चुनावों के निकट नागरिकता संशोधन कानून क्यों लागू किया गया ?

सआदत हसन मंटो ने एक बार लिखा था, ‘नेता जब आंसू बहा कर लोगों को कहते हैं कि मज़हब खतरे में है तो इसमें कोई सच्चाई नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि खतरे में पड़ सके। यदि किसी बात का खतरा है तो वह नेताओं का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को खतरे में डालते हैं।’ वास्तव में यह राजनीति ही होती है। लियाकत ज़ाफरी के शब्दों में :
जिस को तुम चाहो कोई और न चाहे उसको,
इस को कहते हैं मुहब्बत में सियासत करना।
मंटो के वाक्य और ज़ाफरी का शे’अर दोनों ही भाजपा द्वारा सी.ए.ए. अर्थात नागरिकता संशोधन कानून 2019 को लागू करने के पीछे की राजनीति को उजागर करते हैं। 
इस तरह प्रतीत होता है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने इस समय जानबूझ कर सी.ए.ए. को विवाद का मुद्दा बनाने के लिए लागू किया है, क्योंकि इससे उसे दो स्पष्ट लाभ नज़र आ रहे हैं। पहला यह कि सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बाण्ड का मुद्दा जिस तरह के सवाल खड़े कर सकता है और उसका जो प्रभाव पड़ने की संभावनाएं हैं, वह अब इस सी.ए.ए. के शोर में दब जाएगा। दूसरा, इस बार बहुसंख्यक का ध्रुवीकरण करने के लिए भी भाजपा को किसी मुद्दे की ज़रूरत है। ध्यान देने वाली बात है कि 2019 में पारित कानून 5 वर्ष तक ठंडे बस्ते में क्यों रखा गया तथा एकाएक चुनावों के निकट आकर ही क्यों लागू किया गया? यह स्पष्ट संकेत है कि इसे चुनावी रजनीति के एक ब्रह्मास्त्र की भांति इस्तेमाल किया जाएगा। वैसे भी भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो इसमें धर्म आधारित फैसले कैसे किये जा सकते हैं? चाहे यह पहली बार नहीं हुआ, पहले भी ऐसा होता रहा है। वैसे वास्तविकता यह है कि इस कनून से मुसलमानों को एक अधिकार से वंचित अवश्य किया गया है, परन्तु वास्तव में भारतीय मुसलमानों को इससे कोई खतरा नहीं है। सरकार की दलील है कि तीन देशों—अफगानिस्तान, बंगलादेश तथा पाकिस्तान से आने वाले 6 धर्मों हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बोधी तथा जैनियों को उन देशों में इसलिए खतरा है, क्योंकि वे इन देशों में अल्पसंख्यक हैं, मुसलमानों का तो वहां शासन है। इसलिए मुस्लिम नेताओं को यह बात समझने की आवश्यकता है कि भाजपा तो चाहती है कि मुसलमान सी.ए.ए. का अधिक से अधिक विरोध करें ताकि वे हिन्दू बहुसंख्यक का लोकसभा चुनाव में एक बार फिर ध्रुवीकरण कर सके। सो, जितना मुसलमान नेता लोकसभा चुनाव में इसका विरोध करेंगे, उतना ही भाजपा को इसका लाभ होगा। यह भी समझने वाली बात है कि 2014 के चुनावों में भी भाजपा बहुसंख्यक को एक अल्पसंख्यक का डर दिखा कर तथा राम मंदिर को मुद्दा बना कर सत्ता में आई थी। फिर 2019 में बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक ने भी बहुसंख्यक का ध्रुवीकरण किया था। अब पहले यह समझा जा रहा था कि राम मंदिर की स्थापना हिन्दू बहुसंख्यक का ध्रवीकरण करेगी, परन्तु वास्तव में हुआ यह है कि राम मंदिर के मुद्दे पर मुस्लिम विरोध न होने के कारण हिन्दू बहुसंख्यक के मन में बैठाया गया मुस्लिम ‘डर’ खत्म होने लगा है और डर के कारण हुआ ध्रुवीकरण भी कमज़ोर पड़ता दिखाई दे रहा है। अब हिन्दू स्वयं को मुसलमानों से कमज़ोर नहीं, मज़बूत स्थिति में देख रहा है। इसलिए इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सी.