प्रेरक प्रसंग-अनोखा बंटवारा

स्वर्णनगरी के राजा इन्द्रसेन अत्यन्त ही न्यायप्रिय व सहनशील स्वभाव के राजा थे। वे सदैव अपनी प्रजा की भलाई व उनके उत्थान के बारे में ही सोचा करते थे। वे चाहते थे कि उनके राज में जनता को ज्यादा से ज्यादा सुख-सुविधाएं मिले। राजा चाहता था कि जनता का पहला अधिकार सुखी जीवन प्राप्त करना है। राजा के समर्पण भाव को देखकर जनता भी राजा के हित में जान न्योछावर करने को तैयार रहती थी। सभी उनकी न्याय व्यवस्था से प्रसन्न थे।
एक बार राजा जब अपने वृद्धावस्था की ओर बढ़ते बीमारी का अनुभव करने लगे तो उन्हें लगा कि वे अब और अधिक समय तक नहीं जी पायेंगे। साथ ही उन्हें यह भी चिन्ता सताने लगी कि उनके बाद कौन से बेटे को उत्तराधिकारी बनाएं। उनके दो बेटे थे सूरजसेन व चन्द्रसेन। वे दोनों जुड़वा भाई थे। इसलिए उनका राज पर समान अधिकार था। राजा भी काफी असमंजस थे। लेकिन उन्होंने इसकी एक तरकीब निकाल ली। उन्होंने अपने दोनों बेटों को बुलाया व कहा कि तुम्हें मालूम है कि मेरे राज्य में कितनी धनसंपदा व सोना है। अत: मैं चाहता हूँ कि मरने से पूर्व तुम्हें यह विरासत सौंप दूँ। अब तुम दोनों में से किसे बड़ा व छोटा समझें! तुम दोनों जुड़वां भाई हो। राजा तो एक ही भाई बन सकता है। फिर किसे राजतिलक करूं! 
मैं एक प्रश्न पूछता हूँ। जिसका तुम्हें उत्तर देना होगा! यह सुनकर दोनों राजकुमार चले गये। वे प्रश्न का उत्तर खोजने लगी। अगले दिन राजा अपने दरबार में अपने मंत्रीमंडल के साथ बैठे थे। दोनों राजकुमार आये। अब पहले उत्तर कौन दे। पर्ची निकाली गई जिसमें सूरजसेन का नाम निकला। सूरजसेन ने प्रश्न का उत्तर दिया- मै राज्य का विस्तार करूंगा, व धन में वृद्धि करूंगा, यह कहकर बैठ गया। चन्द्रसेन ने अपनी बारी आने पर कहा- राजन, मैं आप के द्वारा शासित राज्य में शांति, प्रेम भाईचारे व राज्य के खजाने पर पहला हक जनता का हो जैसी योजना के सहारे राज चलाऊंगा। सभी मंत्री यह सुनकर खुश हुए।
अब राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि सूरज सेन तुम्हारे उत्तर से ऐसा प्रतीत होता है कि तुम केवल अपनी सुख-सुविधा व धनबल के सहारे ही बढ़ने को इच्छुक हो। इसलिए तुम जितना चाहो उतना धन व सोना घोडों पर लादकर ले जाओ। राजा का कर्त्तव्य केवल अपना हित व स्वार्थ साधना ही नहीं होता है। राजा बनने का अधिकार उसे ही होना चाहिए जो जनता का हित पहले सोचे। अत: मैं चन्द्रसेन को ही राजा के रूप में अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ। राजा के इस फैसले से उपस्थित सभी जन खुशी से झूम उठे। सभी ने इस अनूठे बंटवारे का समर्थन किया। कुछ अर्सेबाद राजा का स्वर्गवास हो गया, तो राजकुमार सूरजसेन अपनी इच्छानुसार धन-संपत्ति लेकर नगर से चला गया व राजकुमार चन्द्रसेन ने शान से अपने राज्य का कार्यभार संभाल लिया। 

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