एक गीत जिसने अंग्रेज़ी सरकार को हिला दिया
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान फिल्म ‘किस्मत’ ऐसे समय रिलीज़ हुई थी, जब ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ चल रहा था और देश के लगभग सभी राष्ट्रवादी नेता सलाखों के पीछे थे। कवि प्रदीप ने बहुत होशियारी के साथ इस फिल्म के लिए ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है’ गीत लिखा। चूंकि इस गीत में ‘जर्मन व जापानी’ शब्दों का प्रयोग हुआ था (शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी/तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी/आज सभी के लिए हमारा यही कौमी नारा है/दूर हटो ए दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है) इसलिए ब्रिटिश शासक इससे धोखा खा गये, विशेषकर इस वजह से भी कि वह दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी व जापान के विरुद्ध लड़ रहे थे। अत: सेंसर बोर्ड ने इस गीत को पास कर दिया। लेकिन गीत के पहले बंद (दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है। जहां हमारा ताजमहल है और कुतुबमीनार है/जहां हमारे मंदिर मस्जिद सिखों का गुरुद्वारा है/इस धरती पर कदम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है/दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है) से ही भारतीय दर्शक समझ गये थे कि यह अंग्रेजों के विरोध में व भारतीयों में देश-प्रेम जागृत करने के लिए लिखा गया है, इसलिए वे सिनेमाघरों में इस गीत को बार बार चलाये जाने की मांग करते थे। देशभर के थिएटरों में ‘वंस मोर, वंस मोर’ के नारे गूंजते और जनता को संतुष्ट करने के लिए रील को रीवाउंड करके गीत को कई बार सुनाया जाता था। ‘किस्मत’ ने उस समय का बॉक्स ऑफिस इतिहास रच दिया था। एक सिनेमाघर में तो यह साढ़े तीन साल तक चली थी।
बहरहाल, ब्रिटिश सरकार को जल्द ही अपनी चूक का एहसास हो गया कि गीत के असल अर्थ तो कुछ और हैं और प्रदीप के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी कर दिए गये। गिरफ्तारी से बचने के लिए प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा। इस गीत का उल्लेख करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने संस्मरणों में लिखा है, प्रदीप जी दूरदर्शी थे। उन्होंने चित्रपट की क्षमता को पहचानकर एक सशक्त माध्यम के रूप में उसका इस्तेमाल किया। प्रदीप ने एक अवसर पर पंडित नेहरू से कहा था, देशभक्ति के गीत लिखना मेरा रोग है, मैं इस रोग से ग्रस्त हूं। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि देश की आज़ादी के बाद भी प्रदीप नये जोश के साथ देशभक्ति के गीत लिखते रहे। इसीलिए फिल्म ‘जागृति’ में उन्होंने महात्मा गांधीजी के सम्मान में यह गीत लिखा- दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल’ और नेहरूजी के सम्मान में उनका यह गीत ‘हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के’ को आज भी बाल दिवस (14 नवम्बर) को विशेषरूप से गाया जाता है। रामचंद्र नारायण जी द्विवेदी के रूप में प्रदीप का जन्म 1915 में उज्जैन के निकट बादनगर में एक मध्यवर्गीय औदीच्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। प्रदीप को अपने छात्र दिनों से ही कविता करने का शौक था, जिसमें उस समय अधिक निखार आया जब वह लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक की डिग्री के लिए अध्ययन कर रहे थे और विख्यात कवि बालभद्र प्रसाद दीक्षित के बड़े बेटे गिरिजा शंकर दीक्षित के संपर्क में आये, जो स्वयं अच्छे कवि थे।
एक दिलचस्प किस्सा 1962 के भारत-चीन युद्ध से जुड़ा है। प्रदीप ने परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी के बारे में सुना था। वह उनकी कुर्बानी व बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ गीत की रचना कर बैठे, जो देश का सबसे महान देशभक्ति गीत बना, जिसे लिखने के लिए प्रदीप को भारत सरकार ने राष्ट्रीय कवि घोषित किया। प्रदीप चाहते थे कि इस गीत को लता मंगेशकर गाएं, लेकिन उस समय संगीतकार सी रामचंद्र व लता के बीच बोलचाल बंद थी, इसलिए रामचंद्र आशा भोंसले से यह गीत गवाना चाहते थे। प्रदीप को लगता था कि लता के अतिरिक्त कोई अन्य गायिका इस गीत से न्याय नहीं कर सकती। वह लता के लिए ज़िद पर अड़ गये। आखिर हारकर रामचंद्र ने प्रदीप से कहा कि वह लता को अगर उनके साथ काम करने के लिए मना लेंगे, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। प्रदीप लता के पास गये और बोले कि रामचंद्र के नाम पर भड़कें नहीं, पहले गीत सुन लें। गीत सुनते ही लता की आंखों में आंसू आ गये, और वह गीत गाने के लिए तैयार हो गईं, लेकिन इस शर्त पर कि रिहर्सल व रिकॉर्डिंग पर प्रदीप मौजूद रहेंगे। इस तरह यह कालजयी गीत बना जिसे 26 जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर नेहरूजी के समक्ष गाया गया और वह भी इसे सुनकर रो पड़े थे।
प्रदीप ने इस गीत की रॉयल्टी ‘वॉर विडो फण्ड’ को दान कर दी थी, लेकिन सारेगामा (एचएमवी) ने आनाकानी की तो 25 अगस्त, 2005 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश से दस लाख रुपये का बकाया फण्ड में गया। प्रदीप ने 1987 में कहा था, आपको कोई देशभक्त नहीं बना सकता। यह जज्बा आपके खून में होता है, जो आपको देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करता है और आपको अलग बनाता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर