पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए केन्द्र खुल कर आगे आए
क्या सितम करते हैं मिट्टी के खिलौने वाले,
राम को रखे हुए बैठे हैं, रावण के करीब।
आज दशहरा है और मैं यह कालम शुरू करते समय वर्तमान हालात पर चरितार्थ होता शायर ‘होश जौनपुरी’ का यह शे’अर पाठकों को समर्पित किये बगैर नहीं रह सका। वैसे आज सिर्फ मिट्टी के खिलौने बेचने वाले ही भगवान श्री राम की मूर्ति रावण की मूति के निकट रख कर नहीं बैठे हुए, अपितु सच तो यह है कि आज गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले में रावण ज़्यादा दिखाई दे रहे हैं और राम जो घट-घट में विद्यमान तो हैं, परन्तु धरातल पर दिखाई नहीं दे रहे। ़खैर, यह त्योहार बुराई पर अच्छाई एवं सच्चाई की जीत का प्रतीक है, और आशा करता हूं कि अब भी अंत में सच्चाई और अच्छाई की ही जीत होगी। साधु के वेष में रावण सीता हरण तो कर सकता है, परन्तु इतिहास में उसका अंत निश्चित है। नि:संदेह इस समय अकेले भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ही बर्बादी, ताकत की भूख तथा ज़ालिम बुराई हावी हुई दिखाई दे रही है। इस समय तो इस दुनिया के दुखों, ज़ुल्मों, लड़ाइयों, भुखमरी, युद्धों तथा अन्य अप्राकृतिक एवं प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ अरदास ही की जा सकती है। सैयद सरोश आसिफ के शब्दों में :
दर्द घनेरा हिज्र का सहरा घोर अंधेरा और यादें,
राम निकाल ये सारे रावण मेरी राम-कहानी से।
बाढ़ के लिए राहत, असमंजस बढ़ा है
हर श़ख्स को जीवन के सदमे तन्हा ही उठाने होते हैं,
रहबर तो ़फकत बस राहों में बातों का सहारा देते हैं।
पंजाब में बाढ़ की स्थिति उपरोक्त शे’अर से कोई अधिक अलग नहीं है। पंजाब के एक बड़े हिस्से ने इस बाढ़ में बर्बादी, पीड़ा, दुख तथा नुकसान की जो मार सहन की है, उसकी भरपाई पंजाबी स्वयं या उनके हमदर्द तो जी-जान से कर रहे हैं, परन्तु केन्द्र तथा पंजाब सरकार तो इस समय आरोपों के खेल (ब्लेम गेम) ही खेल रहे हैं। वे जब तक क्रियात्मक रूप में सहायता करेंगी, तब तक शायद पंजाब के बहादुर सखी लोग पंजाब को इस मुश्किल से बड़ी सीमा तक निजात दिला चुके हैं। आश्चर्यजनक बात है कि अभी तक पंजाब तथा केन्द्र सरकारें लोगों का हाथ पकड़ने की बातें तो कर रही हैं, परन्तु क्रियात्मक रूप में कुछ नहीं हो रहा। पंजाब सरकार ने विधानसभा सत्र बुला कर कुछ फैसले भी किये हैं, परन्तु यह सत्र भी प्रचार सभा जैसा ही प्रतीत हुआ। अब जब पंजाब के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री से मिलने का समय नहीं मिला तो वह गृह मंत्री अमित शाह को मिले हैं, परन्तु इस मुलाकात ने भी तस्वीर स्पष्ट कम की है, अपितु शोर-शराबे को और अधिक बढ़ाया है। मौखिक रूप में अमित शाह ने कह दिया है कि केन्द्र सरकार पंजाब के कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है, परन्तु वह अपने पुराने स्टैंड से टस से मस नहीं हुए कि पंजाब के पास पहले ही राज्य आपदा प्रबंधन का 12,589 करोड़ रुपये पड़े हैं और प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 1600 करोड़ की ‘टोकन मनी’ बारे भी उन्होंने कहा है कि इसमें से भी अलग-अलग योजनाओं के लिए 805 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं जबकि मुख्यमंत्री भी नुकसान के बारे में अभी तक स्पष्ट नहीं हैं। वह कहते हैं कि नुकसान का प्राथमिक अनुमान 13,832 करोड़ रुपये