बिहार में आरोप-प्रत्यारोप के बीच आ गई अंतिम मतदाता सूची
चुनाव आयोग ने गत 30 सितम्बर, 2025 को बिहार में करायी जा रही स्पेशल इंटेसिव रिवीजन (एसआईआर) यानी गहन मतदाता पुनरीक्षण की अंतिम सूची जारी कर दी। इस सूची के मुताबिक जून 2025 के मुकाबले अब बिहार में 6 फीसदी मतदाता कम हो गये हैं। जहां जून में 7.89 करोड़ मतदाता थे, वहीं 30 सितम्बर 2025 को जारी निर्णायक सूची में यह आंकड़ा घटकर 7.24 करोड़ रह गया है। इस तरह जून के मुकाबले अब बिहार में जहां मतदाता सूची से 69.29 लाख नाम काटे गये हैं, वहीं इसमें 21.53 लाख नये नाम जुड़े हैं। इस तरह 30 सितम्बर को बिहार में मतदाताओं की अंतिम संख्या 7.42 करोड़ है जबकि जून में बिहार की मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ थी, जो कि एसआईआर के पहले ड्राफ्ट के बाद घटकर 7.24 करोड़ रह गई थी और अब निर्णायक अंतिम सूची के बाद यह संख्या बढ़कर 7.42 करोड़ हो गई। पहले ड्राफ्ट में जहां 65 लाख मतदाताओं के नाम कटे थे, वहीं निर्णायक और अंतिम सूची में 17 लाख नामों को जोड़ा गया है।
एसआईआर के मुताबिक बिहार में जहां 22.34 लाख मतदाता मृत पाये गये हैं, वहीं 6.85 लाख मतदाताओं के नाम दो जगह दर्ज थे, इसलिए एक जगह से काटे गये हैं और 36.44 लाख मतदाता अब दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके हैं। इस तरह कुल मिलाकर देखें तो अंतिम सूची में बिहार के जून 2025 में मौजूद मतदाताओं की संख्या में अब अंतिम रूप से 69.29 लाख मतदाता कम हो गये हैं।
चुनाव आयोग की इस निर्णायक सूची के बावजूद अगर किसी वोटर का वोटर लिस्ट में नाम नहीं है और वह ज़िंदा है, साथ ही किसी दूसरी जगह मतदाता नहीं बना, तो अभी भी खुद से इस सूची में अपना नाम जोड़ा जा सकता है या फॉर्म भरके अपना नाम जुड़वाया जा सकता है। वोटर लिस्ट में नाम चेक करने और जोड़ने के तरीके सार्वजनिक किये गये हैं। साथ ही वोटर लिस्ट में अगर नाम या पता गलत है तो उसे भी सुधारने के लिए भारतीय चनाव आयोग की वेबसाइट में जाकर इसे दुरुस्त किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने एसआईआर की प्रक्रिया जून 2025 से शुरु की थी, तब 7.89 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर से दोबारा फॉर्म भरवाये गये थे और 1 अगस्त 2025 को जो नई लिस्ट जारी हुई थी, उसमें 65 लाख वोटर नहीं थे, जिनके बारे में कहा गया था कि वो या तो मर चुके हैं या स्थायी रूप से कहीं बाहर चले गये हैं। साथ ही कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास एक नहीं दो दो वोटर आई कार्ड हैं। इस तरह 65 लाख मतदाताओं के कम होने पर खूब हंगामा हुआ और जो अब निर्णायक और अंतिम रूप से सूची जारी हुई है, उसमें यह संख्या बढ़कर 69 लाख हो गयी है। आंकड़ों के अनुसार 22 लाख से ज्यादा मतदाताओं की मौत हो चुकी है। 36 लाख मतदाता अपने घरों में मिले नहीं और 7 लाख मतदाता कहीं दूसरी जगह के वोटर बन चुके हैं।
