ये लोग चुप हैं।
कुल मिलाकर किसानों से मौजूदा केन्द्र सरकार ने एक बार नहीं, बल्कि कई मर्तबा वादाखिलाफी की है। हर बार किसान केन्द्र सरकार की मीठी-मीठी बातों में आकर ठगे गए हैं। मीडिया से अन्नदाताओं को आतंकवादी तक कहलवाया गया। दरअसल किसानों की मांगें कोई नहीं हैं, पुरानी ही हैं? किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी, कर्ज माफी, पैंशन कानून व किसानों पर दर्ज झूठे केसों को वापस लेने सहित कुछ अन्य मांगों को पूरा करवाने चाहते हैं। इसको लेकर बीच में भी किसानों ने कई प्रदर्शन किए, लेकिन तब भी उनकी मांगों को अनसुना किया गया। केन्द्र सरकार ने हर बार किसानों के साथ छल-कपट किया। मांगों को पूरा करने की गारंटी भी दी, जो कुछ महीनों बाद सरासर झूठी साबित हुई। इसलिए किसान इस बार प्रधानमंत्री से झूठी नहीं, पक्की गारंटी चाहते हैं। किसानों की अगर उग्रता देखें तो इस बार अन्नदाता आर-पार के मूड में है। आंदोलन की रूपरेखा तकरीबन बन चुकी है। संयुक्त किसान मोर्चा, केन्द्रीय ट्रेड यूनियन्स एवं कर्मचारी संघों के आह्वान पर होने वाली 16 फरवरी की राष्ट्र-व्यापी हड़ताल व भारत बंद में हिस्सा लेने के लिए बैठकें करके विचार-विमर्श किया जा चुका है। मोर्चे के नेता मास्टर महेंद्र सिंह चौहान ने तल्ख ल़फ्हजों में केन्द्र सरकार को ललकारा है कि हमें पक्की गारंटी दें वरना, हमारे उग्र रूप को सहने के लिए तैयार हो जाएं।
बहरहाल, किसान आंदोलन की इस बार की टाइमिंग थोड़ी अटपटी सी लगती है क्योंकि मौजूदा केन्द्र सरकार का कार्यकाल तकरीबन पूरा होने को है। सोचने वाली बात है कि सरकार सभी मांगें यह कहकर मान लेगी कि हमें वोट दो, अगली सरकार में सभी मांगें पूरी कर देंगे। दरअसल, सरकार का मकसद वोट लेना ही तो होगा। सरकार जब किसानों के वोट हथिया लेगी, फिर उनसे छल करने में जरा भी देरी नहीं करेगी। किसान फिर चिल्लाते रहेंगे, जिसका रत्तीभर असर सरकार पर नहीं पड़ेगा। अगर याद हो, कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने 13 महीने दिल्ली की सड़कों पर आंदोलन किया था जिसमें करीब सात सौ से भी ज्यादा किसानों की मौत भी हुई। तब हारकर सरकार ने अपने निर्णय वापस लिए और लिखित में किसानों की सभी मांगों को मानने का आश्वासन भी दिया। पर जैसे-जैसे समय बीता और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में किसानों से वोट भी ले लिए, तो बाद में केन्द्र सरकार मुकर गई। 
इसमें कोई संदेह नहीं, केन्द्र सरकार इस बार भी ऐसा ही करेगी। लोकसभा का चुनाव एकदम सामने है, इसलिए केन्द्र सरकार किसानों का आंदोलन खत्म करवाने के लिए उनकी सभी मांगें मानने में देरी नहीं करेगी। इसलिए किसानों को सतर्क रहने की बड़ी आवश्यकता है। किसान आंदोलन न करें, इसके लिए केन्द्र सरकार ने सभी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए हैं। सरकार के लोगों ने अपने पक्ष वाले किसान संगठनों को एकत्र करना भी शुरू कर दिया है। आंदोलन में जो किसान संगठन शामिल हो रहे हैं, उनमें भी फूट डालने और लालच देकर लुभाने का प्रयास जारी है।