भारतीय संस्कृति के दो अनमोल रत्न गांधी जी व शास्त्री जी
2 अक्तूबर भारतीय इतिहास का ऐसा स्वर्णिम दिन है, जिसने दो ऐसी विभूतियों को जन्म दिया, जिनके बिना आधुनिक भारत की कल्पना अधूरी है। 1869 में इस दिन गुजरात के पोरबंदर में महात्मा गांधी का जन्म हुआ, जिन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई बल्कि पूरी दुनिया को एक नई जीवन-दृष्टि दी और 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय की मिट्टी से लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ, जिन्होंने गांधी की ही तरह सादगी और नैतिकता को जीवन का आधार बनाकर भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देश को संकट की घड़ी में साहस और विश्वास के साथ आगे बढ़ाया। यह संयोग ही है कि दो महानायक, जिनके विचार भारतीय जीवन का स्थायी मार्गदर्शन करते हैं, एक ही तिथि पर जन्में। इसलिए 2 अक्तूबर केवल गांधी जयंती नहीं बल्कि शास्त्री जयंती भी है और यह दिन राष्ट्र के आत्ममंथन और आत्मसुधार का प्रतीक है।
महात्मा गांधी का जीवन जितना सरल था, उतना ही गहरा भी। वे राजनीति के महज खिलाड़ी नहीं थे बल्कि नैतिकता और सत्य को राजनीति में स्थापित करने वाले प्रयोगधर्मी महात्मा थे। उनका सत्याग्रह केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन नहीं था बल्कि एक सभ्यता को नई दिशा देने का प्रयास था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का पहला प्रयोग कर वे यह दिखा चुके थे कि अन्याय और दमन के सामने झुकने से बेहतर है शांतिपूर्ण प्रतिरोध करना। भारत लौटकर उन्होंने इस दर्शन को व्यापक रूप दिया। 1917 का चंपारण सत्याग्रह हो, 1930 का नमक सत्याग्रह या 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, हर बार गांधी ने असहयोग और अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से साम्राज्यवाद की नींव हिला दी। गांधी जी के व्यक्तित्व का आकर्षण केवल स्वतंत्रता सेनानियों तक सीमित नहीं रहा। ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने के उनके प्रयास, चरखे और खादी को प्रतीक बनाकर स्वदेशी आंदोलन को जन-आंदोलन का रूप देना, अस्पृश्यता के विरुद्ध उनका संघर्ष, नारी अधिकारों के लिए उनका समर्थन और शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता देने की उनकी दृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आज जब दुनिया जलवायु संकट, हिंसा, युद्ध और आतंकवाद से जूझ रही है, तब गांधी का संदेश हमें याद दिलाता है कि शांति और सहअस्तित्व ही मानवता की रक्षा कर सकते हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्तूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मान्यता दी। यह गांधी के विचारों की वैश्विक प्रासंगिकता का प्रमाण है।
केवल गांधी ही नहीं बल्कि उसी तिथि को जन्मे लाल बहादुर शास्त्री भी भारतीय जनमानस के सच्चे नायक थे। शास्त्री जी का बचपन अत्यंत संघर्षमय था। पिता का देहांत तभी हो गया था, जब वे मात्र डेढ़ वर्ष के थे। निर्धनता में पले-बड़े शास्त्री जी ने तैरकर गंगा पार कर शिक्षा प्राप्त की, बिना जूते-चप्पल के विद्यालय जाना पड़ा, परन्तु कठिनाईयों ने उन्हें तोड़ा नहीं बल्कि आत्मबल को और प्रखर किया। गांधी के विचारों से प्रेरित होकर वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और कई बार जेल गए। जेल जीवन ने उनके भीतर न केवल धैर्य और सहिष्णुता को गड़ा बल्कि उन्हें