ए.ए. एकाएक चुनावों से पहले लाया ही इसलिए गया है कि मुस्लिम इसका विरोध करेंगे, विपक्षी पार्टियां भी विरोध करेंगी और भाजपा के जाल में फंस कर उसे बहुसंख्यक का ध्रुवीकरण करने का एक और अवसर दे देंगी। 
अफगानी सिखों, हिन्दुओं को मिले विशेष रियायत 
हालांकि अगस्त 2021 में अमरीका द्वारा अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला लेने के बाद तालिबान का शासन स्थापित होने के दौर में अफगानी सिखों तथा हिन्दुओं पर अत्याचार की एक आंधी ही चल पड़ी थी। कई गुरुद्वारों में हमले किये गये, कई सिखों की हत्या हुई और कई हिन्दुओं-सिखों की सम्पत्तियां छीन ली गईं। मुझे याद है कि जब 2 जनवरी, 2007 को मैं ‘अजीत’ की ओर से अफगानिस्तान में रहते सिखों तथा हिन्दुओं की हालत जानने के लिए गया था, उस समय वहां लगभग 3300 हिन्दू-सिख रहते थे। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में सिख तथा हिन्दू दो नहीं, एक ही माने जाते हैं और उनमें प्यार तथा साझ भी ऐसी ही है, परन्तु अब इस समय अफगानिस्तान में सिर्फ 40 या 50 हिन्दू-सिख ही शेष रह गये हैं। जबकि एक समय ऐसा भी था जब अफगानिस्तान में लगभग अढ़ाई से तीन लाख सिख-हिन्दू आबादी होती थी। इस बीच तालिबान शासन की अत्याचार की आंधी आई, जिस कारण हिन्दू-सिखों को भारत लाया गया। उस समय राष्ट्रीय मीडिया ने भाजपा सरकार की इनके प्रति हमदर्दी का बेहिसाब प्रचार भी किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के बड़े नेताओं तथा सिख नेताओं ने भी इसकी प्रशंसा की थी। इसके साथ-साथ यह प्रचार बड़े ज़ोर-शोर से हुआ कि सी.ए.ए. इन पीड़ितों को भारतीय नागरिक बनाने में सहायक होगा, परन्तु ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि इस कानून के तहत वे हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बोधी तथा ईसाई ही आते हैं जो 31 दिसम्बर, 2014 से पहले भारत में आए थे। सो, हमारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से निवेदन है कि वह इस कानून में एक संशोधन और करें ताकि 2021 में अफगानिस्तन या पाकिस्तान से आए सिखों तथा हिन्दुओं को भी इसके दायरे में ले आए। उन्हें छह वर्ष यहां रहे होने की शर्त में भी विशेष रियायत दी जाए और उन्हें भारत की नागरिकता दी जाए, अन्यथा स्थिति स्पष्ट है कि यहां आए सिखों तथा हिन्दुओं को फिर वापस अफगानिस्तान जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इंडिपैंडेंट यू.