अमरीका के अपने हित में नहीं एच-1बी वीज़ा फीस में वृद्धि 

हाल के वर्षों में अमरीका ने वैश्विक व्यापार और प्रवासन नीतियों में कड़ा रुख अपनाया है। दरअसल, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे के तहत बाहरी दुनिया से आने वाले सामान और प्रतिभा पर कई तरह की बाधाएं पैदा कर दी हैं। पहले अमरीका ने अपने यहां आयातित सामान पर टैरिफ बढ़ा दिया, ताकि विदेशी वस्तुएं महंगी हो जाएं और अमरीकी उपभोक्ता घरेलू उत्पादों की ओर आकर्षित हों। अब एच-1 बी वीज़ा की लागत बढ़ाकर दूसरे देशों से अमरीका आने वाले प्रतिभाशाली लोगों की संख्या कम करने का प्रयास किया है। इस प्रकार अमरीका विदेशियों के लिए एक तरह से अपने दरवाज़े बंद कर रहा है। सवाल यह है कि क्या अमरीका के पास अपने खुद के इतने प्रतिभाशाली लोग हैं जो आवश्यकता के अनुसार उत्पादन कर सकें या बढ़ा सकें। यदि अन्य देशों से आयात का विकल्प है, तो ठीक है अन्यथा कुछ वर्षों में अमरीकी प्रशासन का रवैया देश की अर्थव्यवस्था के एकाधिकार को खत्म कर देगा। 
 अमरीका ने प्रमुख देशों से आयातित सामान पर टैरिफ बढ़ाकर अपने बाज़ार को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने का प्रयास किया है। यह कदम अमरीका के औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की दृष्टि से समझा जा सकता है, लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि क्या यह रणनीति भविष्य में अमरीका के लिए लाभकारी रहेगी? अधिक टैरिफ के कारण अमरीका में आयातित वस्तुएं महंगी हो गई हैं। इससे अमरीकी कंपनियों के लिए भी कच्चा माल और मशीनरी की लागत बढ़ी है। इसके परिणामस्वरूप उनके उत्पादन की लागत बड़ी है। इससे केवल अमरीका में ही नहीं, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अमरीकी उत्पाद अन्य देशों के मुकाबले महंगे हो सकते हैं। परिणामस्वरूप अमरीका में घरेलू महंगाई के साथ उसका निर्यात भी महंगा हो सकता है।  एच-1 बी वीज़ा महंगा करने से अमरीका के नवाचार और शोध में बाधा आ सकती है। आज अमरीका का दुनिया में एकाधिकार है। मूल में उसका अनुसंधान और नवाचार पर व्यापक स्तर पर निवेश है, लेकिन इस क्षेत्र में तकनीक और उच्च-कुशलता के लिए वह विदेशी प्रतिभा पर निर्भर है। सिलीकॉन वैली और अन्य टेक हब में विदेशियों की बड़ी संख्या काम कर रही है। एच-1 बी वीज़ा महंगा और कठिन करने का मतलब यह हुआ कि अब कंपनियों को बाहर से उपलब्ध होने वाली प्रतिभा में कमी आएगी। 
यह अमरीका को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक प्रयास हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही यह अमरीकी अर्थव्यवस्था के वैश्विक एकाधिकार को खतरे में भी डाल सकती है। अगर उत्पादन और कुशल मानव संसाधनों की कमी रही तो कुछ वर्षों में अमरीकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है। 
विश्व के देशों को यह स्पष्ट संदेश गया है कि अमरीका अब अपने हितों को प्राथमिकता देने की ओर बढ़ रहा है। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, निवेश प्रवाह और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों में बदलाव की संभावनाएं बढ़ गई हैं। कई देशों ने अब अमरीका पर निर्भरता कम करने और अपनी उत्पादन और तकनीकी क्षमताओं को सुदृढ़ करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अब अमरीका के संरक्षणवाद और स्वायत्तता की रणनीति को लेकर सतर्क है।
अमरीका के इस कदम से यह सवाल अनिवार्य रूप से उठता है कि क्या एक देश अपने दरवाज़े बंद कर बाहरी सहयोग और संसाधनों पर निर्भरता कम करके दीर्घकालिक रूप से स्थिर रह सकता है या यह उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमज़ोर कर देगा? जवाब हां या नहीं में सीमित नहीं है बल्कि यह उस क्षमता और संसाधनों पर निर्भर करेगा जो अमरीका के पास वास्तव में हैं। (युवराज)

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