नई सम्भावनाएं

अभी लोकसभा के चुनावों के परिणाम 23 मई को आने हैं, परन्तु चुनावों का सातवां चरण समाप्त होने पर एकदम बाद नई सरकार संबंधी अनुमान लगने शुरू हो गए हैं। प्रत्येक चुनाव के परिणाम संबंधी ऐसे अनुमान अक्सर लगाये जाते हैं। कई बार यह काफी सीमा तक सही भी हो जाते हैं और कई बार ऐसी भविष्यवाणी गलत भी साबित होती है। परन्तु इनसे आन्तरिक तौर पर चलते रुझान का प्रकटावा अवश्य हो जाता है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत प्राप्त की थी और उस समय भारतीय जनता पार्टी अपने तौर पर 543 में से 282 सीटें जीत कर अपने तौर पर भी बहुमत में आ गई थी। पांच वर्ष के बाद इस सरकार की उपलब्धियों की बजाय इसके लक्ष्य पूरे न होने की बात अधिक चलती है। उस समय किसानों से लेकर बेरोज़गारी खत्म करने तक के लिए युवाओं के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने जो वायदे किए थे और खासतौर पर नरेन्द्र मोदी ने बार-बार जिस तरह इनको दोहराया था, उनमें से अधिकतर संतोषजनक सीमा तक पूरे नहीं किए जा सके। किसानों को फसलों के स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मूल्य नहीं मिल सके। देश में बेरोज़गारी कम होने की बजाय बढ़ती गई। सरकार ऐसे आंकड़े नश्र करने से ही हिचकिचाती रही। इसके साथ ही देश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता दिखाई देता रहा। देश के संविधान की रक्षा करने के मोर्चे पर पैदा हुई चुनौतियों से प्रभावशाली ढंग से निपटने में भी सफलता हासिल नहीं हो सकी। चाहे नरेन्द्र मोदी द्वारा लागू की गई नोटबंदी के प्रभाव नकारात्मक रहे, परन्तु मोदी की आम लोगों के लिए घोषित की गई योजनाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव देखने को अवश्य मिला। इनमें गैस कनैक्शन देना, आयुष्मान भारत योजना, बड़े स्तर पर गरीबों के लिए छोटे घरों का निर्माण, यहां तक कि गांवों में ज़रूरतमंद लोगों के लिए शौचालयों तक का निर्माण करना आदि शामिल हैं। ऐसे प्रबंध करके सरकार द्वारा यह ख्याल अवश्य रखा गया कि इन आम योजनाओं के लाभ प्रत्यक्ष रूप में लोगों तक पहुंचे। इस संबंध में सरकार बड़ी सीमा तक सफल हुई भी दिखाई देती है। नि:संदेह नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा बनाने में भी बड़ा योगदान डाला है। आतंकवाद रोकने के लिए अपने पड़ोसी पाकिस्तान को दिए गए व्यवहारिक रूप में सीधे संदेशों ने देशवासियों के मनों में सरकार के प्रभाव को बढ़ाया है। आर्थिक पक्ष से भी नई कर-प्रणाली शुरू करके देश को मज़बूती के रास्ते पर चलाने का प्रयास किया है। दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रभावशाली गठबंधन करके श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा को कोई बड़ी टक्कर देने में नाकाम रही है। चाहे उत्तर प्रदेश में बसपा और समाजवादी पार्टी गठबंधन बनाने में सफल रहे। चाहे राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने मोदी को भ्रष्टाचार के मामले में कटघरे में खड़ा करने का बेहद प्रयास किया परन्तु इसमें वह सफल नहीं हो सके। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का नेतृत्व करते हुए मोदी की एक प्रभावशाली नेता के रूप में छवि बनी है। ऐसी छवि वाले नेता की विपक्षी पार्टियों में कमी खटकती है। इस बार यदि भारतीय जनता पार्टी की अपने तौर पर लोकसभा की सीटों संबंधी स्थिति पहले जैसी न भी हो, तो भी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मोदी के सरकार बनाने की सम्भावना प्रकट हुई नज़र आती है। कम से कम बड़ी कम्पनियों और संस्थानों द्वारा किए गए सर्वेक्षण ऐसा ही दर्शाते हैं। परन्तु इसके साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जो जनता दल (यू.) के प्रमुख हैं, द्वारा साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की गांधी और गोडसे के बारे में की गई टिप्पणी के बारे में जो सवाल उठाया गया है, उसका जवाब आगामी समय में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को देना ही पड़ेगा। इसके साथ ही आगामी समय में केन्द्र सरकार द्वारा समय-समय पर भाजपा द्वारा उठाये जाते रहे विवादास्पद मामलों को ठण्डे बस्ते में डालने की ज़रूरत होगी, ताकि देश को सही अर्थों में विकास के पथ पर चलाया जा सके और ठोस उपलब्धियां की जा सकें।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द