जातिवाद पर प्रतिबंध योगी सरकार का ऐतिहासिक कदम
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाया है। उन्होंने समाज में जाति आधारित विद्वेष को ही नहीं बल्कि विभेद को भी समाप्त करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए सद्भाव के साथ सबके विकास को बल देने का सूझबूझभरा फैसला लिया है। इस फैसले के अंतर्गत उन्होंने जाति-आधारित रैलियों, सार्वजनिक प्रदर्शनों और पुलिस रिकॉर्ड में जाति संबंधी उल्लेखों पर रोक लगा दी है। यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बाद लिया गया, लेकिन इसका वास्तविक महत्व इससे कहीं अधिक है। यह केवल एक प्रशासनिक पहल नहीं बल्कि समाज को जातिगत बंधनों से मुक्त करने की दिशा में क्रांतिकारी प्रयास है। राजनीतिक दलों ने जाति आधारित वोटों को लुभाने एवं राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के लिये समाज को बांटा है। यह गौर करने की बात है कि जाति आधारित संगठनों और रैलियों की बाढ़ आ गई है, जिससे एक-एक जाति के अनेक संगठन बने और इन जातिगत संगठनों ने सड़कों पर उतर कर न केवल सार्वजनिक व्यवस्था, इंसान-इंसान के बीच दूरियां-विद्वेष बढ़ा दिया बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी क्षत-विक्षत कर दिया।
भारतीय समाज में जातिवाद की जड़ें गहरी हैं। जाति व्यवस्था ने कभी सामाजिक पहचान और श्रम विभाजन का आधार बनकर काम किया, लेकिन समय के साथ यह भेदभाव, असमानता और सामाजिक विद्वेष का कारण बन गई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था- ‘जातिवाद समाज की आत्मा को खोखला करता है।’ डॉ. भीमराव आंबेडकर ने तो इसे भारतीय प्रगति की सबसे बड़ी बाधा बताया था। दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद भी जातिवाद ने राजनीति और समाज दोनों में गहरी पैठ बनाई और देश की एकता को कमजोर करने का काम किया। जाति-आधारित राजनीति ने सत्ता के समीकरण तो बदले लेकिन समाज को बांटने का काम किया। चुनाव के समय उम्मीदवारों का चयन जातिगत समीकरणों के आधार पर होता रहा।
समाज के बंटवारे का यह खेल लोकतंत्र के स्वस्थ आदर्शों के लिए चुनौती बना। जातिगत रैलियां और प्रदर्शन सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करते रहे। पुलिस रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख अपराधी को अपराधी नहीं बल्कि किसी जाति का प्रतिनिधि बना देता था, जिससे कानून-व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ता था। इन जटिल स्थितियों में योगी सरकार का यह निर्णय विषमताओं एवं विसंगतियों को समाप्त करने की दिशा में एक नया अध्याय है। यदि इसे सख्ती और ईमानदारी से लागू किया गया तो निश्चित ही समाज में सौहार्द, भाईचारा और समानता का वातावरण बनेगा। जाति-आधारित पहचान की जगह व्यक्ति की योग्यता, आचरण और योगदान को महत्व मिलेगा।
किसी जाति के प्रति लगाव दर्शाने के लिए किसी अन्य जाति को नीचा दिखाने की भी गलत परंपरा पड़ती दिख रही है। जाति आधारित पोस्टर या प्रतीक न केवल गलियों में, मकानों पर बल्कि अपने वाहनों पर भी लगाए जा रहे हैं। ऐसे में, परस्पर भेद, ऊंच-नीच की भावना बढ़ती जा रही है। ऐसे भेद को मिटाने की मांग उठती रही है। समाज के लिए चिंतित रहने वाले लोग यही चाहते हैं कि जातिगत झंडों और पोस्टरों पर एक हद तक लगाम लगनी चाहिए, लेकिन ऐसा साहस राजनीतिक स्वार्थों के चलते अब तक किसी भी राजनेता ने नहीं दिखाया, लेकिन योगी सरकार ने यह साहस दिखाया है तो उसका स्वागत होना ही चाहिए। योगी सरकार द्वारा जारी 10 सूत्रीय दिशा-निर्देश में यह बात विशेष रूप से गौर करने लायक है कि अब जाति के नाम, नारे या स्टिकर वाले वाहनों का केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत चालान किया जाएगा। यहां तक कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में भी जाति को दर्शाने से बचा जाएगा। अभी तक होता यह है कि अपराधी जाति के आधार पर अपनी पहचान बना लेते हैं और मजबूत हो जाते हैं।
जाति, रंग, भाषा आदि के मद से सामाजिक एवं राजनीतिक विक्षोभ पैदा होता है, इसीलिये यह पाप की परम्परा को बढ़ाने वाला पाप है। इसके कारण राष्ट्रीयता को भूल कर जातिगत संकीर्णताओं को लोग आगे बढ़ाते रहे हैं, एक जाति के लोग मजबूत होने के बाद वे अपनी जाति को लाभ पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
यह धारणा भी बढ़ती रही है कि सबको अपनी जाति की चिंता करनी चाहिए। यह भ्रांति भी फैल रही है कि अपनी जाति के लोग या अधिकारी या नेता ही अपनी जाति के समुदाय या लोगों की मुसीबत में साथ खड़े होते हैं। ऐसी तमाम सामाजिक व प्रशासनिक खामियों एवं विडम्बनाओं से उबरने की जरूरत योगी सरकार ने महसूस की है। अन्यायी के खिलाफ बिना जाति देखे खड़ा होना चाहिए।
संविधान की भी मंशा यही है कि हर नागरिक को अपने समाज की ताकत बनकर आगे बढ़ना चाहिए और ध्यान रहे, यह समाज मात्र एक जाति आधारित न रहे। हर जाति महत्वपूर्ण है और सबका विकास हो, पर जाति आधारित लगाव या राजनीति का दिखावा खत्म होना चाहिए। योगी आदित्यनाथ सरकार का यह कदम भारतीय समाज को जातिवाद की जंजीरों से मुक्त कराने का बड़ा अवसर है। यह केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बन सकता है। अब आवश्यकता है कि अन्य राज्य भी इसे अपनाएं और भारत को सच्चे अर्थों में समानता, न्याय और बंधुत्व की धरती बनाएं।