सदाचार-सत्य की विजय का महापर्व है दशहरा

सत्य पर असत्य की जीत का सबसे बड़ा त्योहार दशहरा देशभर में दो अक्तूबर को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार 1 अक्तूबर की शाम 7 बजकर 2 मिनट से दशमी तिथि शुरू हो जाएगी जो 2 अक्तूबर को शाम 7 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। यही वजह है कि रावण दहन 2 अक्तूबर को ही किया जाएगा। भगवान राम ने बुराइयों के प्रतीक रावण का वध कर देश और दुनिया को भय, आतंक और पापों से मुक्ति दिलाई थी। अब तो घर-घर रावण रूपी बुराई और आतंक ने अपना साम्राज्य फैला रखा है जिसे समाप्त करने के लिए एक नहीं असंख्य राम की ज़रूरत है। 
दशहरा या विजयदशमी पर्व हम हजारों सालों से मानते आ रहे हैं। राम को सत्य और रावण बुराई का प्रतीक माना गया है। यह भी कहा जा सकता है कि यह अन्याय पर न्याय और अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है। यह सतियुग की घटना बताई जा रही है। वर्तमान को हम कलियुग के रूप में जानते हैं। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो बस ईश्वर ही जनता है। उस समय एक रावण मारा गया था। मगर आज तो हमारे सामने रावणों की फौज खड़ी है जो अलग-अलग मुखौटे लगाए घर घर बुराई फैला रही है यानि आज एक नहीं, अनेक रावण हैं जो विभिन्न बुराइयों के प्रतीक हैं। असली दशहरा तो तभी मनाने में मजा आयेगा जब इन सभी रावणों का धूमधाम से वध हो। आज घर-घर रावण और पग पग लंका देखी जा रही है। अब तो आस्था स्थलों पर भी जाते डर लगता है। जाने किस मोड़ पर कोई रावण मिल जाये। एक गायक ने इन शब्दों में व्याख्या की है-
कलियुग बैठा मार कुंडली 
जाऊं तो मै कहां जाऊं
अब हर घर में रावण बैठा 
इतने राम कहां से लाऊं।
तुलसीदास कृत रामायण के अनुसार रावण ने सीता माता का हरण ज़रूर किया मगर उनके सतीत्व से खिलवाड़ नहीं किया। वह अपनी बहन सूर्पणखा का बदला लेना चाहता था। रावण सीता माता जी को डराता धमकाता रहा मगर कोई जोर जबरदस्ती नहीं की। मगर आज के रावण धर्मोपदेशक के रूप में हमारे साथ छल कपट करने पर उतारू हैं। आस्था के साथ सरेआम खिलवाड़ कर रहे हैं। बेटी और बहन के रिश्ते को तार-तार कर रहे हैं किन्तु हम अंधे और बहरे होकर सब कुछ देखते हुए भी अनजान बने हुए हैं। जब तक हम ऐसे रावणों को नहीं पहचानेंगे तब तक समाज में अनाचार और अत्याचार पलते रहेंगे। बहरहाल हम एक बार फिर विजयदशमी पर्व मना रहे हैं। सदा की तरह परिवार के साथ किसी मैदान पर पहुंच कर रावण वध देखेंगे। मेले का आनद लेंगे। कुछ खाएंगे, पियेंगे और घर लौट आएंगे। 
 आइये, हम इस कथा सारणी के पन्ने पलटें। दशहरा या विजयदशमी देश का एक प्रमुख त्योहार है। दशहरा का अर्थ है, वह पर्व जो पापों को हर ले। अन्याय के युग के अंत का यह पर्व है। दशहरा भक्ति और समर्पण का पर्व है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयदशमी का त्योहार देश भर में लाखों लोगों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। खुले स्थानों पर मेलों का आयोजन एवं राक्षसराज रावण कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतलों का प्रदर्शन और दहन किया जाता है। यह त्योहार हमें प्रेरणा देता है कि हमें अंहकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अंहकार के मद में डूबे हुये व्यक्ति का एक दिन विनाश तय है। रावण बहुत बड़ा विद्वान और वीर व्यक्ति था परन्तु उसका अहंकार ही उसके विनाश कारण बना। 
दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द ‘दश-हर’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ दस बुराइयों से छुटकारा पाना है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों—काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। विजय दशमी का यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने रावण का अंत कर दिया लेकिन अच्छाई और बुराई के बीच की यह जंग आज भी जारी है।

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