मतदाता सूची की पारदर्शिता

देश के एक बड़े राज्य बिहार के चुनावों को मात्र दो महीने का समय शेष रह गया है, परन्तु विगत लम्बी अवधि से यहां की राजनीति बेहद गर्म दिखाई दे रही है। कई वर्षों तक राष्ट्रीय जनता दल जिसका नेतृत्व लालू प्रसाद यादव करते रहे थे, की तूती बोलती रही परन्तु बाद में वह परिवारवाद, भ्रष्टाचार, अमन और कानून की बिगड़ी हुई स्थिति और राज्य में फैली ़गरीबी के कारण बेहद बदनाम हो गए थे। भ्रष्टाचार के मामलों में लालू प्रसाद यादव सहित उनके परिवार के कई सदस्य भी फंस गए थे। प्रदेश की राजनीति में यहां तक अवसान आ गया था कि चारा घोटाले में लम्बी सज़ा सुनाए जाने पर जेल जाने के बाद लालू ने वर्षों तक राजनीति से अनभिज्ञ अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाए रखा। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय मंत्री होते हुए हुई गड़बड़ियों के कारण भी लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों पर ज़मीन घोटाले संबंधी भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हैं। इनमें कई मामलों में उन्हें सज़ाएं भी सुनाई जा चुकी हैं।
तब लालू प्रसाद यादव के राज को ‘जंगल राज’ भी कहा जाने लगा था। उसके बाद जनता दल (यू) के प्रमुख नितीश कुमार का उभार हुआ। नितीश को असूलों पर चलने वाली शख्सियत समझा जाता रहा है और उनके शासन के समय भ्रष्टाचार में भी कमी आई थी। उनके समय में औंधे मुंह गिरा पड़ा बिहार बेहतर स्थिति में आया था। बाद में नितीश पर ये आरोप लगने शुरू हो गए कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से इतना प्रेम है कि वह इसके लिए अवसरवादी की सीमा पार करने तक भी पहुंच जाते हैं। उन्होंने क्षेत्रीय एवं कई राष्ट्रीय पार्टियों के साथ अपनी कुर्सी बचाने के लिए सांठ-गांठ जारी रखी। आज कल वह कुर्सी पर बने रहने के लिए भाजपा के चहेते हैं। ऐसी विचारधारा से उनकी शख्सियत का भारी क्षरण होता दिखाई देने लगा है। बिहार में विधानसभा के चुनाव नज़दीक आने पर एक तरफ महागठबंधन और तेजस्वी यादव का राष्ट्रीय जनता दल और अन्य पार्टियां सक्रिय हैं, दूसरी तरफ सत्तारूढ़ भाजपा और नितीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यू) के साथ जुड़ी अन्य दर्जन भर छोटियां पार्टियां मुकाबले के लिए तैयार खड़ी हैं। विगत लम्बी अवधि से राहुल गांधी ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में किए जा रहे गहन संशोधन को केन्द्र में रख कर भाजपा पर ‘वोट चोर’ होने का दोष लगाया है। उन्होंने बार-बार यह भी कहा है कि भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिल कर ऐसा कर रही है। इसके लिए राहुल ने देश भर में अपनी पार्टी की इकाइयों द्वारा प्रदर्शन भी किए हैं और धरने भी दिए थे। बिहार में इस मुद्दे को लेकर यात्रा भी निकाली गई और बार-बार चुनाव आयोग को आरोपी भी ठहराया गया। भारतीय चुनाव आयोग ने जून महीने में यह घोषणा की थी कि वह बिहार में मतदाताओं को मामले में ‘विशेष व्यापक पड़ताल प्रक्रिया’ शुरू करेंगे ताकि उचित मतदाताओं का पूरा पता करवा कर निर्णायक परिणाम पर पहुंचा जा सके।  इस संबंध में राहुल गांधी ने काफी समय तक आयोग की आलोचना जारी रखी। इस संबंध में अलग-अलग पार्टियों, संगठनों और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग के इस संशोधन को और भी पारदर्शी बनाने के लिए अपने सुझाव इस प्रक्रिया में शामिल करने के लिए कहा परन्तु आयोग द्वारा वोटों की जांच के कार्य को निर्विघ्न जारी रखने पर अदालत ने प्रतिबन्ध नहीं लगाया। सर्वेक्षण के बाद अपनी एक अगस्त को जारी की गई पहली सूची में उसने प्रदेश के कुल मतदाताओं की संख्या 7.24  करोड़ की थी। सर्वेक्षण से पहले यह संख्या 7.89 करोड़ थी। पहली सूची में से सर्वेक्षण के उपरांत 65 लाख मतदाताओं के नाम काटे गए थे। इस संबंध में मृत्यु, पलायन और मतदाताओं के नाम दोहराए जाने के प्रमाण पेश किए गए थे। उसके बाद ही प्रक्रिया में वर्ष 2022 की सूची के मुकाबले अब अंतिम सूची में 6 लाख मतदाता और शामिल किए गए हैं। अब आई अंतिम सूची 30 सितम्बर को जारी की गई है, जिसमें 21.53 लाख नए योग्य मतदाता शामिल किए गए हैं और 3.66 लाख अयोग्य मतदाता हटाये गए हैं। इस समय कुल मतदाताओं की संख्या 7.42 करोड़ है। इसके साथ ही आयोग ने यह भी कहा है कि इस सूची को चुनाव आयोग की वैबसाइट पर डाल दिया गया है। इसमें दर्ज होने से वंचित रह गए नामों को चुनाव होने से 10 दिन पहले तक भी ठोस दस्तावेज़ों के आधार पर मतदाता सूची में शामिल करवाया जा सकता है। जो व्यक्ति इस सूची से असन्तुष्ट हों, वे कानून की धाराओं के तहत ज़िला मैजिस्ट्रेट या प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी को लिखित शिकायत देने के हकदार होंगे। आयोग ने इस संशोधन में प्रदेश की समूची चुनाव मशीनरी और प्रत्येक स्तर के जांच अधिकारियों का चुनाव आयोग को सहयोग देने के लिए धन्यवाद भी किया है।
हम समझते हैं कि चुनाव आयोग की इस घोषणा से मतदाताओं के नामकरण और संख्या संबंधी स्थिति बड़ी सीमा तक स्पष्ट हो गई है। इसके बाद राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस संबंध में शोर-शराबा करने का ज्यादा अर्थ नहीं होगा। नि:संदेह बिहार के चुनाव भिन्न-भिन्न पक्षों द्वारा बड़े ही उत्साह से लड़े जा रहे हैं, इसलिए इनका पारदर्शी होना भी ज़रूरी है और मज़बूत लोकतंत्र के लिए यह शांतिमय ढंग से सफल हों, ऐसी उम्मीद भी की जानी चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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