एआई से मनुष्य की सोचने व समझने की क्षमता होगी कमज़ोर
आज विज्ञान और तकनीक का युग है। विज्ञान और तकनीक के इस युग ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी निश्चित रूप से इनमें से एक है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे जीवन का हिस्सा बन गई है। एआई से काम करना बहुत आसान हो गया है। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य, कृषि, उधोग व व्यापार, परिवहन, सुरक्षा, बैंकिंग व वित्त, मनोरंजन, दैनिक जीवन, अंतरिक्ष तक आज कौनसा क्षेत्र है, जहां एआई से काम नहीं हो रहा है। कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि आने वाले वर्षों में एआई पारम्परिक नौकरियों को प्रभावित करेगी और काम करने के तरीकों में मूलभूत परिवर्तन लाएगी। सभी जानते हैं कि मानव की तुलना में एआई विभिन्न कार्यों को तेज़ी और सटीकता से करने में सक्षम है। परिणामस्वरूप कई जगह मानव श्रमिकों की आवश्यकता कम होने लगी है।
आज के युग में निरन्तर डाटा वैज्ञानिक, मशीन लर्निंग इंजीनियर, साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ और एआई नैतिकता से जुड़े पदों की मांग लगातार बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त, यह भी एक तथ्य है कि एआई के कारण हेल्थकेयर, शिक्षा और कृषि क्षेत्र समेत अनेक क्षेत्रों में में नए नवाचार होंगे, जिससे नई तरह की नौकरियां पैदा होंगी। संक्षेप में कहें तो एआई के दोनों पहलू हैं। इसमें अवसर भी हैं और चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पारम्परिक नौकरियों पर निर्भर लोगों को नए कौशल सिखाना और तकनीक के अनुकूल बनाना आज के समय की बड़ी मांग है। इसके लिए स्किल डिवेल्पमेंट प्रोग्राम चलाए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा एआई का नैतिक और जिम्मेदार उपयोग सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है ताकि यह केवल मुनाफे का साधन न रहकर मानव कल्याण का साधन बने।
एआई मशीन आधारित तकनीक है, इसमें मानव जैसी भावनाएं, संवेदनाएं या नैतिक मूल्य स्वयं से मौजूद नहीं होते। यह केवल डेटा, एल्गोरिद्म और प्रोग्रामिंग पर आधारित होकर कार्य करती है। इसलिए इसका नैतिक और ज़िम्मेदार उपयोग पूरी तरह से मानव पर निर्भर है। पूरी तरह एआई पर निर्भरता से इंसान के सोचने और समस्या हल करने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है।
वास्तव में एआई के कारण बदलाव नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह के होंगे। कुछ नौकरियां घटेंगी, तो वहीं दूसरी ओर कुछ नए अवसर भी उत्पन्न होंगे। हमारे देश में ज्यादातर नौकरियां मानव श्रम पर निर्भर हैं और हमारे यहां एआई चालित बदलाव तेज़ी से महसूस होंगे। विशेष रूप से कॉल सेंटर, दस्तावेजी काम, बुनियादी विश्लेषण इत्यादि में। भारत में युवा शक्ति, तकनीकी शिक्षा की उपलब्धता, आनुवांशिक क्षमता और अंग्रेज़ी ज्ञान जैसे फायदे भी हैं और यदि लोगों को सही दिशा में प्रशिक्षित किया जाए तो वे इन बदलाव का लाभ उठा सकते हैं। आज ज़रूरत इस बात की है कि लर्निंग, रिस्क्लिंग और नीति-निर्माण पर ध्यान दिया जाए। आज के समय में यह बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि एआई से डरने के बजाय इसे अवसर के रूप में स्वीकार किया जाए और खुद को समयानुकूल बनाया जाए। यही वह रास्ता है जिससे एआई के प्रभाव को सकारात्मक दिशा में ले जाया जा सकता है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि एआई न तो पूर्ण रूप से वरदान है और न ही अभिशाप। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस तरह अपनाते हैं। यदि हम रचनात्मक सोच, तकनीकी शिक्षा और कौशल-विकास पर ध्यान दें तो एआई नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा, लेकिन यदि हम इसके नकारात्मक प्रभावों को नज़रअंदाज़ करेंगे, तो यह बेरोज़गारी और सामाजिक असमानता का कारण भी बन सकती है। इसलिए इस तकनीक का उपयोग बहुत समझदारी के करने की ज़रूरत है।
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