है, परन्तु कुल नुकसान 20 हज़ार करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इस प्रकार प्रतीत होता है कि यह सारा ज़ुबानी जमा खर्च ही हो रहा है। न तो पंजाब सरकार ही लोगों के आगे 12,589 करोड़ रुपये की स्थिति स्पष्ट कर पा रही है और न ही केन्द्र पंजाब को कोई विशेष पैकेज देने के लिए सहमत होते प्रतीत हो रहा है। इस प्रकार असमंजस बढ़ता जा रहा है। प्रतीत होता है कि दुख से ग्रस्त लोगों की सहायता का समय इसी तरह ही गुज़र जाएगा और धीरे-धीरे जीवन फिर से अपनी गति पकड़ लेगा, परन्तु जो ज़ख्म यह प्राकृतिक आपदा बाढ़ पीड़ितों को दे जाएगी, उससे पीड़ितों की कई पीढ़ियां जूझती रहेंगी। वैसे पंजाब सरकार ने एक बयान दिया है कि पंजाब को विगत 15 वर्षों में प्राकृतिक आपदा फंड (एस.डी.आर.एफ.) के तहत सिर्फ 5012 करोड़ रुपये ही मिले हैं और इसमें से 3820 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, परन्तु चाहिए तो यह है कि दोनों पक्ष अपने-अपने दावों के बारे में दस्तावेज़ सार्वजनिक करें।
ज़रूरत है तत्काल सहायता की
कुछ बात पिनहां है कि ये है तेरी आदत में शुमार,
उ़फ, दोस्ती तेरी भला क्यों दुश्मनी जैसी लगे।
-लाल फिरोज़पुरी
(पिनहां = छिपी हुई, गुप्त)
वास्तव में यह बाढ़ पर राजनीति करने का समय तो बिल्कुल नहीं, परन्तु अफसोस है कि ये दोनों पक्ष ही नहीं, अपितु अन्य बहुत से पक्ष भी राजनीति ही कर रहे हैं। इस समय पंजाब जो देश के हर मुश्किल समय में देश के प्रत्येक धर्म, प्रत्येक प्रांत का हाथ पकड़ता है, की स्वयं की मुश्किल घड़ी में मदद के समय केन्द्र सरकार का आकलन में पड़ना किसी तरह भी उचित नहीं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे अधिक कुर्बानियां पंजाबियों ने दी हैं। देश के विभाजन के समय विश्व के इतिहास में किसी भी देश के विभाजन के समय सबसे अधिक जान पंजाबियों ने गंवाईं और आर्थिक नुकसान भी पंजाबियों ने सहन किया, परन्तु बदले में केन्द्र सरकारों ने पंजाबियों के साथ दोस्ती नहीं, दुश्मनी ही निभाई। देश भर में भाषा के आधार पर राज्य बनाने का फैसला कर लिये जाने के बावजूद पंजाबी भाषा को धर्म के साथ जोड़ कर पंजाबियों को आपस में लड़ा कर पंजाबी सूबा बनाने से इन्कार कर दिया गया। इस बीच 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पंजाबियों ने सब कुछ भुला कर केन्द्र की एक आवाज़ पर केन्द्र को 252 किलो सोना दे दिया जबकि बाकी पूरे देश ने साढ़े 5 किलो से भी कम सोना दिया। पंजाबियों ने कुल एकत्र हुए 8 करोड़ रुपये में से भी पौने 4 करोड़ रुपये अकेले ने दिये और पंजाबी ही सेना में भारी संख्या में भर्ती हुए, परन्तु इसके बावजूद जब अनेक कुर्बानियों के बाद जब पंजाबी सूबा बनाया भी गया तो, पंजाबी भाषी क्षेत्र, चंडीगढ़, डैम तथा अन्य पता नहीं क्या-क्या छीन लिया गया। आश्चर्यजनक बात यह कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट में अलोकार धाराएं 78, 79 तथा 80 शामिल करके पंजाब के हाथ काट दिये गये। ़खैर, यह लम्बी कहानी है। अब भी सम्भल जाओ, पंजाबियों को और बेगानेपन का एहसास न कराओ, पहले का जो भी लेन-देन है, उसका हिसाब बाद में करते रहना। केन्द्र के पास ताकत है, परन्तु इस समय पंजाब की बाजू पकड़ कर पंजाब के आर्थिक सहायता के लिए एक विशेष पैकेज दिया जाए। बेशक यदि आपको पंजाब सरकार द्वारा पैसा किसी और कार्य में खर्च करने का शक है तो इस पैकेज के खर्च की निगरानी के लिए केन्द्र तथा पंजाब के अधिकारियों की कोई संयुक्त निगरान समिति बनाई जा सकती हैं, परन्तु केन्द्र सरकार को इस समय खुले दिल से पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। पंजाब सरकार से भी निवेदन है किर वह हुए नुकसान के पूरे एवं स्पष्ट आंकड़े पेश करे। कभी कोई और कभी कोई आंकड़े पेश करना भी ठीक बात नहीं है।
