लद्दाख की हिंसा
केन्द्र प्रशासित प्रदेश लद्दाख में जिस तरह अशांति फैली है और विगत कुछ समय से जैसे वहां से गड़बड़ के समाचार प्राप्त हो रहे हैं, उनसे केन्द्र सरकार की परेशानी और भी बढ़ गई है। पहले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख एक ही राज्य था। विगत लम्बी अवधि में कश्मीर घाटी में चाहे व्यापक स्तर पर गड़बड़ होती रहती थी, परन्तु लद्दाख आम तौर पर शांत ही रहता था, यहां का सभ्याचार भी जम्मू-कश्मीर से अलग है। महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू-कश्मीर पर अधिकार जमाने के बाद बड़ी मुश्किल और हिम्मत से लद्दाख को भी अपने कब्ज़े अधीन कर लिया था। उससे पहले यह एक स्वतंत्र देश का दर्जा रखता था। महाराजा रणजीत सिंह के शासन के बाद 10 वर्षों की अवधि में ही अंग्रेज़ों ने पंजाब सहित उनकी सत्ता वाले अन्य सभी क्षेत्रों को अपने कब्ज़े में ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद लद्दाख क्षेत्र देश का अनभिज्ञ अंग बना रहा।
वर्ष 2019 में धारा 370 को हटाने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को एक अलग इकाई मान कर वहां और इसके साथ ही लद्दाख को एक अलग इकाई मानते हुए दोनों को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था। अन्तर सिर्फ इतना था कि जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, परन्तु लद्दाख में विधानसभा बनाने की व्यवस्था नहीं रखी गई थी। उस समय से ही जम्मू-कश्मीर में यह स्वर तेज़ होते रहे हैं कि उसे पुन: पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। चाहे इसके बाद वहां प्रांतीय चुनाव भी हुए और उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार भी शासन कर रही है परन्तु राज्य बनाने की मांग वहां भी ज़ोर पकड़ रही है। इसके साथ ही लद्दाख में भी यह मांग उठती रही है कि उसे भी राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।
लद्दाख एक पहाड़ी क्षेत्र है। इसका क्षेत्रफल लगभग 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या लगभग 3 लाख है। लद्दाख वासियों को वर्षों से यह शिकवा भी रहा है कि उनके क्षेत्र की सरकारों द्वारा अक्सर अनदेखी की जाती रही है, जिस कारण वहां सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ युवाओं में रोज़गार की समस्या भी बनी रही है। इसके साथ-साथ लद्दाख वासियों में इस बात का डर भी बना रहा है कि ज्यादातर बाहरी लोगों के यहां आकर बस जाने से उनके अपने सभ्याचार का क्षरण होगा। इसकी विशेष पहचान बनाए रखने के लिए इसे एक अलग राज्य के साथ-साथ संविधान की 6वीं अनुसूची में भी शामिल करने की मांग की जाती रही है, ताकि विशेष प्रबंधों के तहत इसके सभ्याचार को सुरक्षा दी जा सके।
लद्दाखियों को भाजपा की केन्द्र सरकार पर इस कारण भी गुस्सा है कि वर्ष 2019 के घोषणा-पत्र में उसने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इसे 6वीं अनुसूचि में शामिल करने का वायदा किया था। चाहे यह मांग बहुत देर से उठती रही है परन्तु पिछले 15 दिन से यहां सोनम वांगचुक के नेतृत्व में आन्दोलन तेज़ हो गया था। वांगचुक ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी थी। उसके साथ कुछ और दर्जन के लगभग लोगों ने भी भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। कुछ दिन पहले इनमें से 2 व्यक्तियों की हालत बिगड़ जाने के बाद लोगों का गुस्सा भड़क गया था और यह आन्दोलन हिंसक हो गया है, जिसमें कुछ व्यक्ति मारे भी गए हैं। इस घटनाक्रम के बाद सोनम वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल समाप्त करने की घोषणा कर दी है। इस घटनाक्रम से पहले ही आन्दोलनकारियों के प्रतिनधियों के साथ केन्द्र की बातचीत होना तय हो गई थी, जोकि आगामी दिनों में होने की सम्भावना है। ऐसी वार्ता से लद्दाख के लोगों की भावनाओं को समझते हुए केन्द्र सरकार को किसी सन्तोषजनक हल की तलाश करनी चाहिए, ताकि चीन की सीमा के साथ लगते इस अहम क्षेत्र की पूरी सम्भाल करने के साथ-साथ वहां के लोगों को भी सन्तुष्ट किया जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द