के. की रिपोर्ट है कि तालिबान ने कहा है कि अब सुरक्षा की स्थिति उनके नियंत्रण में है और वह देश छोड़ कर गए सिखों तथा हिन्दुओं को वापस लौटने की विनती भी कर रहे हैं। मिनिस्टर आफ स्टेट डा. मुल्ला अब्दुल वासी ने एक हिन्दू-सिख प्रतिनिधिमंडल से विनय की थी कि देश वापस लौट आओ। अफगानिस्तान के एक सिख नेता मनजीत सिंह लाम्बा ने टोलो न्यूज़ को बताया कि लगभग 200 हिन्दू-सिख भारत से वापस लौट रहे हैं, क्योंकि इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा है कि हिन्दू-सिख अपनी ज़ब्त सम्पत्तियों के लिए न्यायिक एवं कानूनी संस्थाओं से सम्पर्क कर सकते हैं। इससे भी आगे अफगान न्याय मंत्रालय के अधिकारी बचकतुल्ला रसौली ने कहा है कि यदि हिन्दुओं (सिखों) की सम्पत्तियों पर किसी ने कब्ज़ा किया हुआ है तो ऐसे कब्ज़े छुड़वाये जाएंगे, और सही मालिकों को ज़मीनें वापस की जाएंगी। 
कुछ दर्द को समझा करो कुछ दर्द का एहसास हो,
शाह-ए-वतन बातें नहीं तदबीर भी लाज़िम करो।
(लाल फिरोज़पुरी)
मरियम नवाज़ तथा रमेश सिंह का धन्यवाद 
पाकिस्तानी पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ का धन्यवाद सभी पंजाबियों तथा सिखों को विशेष तौर पर करना चाहिए। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया है। रमेश सिंह हिन्दू समुदाय के भी बहुत करीब हैं। अब कम से कम पंजाब में अल्पसंख्यकों की आवाज़ सरकार तक पहुंचती रहेगी। स. रमेश सिंह वह व्यक्ति हैं जिन्होंने पाकिस्तान में सिख आनन्द मैरिज एक्ट बनवाया और अब मंत्री बनते ही इसे पहल के आधार पर लागू करवाने की घोषणा भी की है। रमेश सिंह का पंजाबियों को इसलिए भी धन्यवादी होना चाहिए क्योंकि वह मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ के पंजाबी तथा पंजाबियत के प्रति प्यार को उत्साहित देने के लिए उनके साथ खड़े हैं। मरियम नवाज़ ने पाकिस्तानी पंजाब में पंजाबी के लिए जो घोषणा की है, वह पंजाबी भाषा तथा पंजाबियत के उभार के लिए एक नींव पत्थर का कार्य कर सकती है। उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग पौने चार करोड़ पंजाबी रहते हैं, किन्तु पाकिस्तानी पंजाब में लगभग 11 करोड़ पंजाबी बसते हैं। यह पहली बार है कि पाकिस्तानी पंजाब में स्कूलों में पंजाबी को एक विषय के रूप में पढ़ाने की घोषणा किसी मुख्यमंत्री ने की है। यदि क्रियात्मक रूप में ऐसा होता है तो यह एक बड़ी बात होगी।
हम समझते हैं कि यह वास्तव में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है। चाहे उन्होंने फैसला अपनी मातृ-भाषा के लिए किया है और मातृ-भाषा के लिये किये गये कार्य को एहसान नहीं माना जाता, परन्तु पाकिस्तान के हालात में यह एक एहसान जैसा ही है। नि:संदेह यह एक पहला कदम है। पाकिस्तान तथा भारत में भी पंजाबी के लिए अभी बहुत करना शेष है, परन्तु इस कदम के लिए समूचे पंजाबी जगत को मरियम नवाज़ का धन्यवाद करना चाहिए और उनके साथी के रूप में रमेश सिंह का भी धन्यवाद करना बनता है। नोट करने वाली बात यह भी है कि पाकिस्तान में चाहे पंजाबी गुरुमुखी में नहीं लिखी जाती, अपितु शाहमुखी लिपि में लिखी जाती है, परन्तु भाषा तो पंजाबी ही है। अब कम्प्यूटर तथा ए.आई. का युग लिपियों के अंतर को बहुत जल्द भर रहा है। 
ये है कि झुकाता है म़ुखाल़िफ की भी गर्दन,
सुन लो कि कोई शैअ नहीं अहसान से बेहतर। 
(अकबर इलाहाबादी)
-मो. 92168-60000