शिरोमणि कमेटी की ए.आई. बारे बैठक
आये दिन आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस (ए.आई.) तकनीक से दरबार साहिब तथा अन्य सिख धर्म स्थानों बारे फर्जी वीडियो डालने के रुझान को रोकना बहुत ज़रूरी है और केन्द्र के लिए ऐसा करने वालों को पकड़ना कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं, परन्तु हम शिरोमणि कमेटी द्वारा ए.आई. के दुरुपयोग, भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए बुलाई बैठक की पहल का स्वागत करते हैं। साथ ही आशा करते हैं कि ए.आई. तकनीक सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अच्छे तरीके से इस्तेमाल भी की जाएगी।
ठीक है कि इस बैठक में ए.आई. तकनीक समझने वाले कुछ सिख व्यक्ति भी बुलाए गए, परन्तु अधिकतर लोग सिर्फ शिक्षा विशेषज्ञ या शिरोमणि कमेटी से संबंधित ही थे। हमारे सामने है कि जब हमने एक बड़े कानून-विद् मुकुल रोहतगी को भाई राजोआणा का केस लड़ने के लिए भेजा तो स्थिति कितनी बदली है। अत: हमारा निवेदन है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ए.आई. तकनीक के उपयोग तथा इसके दुरुपयोग के खिलाफ एक अलग विभाग बनाए जिसका प्रमुख एक पक्का विशेषज्ञ सिख हो, परन्तु इसके लिए इस तकनीक के उच्च कोटि के कुछ विशेषज्ञों की सेवाएं अवश्य ली जाएं। यदि वे सिख हों तो अच्छी बात, परन्तु यदि सिख नहीं हैं तो भी विशेषज्ञों की सेवाएं आवश्यक हैं।
आप-भाजपा समझौता सम्भव नहीं लगता
देश के कुछ समाचार पत्रों तथा सोशल मीडिया पर यह चर्चा ज़ोरों पर चल रही है कि पंजाब के 2027 के विधानसभा चुनाव ‘आप’ तथा भाजपा मिल कर लड़ सकती हैं। चर्चा यहां तक है कि ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल तो इसलिए सहमत भी हैं और भाजपा इस संबंध में विचार कर रही है। परन्तु हमारी समझ के अनुसार यह बात अनहोनी भी है और भाजपा के लिए बड़ी नुकसानदेह भी। चाहे हम उन व्यक्तियों में से हैं जो सबसे पहले यह कहने वाले थे कि ‘आप’ तो आर.एस.एस. का ही संगठन है और यह कांग्रेस के बिना भारत के सपने की पूर्ति के लिए बनाई गई है, परन्तु इसके बावजूद हमें भाजपा तथा ‘आप’ में पंजाब में मिल कर चुनाव लड़ने के आसार नहीं के बराबर ही प्रतीत होते हैं, क्योंकि 2027 में 7 प्रांतों में विधानसभा चुनाव होने हैं। यदि भाजपा पंजाब में ‘आप’ से समझौता कर लेगी, फिर एन.डी.ए. विरोधी वोट बांटने के लिए कौन बचेगा। 2027 में पंजाब के अतिरिक्त गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल तथा गुजरात के अतिरिक्त मणिपुर में चुनाव होंगे। मणिपुर को छोड़ कर शेष राज्यों में भी यदि ‘आप’ अलग तौर पर न लड़ी तो यह भाजपा के लिए नुकसान की बात होगी। इसलिए हमें नहीं प्रतीत होता कि ‘आप’ तथा भाजपा पंजाब में मिल कर चुनाव लड़ सकती हैं।
बस्ती की दीवार पे किसने अन-होनी बातें लिख दी हैं,
इस अनजाने डर की बातें घर-घर होंगी तब सोचेंगे।
-इ़िफ्त़िखार आऱिफ
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
-मो. 92168-60000