तमिलनाडू में सम्भावनाएं तलाश रही है भाजपा 

‘राजनीति सम्भावनाओं से पैदा होती है तथा रिक्त स्थान इन सम्भावनाओं को भरने में सहायता करता है।’ उक्त शब्द को भारतीय सन्दर्भ के रूप में देखें तो कह सकते हैं कि तमिलनाडू में इस समय विपक्षी पार्टी का रिक्त स्थान है तथा भाजपा इस रिक्त स्थान में सम्भावनाएं तलाश रही है।
मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि द्वारा सनातन धर्म पर की गई टिप्पणी भाजपा के लिए पहली सम्भावना बनी है। भाजपा विगत लम्बी अवधि से तमिलनाडू की नब्ज़ ढूंढ रही है, जिसकी कमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सम्भाली हुई है। वैसे तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर एवं सूचना तथा प्रसारण राज्य मंत्री एस. मुरगन भी उसी क्षेत्र से संबंध रखते हैं परन्तु सीतारमण को तमिलनाडू में जन नेता के रूप में स्थापित करने के यत्न स्पष्ट देखे जा सकते हैं। वह प्रदेश में विचरण भी कर रही हैं तथा दिल्ली में भी तमिलनाडू का प्रतिनिधित्व करते दिखाई दे रही हैं।
विगत मास खत्म हुये संसद के मानसून अधिवेशन में विपक्ष द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान 10 अगस्त को निर्मला सीतारमण द्वारा दिये गये 45 मिनट के भाषण में लगभग 40 मिनट तक उनका ब्यान तमिलनाडू पर रहा। फिर चाहे वह नये संसद भवन में सेंगोल की स्थापना  को लेकर उसे बनता स्थान देने का दावा हो, या फिर प्रदेश के पारम्परिक खेल जल्लीकट्टू से पाबन्दी हटाने का मामला हो। सीतारमण न सिर्फ भाजपा द्वारा तमिलनाडू के लिए किये गये यत्नों का विवरण देते दिखाई दीं, अपितु उनके निशाने पर प्रदेश में सत्ता पर काबिज़ डी.एम.के. भी रही। वित्त मंत्री ने मार्च 1989 में तमिलनाडू विधानसभा में घटित उस घटना का ज़िक्र करने से भी गुरेज़ नहीं किया, जिसमें जयललिता के साथ विधानसभा में डी.एम.के. नेताओं ने मारपीट की थी। सीतारमण ने महाभारत की द्रौपदी के चीर हरण के साथ उक्त घटना की तुलना करते हुए कहा कि भरी सभा में जयललिता की साड़ी खींची गई थी।
वित्त मंत्री के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिये गये भाषणों में भी तमिलनाडू की शख्सियतों का ज़िक्र होता है। फिर चाहे वह संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए भाषण में तमिल कवि थिरूवल्लुवेई का ज़िक्र हो जा फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरे पर उन्हें महाबलीपुरम ले जाना हो, सभी कदम तमिलनाडू को दृष्टिगत रखते हुए ही उठाये जा रहे हैं। पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी के. अंकामलाई, जो भाजपा के तमिलनाडू में अध्यक्ष हैं, की गतिविधियां भी प्रदेश के रिक्त स्थान को भरने की कवायद की ओर ही संकेत करती हैं। अन्नामलाई ने भाजपा को प्रदेश के लोगों के साथ जोड़ने के लिए ‘मेरी धरती, मेरे लोग’ नामक यात्रा की शुरुआत की है, जो कि प्रदेश के 234 विधानसभा क्षेत्रों से होते हुए आगामी वर्ष, लोकसभा चुनावों से ठीक पहले, 11 जनवरी को खत्म होगी। 
