शानगढ़ जहां पांडवों ने की थी पूजा

मैं मनाली जा रहा था कि अचानक मेरा मूड बदल गया और मैं अटल टनल पर ही बस से उतर गया। मैंने शानगढ़ जाने का इरादा कर लिया था जोकि अटल टनल से सैंज की ओर जाने वाले रास्ते पर लगभग 28 किमी दूर है। सैंज से शानगढ़ मात्र 11 किमी के फासले पर है और हां याद रखें कि अटल टनल से सैंज तक दिन में सिर्फ एक बस ही चलती है। अगर आप ट्रेन से सफर कर रहे हैं तो निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर है, जोकि शानगढ़ से लगभग 120 किमी है और वहां से आगे जाने के लिए आपको टैक्सी लेनी होगी, जबकि निकटतम एयरपोर्ट कुल्लू का है, जहां से शानगढ़ 47 किमी दूर रह जाता है। 
वैसे शानगढ़ के बारे में कम ही लोगों ने सुना है। यह सुंदर गांव हिमाचल प्रदेश के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में स्थित है और गर्मी के मौसम में मेरे ख्याल से इससे बेहतर हिल स्टेशन कोई नहीं है। यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की ज़ोन में आने वाले इस गांव को केवल यही बात विशेष नहीं बनाती है। इसके पेड़, पौधे, पक्षी, पशु और ़गज़ब के समुदाय, एक तरह से इसका खज़ाना हैं और इसके लैंडस्केप में जो चमकीली हरी घास का मैदान है वह तो इसे जन्नत बना देता है। शानगढ़ के झरने और घुमावदार प्राकृतिक रास्ते हाईक के लिए आमंत्रित करते प्रतीत होते हैं। इसका शांत वातावरण प्रकृति को गले लगाने, उसमें खो जाने के लिए मजबूर करता है।
बहरहाल, शानगढ़ पहुंचते ही मैंने ज़ोस्टेल होम में अपने लिए एक प्राइवेट कमरा बुक किया, फ्रेश हुआ, हल्की पेट पूजा की और घास के मैदानों में घूमने के लिए निकल गया। यहां मैं एक बात विशेषरूप से बता दूं कि शानगढ़ व उसके आसपास के गांवों का हिमाचली लोगों के लिए बहुत अधिक धार्मिक महत्व है। इसलिए नियमों का पालन करना अति आवश्यक है।
शानगढ़ के घास के मैदान विशाल, हरे भरे, शांत व दिलकश हैं। मुलायम घास पर टहलते हुए, देवदार के पेड़ों और छोटे छोटे रंगीन मकानों के बीच से होते हुए जब सूरज ढलने लगा तो मेरी नज़र जैसे ही ऊपर उठी तो दूर क्षितिज पर मैंने आसमान को रंग बदलते हुए देखा। क्या नज़ारा था। मन किया कि यहीं कैंप कर लूं, लेकिन ये मुमकिन न था क्योंकि स्थानीय लोगों के लिए घास के मैदानों का धार्मिक महत्व है और इसलिए इन पर कैम्पिंग की अनुमति नहीं है। मैंने अपने मन की बात मन में ही रखी और अगली सुबह शोर्ट ड्राइव व फिर आधा किमी की हाइक के बाद मैं बरशानगढ़ फाल्स पर पहुंचा। पहाड़ी के ऊपर से दूधिया सफेद ताज़ा पानी तेज़ी से नीचे गिर रहा था। मैं बिना भीगे ठीक उस जगह पहुंच गया जहां पानी गिर रहा था। फिर हरे पेड़ों के बीच में होता हुआ ऊपर पहाड़ी पर चढ़ने लगा, पक्षियों के चहचहाने की आवाजें आ रही थीं, ऐसा लग रहा था जैसे मेरे आगमन पर प्रकृति ने अपना साज़ छेड़ दिया है। शानगढ़ में देशज पक्षियों की ज़बरदस्त वैरायटी है, जो पर्यटकों का स्वागत करते प्रतीत होते हैं। यहां पक्षियों की लगभग 35 अलग अलग प्रजातियां हैं। दुर्लभ मोनल को देखने से तो मेरा दिन ही बन गया।
शानगढ़ के पास में ही रायला गांव व रायला मंदिर है और झरने भी। मंदिर के दर्शन करना उद्देश्य था, जो मैंने किया भी, लेकिन रायला के ट्विन टावर्स को देखकर मैं दंग रह गया। इन पर चढ़कर घाटी के अनेक गांवों का शानदार नज़ारा मिला। टावर्स की हर मंजिल पर छोटे-छोटे कमरे भी हैं। मुझे बताया गया कि एक समय था, जब इन कमरों में लोगों को रुकने की अनुमति थी, अब नहीं है। शानगढ़ मंदिरों का गांव है। मंदिरों का अपना प्राचीन इतिहास है और आर्किटेक्चर देखने दिखाने लायक है। शंग्चुल महादेव मंदिर जो शानगढ़ के घास के मैदानों में ही स्थित है, का स्थानीय लोगों के लिए बहुत अधिक महत्व है। हरी घास के समुद्र में इस ब्राउन मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है, शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। एक और शानदार मंदिर जिसमें लकड़ी की ़गज़ब की नक्काशी है वह रायला का टावर मंदिर है। सैंज घाटी में अन्य अनेक मंदिर हैं, जिनमें शानशार का मनु ऋषि मंदिर भी शामिल है।
शानगढ़ के आसपास के गांव भी खूबसूरती में कम नहीं हैं। गोशाती व दरारी में मन लुभावन सेब के बाग हैं और रंगीन कुल्लू टोपियां दिखायी देती हैं, जो पहाड़ी जीवन की सादगी का प्रतीक हैं। इन गांवों में मुझे गेहूं व सब्ज़ी के खेत देखने को मिले, जिनमें पुरानी तकनीक से ही खेती की जाती है। लकड़ी के आइकोनिक हिमाचली घर यहां भी दिल चुरा लेते हैं। कई स्थानीय लोगों से मैंने बात की तो उन्होंने स्थानीय पौराणिक कथाओं से मेरी जानकारी में वृद्धि की। मुझे बताया गया कि शानगढ़ के घास के मैदानों में पांडव घूमे थे और उन्होंने स्थानीय मंदिरों में पूजा की थी। शंगचुल महादेव मंदिर में महादेव के दर्शन करते हुए हुए बहुत आनन्द आया था।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर