बहादुरी की तलवार
स्वतंत्रता से पहले की बात है कि हमारा देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। उस समय मुगल शासक देश की सभी रियासतों पर अपना अधिकार कायम करके सारे देश पर अपना शासन कायम करना चाहते थे। आज के राजस्थान में पड़ती एक रियासत पर राजा शूरसेन का शासन था। शूरसेन बहुत ही बहादुर और देश भक्त राजा था। उसकी अपनी रियासत के प्रति वफादारी तथा देश भक्ति को देखते हुए रियासत के लोग देश भक्ति की भावना से ओत प्रोत थे। मुगल शासक बहुत बार शूरसेन की रियासत पर हमला कर चुके थे लेकिन वे ना तो शूरसेन की सेना को हरा पाए थे और ना ही उसकी रियासत पर अपना अधिकार जमा पाए थे। क्योंकि उसकी रियासत के लोग सेना का रूप धारण करके दुश्मन की सेना को भगा देते थे। शूरसेन आयु अधिक होने के कारण काफी बूढ़ा हो चुका था। उसने एक दिन निर्णय किया कि वह अपना शासन छोड़ कर रियासत का संरक्षक बन जाए। परन्तु उसके सामने समस्या यह थी कि रियासत का शासक किसे बनाया जाए। क्योंकि उसके अपने दोनों पुत्र विलासी तथा रियासत के काम काज में रुचि नहीं लेते थे।
उसकी पत्नी चाहती थी कि रियासत का शासन उसके पुत्रों में से ही किसी एक को सौंपा जाए, लेकिन शूरसेन इस बात को जानता था कि यदि रियासत की सत्ता उनको सौंपी गई तो मुगल शीघ्र ही उसकी रियासत पर अपना कब्जा कर लेंगे।
वह अपने मंत्रियों में से भी किसी को शासक इसलिए नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि किसी को भी रियासत की सत्ता सौंपने पर दूसरे उसे सहयोग नहीं करेंगे। एक दिन उसने रियासत के सभी लोगों की सभा बुलाकर अपना राजा का पद छोड़कर किसी अन्य को राजा बनाने का प्रस्ताव पेश किया, लेकिन उन्होंने उसके इस प्रस्ताव को यह कहकर नकार दिया कि अभी उसके शासन छोड़ने का समय नहीं आया। वह अपनी रियासत के लोगों के उस फैसले से बहुत निराश हुआ।
एक दिन अचानक मुगल शासकों ने बहुत बड़ी सेना इक्ट्ठी करके उसकी सेना पर धावा बोल दिया। मुगल सेना अधिक होने के कारण दोनों सेनाओं में काफी दिन तक युद्ध चलता रहा। एक दिन सांयकाल होने तक युद्ध चल रहा था। अचानक मुगल सेना ने राजा शूरसेन पर ऐसा हमला बोला कि वह बहुत बुरी तरह से घायल होकर धरती पर गिर पड़ा। शूरसेन की सेना के सेनापति रुद्र प्रयाग ने जैसे ही उसे घायल होते हुए देखा, वह अपनी जान जोखिम में डालकर उसे युद्ध के मैदान से ले भागा। मुगल सेना ने उसका पीछा भी किया लेकिन वह उनके हाथ नहीं आया। वह शूरसेन को अपने घर में ले आया। उसने सोचा कि यदि मुगल सेना को पता चल गया कि शूरसेन युद्ध नहीं लड़ पाएगा तो उनके हौसले और भी बुलंद हो जाएंगे। उसने एक योजना बनाकर दूसरे दिन शूरसेन के राजशाही वस्त्र पहन लिए और उसके घोड़े पर बैठकर युद्ध के मैदान में पहुंच गया और अपने बेटे को जोकि उसी सेना में सिपाही था अपने सेनापति के वस्त्र पहना दिए। शूरसेन को युद्ध के मैदान में पुण्य आया देख मुगल सेना डर गई।
रुद्र प्रयाग ने अपनी सेना और रियासत के लोगों को प्रेरित करके मुगल सेना पर ऐसा धावा बोला कि वे मैदान छोड़ कर भागने को विवश हो गए। कुछ दिनों के पश्चात शूरसेन ने स्वस्थ होकर रियासत के लोगों को रुद्र प्रयाग की बहादुरी की वीर गाथा सुनाकर कहा, अब इस रियासत को एक बहादुर शासक मिल चुका है, अब मेरे राजा का पद छोड़ने का समय आ चुका है। उसने अपनी बहादुरी की तलवार रुद्र प्रयाग को सौंपते हुए कहा, रुद्र प्रयाग अब मुझे विश्वास है कि तुम इस रियासत की स्वतंत्रता को कायम रख सकोगे।
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