तमिलनाडू की राजनीति का यह शून्य वहां की दोनों पारम्परिक पार्टियों डी.एम.के. तथा ए.आई.ए.डी.एम.के.   में आये नेतृत्व के संकट से पैदा हुआ है। डी.एम.के. के करुणानिधि तथा ए.आई.ए.डी.एस.के. की जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडू की राजनीति में स्पष्ट रूप से एक जड़ता दिखाई दे रही है। तमिलनाडू की राजनीति शुरू से ही करिश्माई नेताओं से प्रभावित रही है फिर चाहे वह सी.एन. अन्नादुराई हों, एम.जी. रामचन्द्रन, करुणानिधि हों या फिर जयललिता। तमिलनाडू में डी.एम.के. कुछ बेहतर स्थिति में है क्योंकि करुणानिधि अपने होते हुए स्टालिन को अपना वारिस घोषित कर गए थे। हालांकि स्टालिन के करुणानिधि की भांति करिश्माई नेता बनने में अभी समय लगेगा, परन्तु विपक्ष माना जाता ए.आई.ए.डी.एम.के. अपनी ज़मीन खो रहा है। जयललिता की मृत्यु के बाद उनके सबसे निकट समझी जाती शशिकला शक्ति के केन्द्र स्वरूप स्थापित होने की क्षमता रखती थीं, परन्तु 2016 में जयललिता की मृत्यु के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्रोतों से अधिक सम्पत्ति के मामले में दोषी पाई गई शशि कला का कैरियर जेल की सलाखों के पीछे ही दबा रह गया। शशिकला द्वारा ही चुने गये नेता ए.के. पलानीस्वामी ने सितम्बर, 2017 में उन्हें पार्टी से निलम्बित कर दिया था। जेल से रिहाई के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति में वापसी की घोषणा भी की परन्तु भ्रष्टाचार के मामलों के कारण वह जनवरी 2027 तक चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य करार दी गईं।  कभी सत्ता की दावेदारी करने वाली पार्टी इस समय स्थानीय नेतृत्व की जटिलाओं में उलझी दिखाई दे रही है जिसकी कीमत पार्टी को प्रदेश में लगातार सिकुड़ते आधार के रूप में अदा करनी पड़ रही है। 
ए.आई.ए.ए.डी.एम.के. की इसी सिकुड़न के दृष्टिगत भाजपा अपने गठबंधन भागीदार के स्थान पर स्वयं को बड़ा भाई साबित करने के चक्कर में है। उस समय ऐसे ही यत्न पंजाब में भी किये जा रहे हैं। पंजाब तथा तमिलनाडू में यत्नों के अलावा भाजपा पश्चिम बंगाल में यह मुकाम हासिल कर चुकी है जहां कभी सत्ता पर काबिज़ तथा कभी मज़बूत विरोधी पार्टी रह चुकी कांग्रेस एवं सी.पी.आई. (एम.) हाशिये पर पहुंच चुकी हैं। भाजपा ने विगत चुनावों में न सिर्फ स्वयं को विपक्ष के रूप में स्थापित किया, अपितु सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का आखिरी समय तक सांस दबाये रखा।
भाजपा को दरपेश चुनौतियां
रिक्त स्थान से उभरती सम्भावनाओं के बावजूद भाजपा का तमिलनाडू के ज़रिये दक्षिण को फतेह करने का मार्ग आसान नहीं है। क्षेत्रीय राजनीति पर नज़दीक से दृष्टि रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ़गैर तमिल पार्टी के लिए तमिलनाडू के मतदाताओं को प्रभावित करना आसान नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे जो उत्तर भारत में पार्टी के उभार का कारण हैं, अर्थात् राम मंदिर, धारा 370 तथा पाकिस्तान विरोधी मुद्दे का क्षेत्रीय राजनीति में कोई प्रभाव नहीं जिसके कई कारण हैं—
पहला, प्रदेश में आज़ादी से पहले तथा बाद में हिन्दी विरोधी अभियानों का इतिहास रहा है। 1967 में डी.एम.के. के संस्थापक सी.एम. अन्नादुराई इन अभियानों के सहारे ही सत्ता पर काबिज़ हुये थे। पांच दशकों से अधिक समय के बाद भी कांग्रेस सहित कोई ़गैर-द्रावड़ियन पार्टी इस मुद्दे की सार्थकता को मिटाने में सफल नहीं हुई।
दूसरा, भाजपा का गठबंधन भागीदार ए.आई.ए.डी.एम.के. भी भाजपा के लक्ष्यों से नावाकिफ नहीं है। 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करके ए.आई.ए.डी.एम.के. को कोई खास फायदा नहीं हुआ था। वह ए.आई.ए.डी.एम.के. इस तथ्य से भी अवगत है कि प्रदेश में भाजपा का उभार ए.आई.ए.डी.एम.के. के अपने हृस की कीमत पर ही हो रहा है। इससे चौकस हुई ए.आई.ए.डी.एम.के. ने भाजपा नेताओं के साथ सम्पर्क करके उनको अपने खेमे में शामिल करने की कोशिश की है। 
पिछले मास भाजपा के कुछ नेता ए.आई.ए.डी.एम.के. में शामिल भी हुए हैं, जिनमें प्रदेश के सूचना और टैक्नोलॉजी विंग के प्रमुख सी.टी.आर. निर्मल कुमार भी शामिल हैं। राजनीतिक क्षेत्रों के मुताबिक भाजपा के कुछ नेता भी इस क्षेत्रीय पार्टी में शामिल हो सकते हैं। भाजपा भी इसको हल्के में नहीं ले रही और दोनों भागीदार एक दूसरे पर आरोप लगाने से भी संकोच नहीं कर रहे। इसी कारण ए.आई.ए.डी.एम.के. ने भाजपा के साथ अपना गठबंधन समाप्त कर दिया है।
तीसरा, विरोधियों के द्वारा भाजपा को प्रदेश में आर.एस.एस. की पार्टी कह कर प्रचारित किया जाता है, जोकि ब्राह्मणों की संस्था मानी जाती है। तमिलनाडू में सनातन धर्म का विषय काफी विवादित रहा है। वर्षों से प्रदेश के राजनीतिक तंत्र का हिस्सा रही दोनों पार्टियों डी.एम.के. और ए.आई.ए.डी.एम.के. लोगों को यह समझाने में कामयाब रही हैं कि सनातन धर्म को लेकर की गई टिप्पणी हिन्दू धर्म पर की गई टिप्पणी नहीं है। डी.एम.के. का इतिहास ई.वी. रामास्वामी पेरियार द्वारा आत्म-सम्मान के लिए चलाई गई मुहिम का रहा है। 1925 में शुरू हुई इस मुहिम में जाति और धर्म का विरोध करते हुए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ ज़ोर दिया गया। इस मुहिम में यह भी शामिल रहा कि हिन्दी के उभार के साथ तमिलनाडू के संस्कृतिक अस्तित्व को नुकसान हो सकता है।
 भाजपा चाहे उदयनिधि के बयान को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाने की कोशिश में है, लेकिन तमिलनाडू राजनीति की समझ रखने वाली पार्टियां इसकी निंदा करने से संकोच कर रही हैं फिर चाहे वह भाजपा की गठबंधन भागीदार रह चुकी ए.आई.ए.डी.एम.के. हो या फिर कांग्रेस। दक्षिण बनाम उत्तर भारत, हिन्दी थोपने और ऊंची जातियों द्वारा दबाये जाने के मुद्दे हमेशा डी.एम.के. के पक्ष में गये हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि  उदयनिधि के बयान के कारण डी.एम.के. को तमिलनाडू में कोई नुकसान नहीं होगा।
चौथा, तमिलनाडू की राजनीति में जो मुद्दे प्रभावी हैं, वे वहां की सांस्कृतिक और स्थानीय समस्याओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित रहते हैं। फिर चाहे वह नीट मामला हो, राज्य के कट्टू या फिर पानी का मामला हो।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि तमिलनाडू में 2021 में 4 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में शुरुआत करने वाली भाजपा इस समय ‘विपक्षी दल’ के खाली स्थान को भरने की कोशिश में है, लेकिन उक्त चुनौतियों को देखते हुए उसकी कोशिशों को कितना बूर पड़ेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा।
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