सत्य और ईमानदारी के प्रति और अडिग बना दिया। स्वतंत्र भारत में लाल बहादुर शास्त्री एक आदर्श राजनेता के रूप में उभरे। रेल मंत्री रहते हुए एक दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने त्यागपत्र दिया, यह उदाहरण आज भी राजनीति में नैतिकता की मिसाल है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री जी ऐसे समय में देश का नेतृत्व कर रहे थे, जब भारत एक ओर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था और दूसरी ओर पाकिस्तान से युद्ध की चुनौती सामने थी। उस घड़ी में शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का अमर नारा दिया। वह नारा केवल तत्कालीन संकट का समाधान नहीं था बल्कि भारत की आत्मा का उद्धोष था। एक ओर जवान सीमा पर देश की रक्षा कर रहा है और दूसरी ओर किसान खेतों में अन्न उपजा रहा है, तभी राष्ट्र सशक्त और आत्मनिर्भर बन सकता है। 1965 के भारत-पाक युद्ध में शास्त्री जी के नेतृत्व ने पूरे देश को एकजुट कर दिया। वे सैनिकों के मनोबल के साथ-साथ आम नागरिकों में भी आत्मविश्वास भरने वाले नेता थे। उनकी सादगी और त्याग आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। प्रधानमंत्री होते हुए भी वे साधारण जीवन जीते थे, कोई आडंबर नहीं, कोई विशेषाधिकार नहीं। यही सादगी उन्हें जनता के दिलों में बसाती है।
गांधी और शास्त्री दोनों का जीवन यही सीख देता है कि महानता सत्ता, संपत्ति या वैभव में नहीं, सादगी, नैतिकता और जनसेवा में है। गांधी ने कहा था, ‘दुनिया में हर किसी की आवश्यकता पूरी हो सकती है लेकिन किसी एक के भी लोभ को पूरा नहीं किया जा सकता।’ और शास्त्री जी ने दिखाया कि कठिनतम परिस्थितियों में भी यदि ईमानदारी और धैर्य को साथ रखा जाए तो देश को विजय की ओर ले जाया जा सकता है। आज जब भारत ‘आत्मनिर्भर भारत’ की परिकल्पना कर रहा है, तब गांधी के स्वदेशी और शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ दोनों ही विचार आधारशिला के रूप में उपस्थित हैं। स्वच्छ भारत अभियान का आह्वान गांधी के स्वच्छता और स्वास्थ्य पर बल देने की परंपरा का ही पुनरारंभ है। जब कृषि, आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास की चर्चा होती है तो शास्त्री का योगदान स्मरणीय हो जाता है।
2 अक्तूबर का यह संयोग हमें केवल औपचारिक स्मरण तक सीमित नहीं रखना चाहिए। गांधी और शास्त्री दोनों ने हमें आत्मचिंतन का अवसर दिया है। गांधी ने हमें भीतर के रावण से लड़ने का संदेश दिया और शास्त्री ने हमें कर्त्तव्य और जिम्मेदारी की ओर जगाया। आज दुनिया तेजी से तकनीक, पूंजी और सत्ता की ओर बढ़ रही है लेकिन गांधी और शास्त्री हमें याद दिलाते हैं कि किसी भी राष्ट्र की शक्ति उसकी नैतिकता, मानवीय मूल्यों व आत्मनिर्भरता में है। यदि हम इन मूल्यों को छोड़ देंगे तो चाहे तकनीकी प्रगति कितनी भी हो जाए, समाज खोखला हो जाएगा। इसीलिए आज का दिन हम सबके लिए आत्ममंथन का दिन है कि क्या हम उन आदर्शों के मार्ग पर चल रहे हैं, जिन पर चलकर हमारे पूर्वजों ने हमें स्वतंत्र भारत दिया था? गांधी ने हमें सत्य और अहिंसा का शाश्वत संदेश दिया और शास्त्री ने हमें सादगी और कर्त्तव्यनिष्ठा का जीवनदर्शन। दोनों ही हमें आज भी यह सिखाते हैं कि महानता बाहरी आडंबर में नहीं, भीतरी ईमानदारी और सेवा में है। यदि हम गांधी और शास्त्री के आदर्शों को आत्मसात करें तो यह दिन हमारे लिए केवल स्मरण नहीं, एक नए संकल्प का दिन बन जाएगा।