इस तरह देखा जाए तो जून 2025 के बाद जिस तरह से एसआईआर को लेकर बिहार में राजनीतिक आंदोलन हुआ था, उसने विपक्ष का आरोप था कि सरकार चुनाव आयोग के ज़रिये बहुत बड़े पैमाने पर बिहार के मतदाताओं को वोट देने से वंचित कर रही है जबकि चुनाव आयोग ने इसे महज विपक्ष का आरोप बताया। विपक्ष का यह भी कहना था कि इतने कम समय में यानी 97 दिन में बिहार में गहन मतदाता पुनरीक्षण का काम हो ही नहीं सकता जबकि चुनाव आयोग का कहना था कि यह समय सीमा नियमों के मुताबिक है और सार्वजनिक भागीदारी, आपत्ति प्रतिक्रिया आदि के पूरा होने के लिए भरपूर समय है। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया था कि अपनी मतदाता पहचान की पुष्टि के लिए चुनाव आयोग ने जो दस्तावेज मांगे हैं, उनके कारण भी कई लाख मतदाता इस सूची से बाहर हो जाएंगे, क्योंकि इसमें आधार कार्ड और राशन कार्ड दस्तावेजों को शुरु में नहीं स्वीकार किया गया था। लेकिन सर्वोच्च अदालत के हस्तक्षेप के बाद आधार कार्ड को स्थायी मतदाता पहचान का प्रमाणपत्र मान लिया गया। जब विपक्ष ने चुनाव आयोग से उसकी पुनरीक्षित सूची मांगी तो चुनाव आयोग ने इसे डिजिटल फाइल के रूप में नहीं दिया, जिस पर विपक्ष का कहना था कि जानबूझकर इसे जटिल बनाया जा रहा है, जिससे कि गायब मतदाताओं को आसानी से ढूंढ़ा न जा सके।
विपक्ष ने जब इन सभी आरोपों के साथ सुप्रीम कोर्ट गये और कुछ पार्टियां मुख्य चुनाव आयोग के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात कही, इस पर 1 अगस्त से 18 अगस्त के बीच राजनीतिक दलों की ओर से पुनरीक्षण कार्यक्रम के तहत दर्ज करायी गई आपत्ति को लेकर हुई सुनवाई में चुनाव आयोग ने विपक्ष की इन सभी आरोपों को खारिज कर दिया। आयोग ने कहा कि उसने एसआईआर प्रक्रिया में सभी राजनीतिक दलों को ड्राफ्ट सूची दी है और उन्होंने अपने हस्ताक्षरों से इसे सत्यापित किया है। आयोग के मुताबिक इस गहन पुनरीक्षण के दौरान जनता से कुछ अहम सवाल पूछे गये हैं, जैसे कि क्या मृतकों के नाम हटाने चाहिए, क्या दो जगहों पर दर्ज नामों को एक जगह सीमित कर देना चाहिए? इसी तरह के अन्य सवालों के जवाब हासिल करने के बाद चुनाव आयोग के मुताबिक यह सूची तैयार की गई है। आयोग के मुताबिक विपक्ष गलत सूचनाएं फैला रहा है मसलन विपक्ष कह रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को वैध दस्तावेज़ माना है जबकि चुनाव आयोग के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कभी ऐसा नहीं कहा।
बहरहाल अब जो निर्णायक सूची आ गई है, उसके बाद भी आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला कम नहीं होगा बावजूद इसके कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण चुनाव आयोग ने इस निर्णायक सूची में भी जानबूझकर या धोखे में बाहर कर दिये गये मतदाताओं को भी फिर से सूची का हिस्सा बनाने के कई उपाय जारी किये हैं और पिछले 5 महीनों में जिस तरह से इस हंगामे ने बिहार के मतदाताओं को सजग किया है, उससे लगता नहीं कि कोशिश करके भी कोई मशीनरी मतदाताओं से उनके मतदान का हक छीन सकती है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर