यूं करें नन्हे मुन्नों की देखभाल

नवजात शिशुओं की सबसे बड़ी विवशता यह होती है कि वे अपनी किसी भी परेशानी को कहकर व्यक्त नहीं कर पाते, अत: मां को ही अपने विवेक, बुद्धि चातुर्य एवं समझदारी से अपने शिशु की परेशानी को समझना पड़ता है परंतु यदि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो शिशुओं को होने वाली तमाम व्यर्थ की परेशानियों को टाला जा सकता है।
* शिशु जन्म के तुरंत बाद से ही उसे दिए जाने वाले आवश्यक टीके समय-समय पर अवश्य लगवाएं।
* कुछ परिवारों में शिशु जन्म के तुरंत बाद शिशु को शहद चटाने की प्रथा होती है परंतु ऐसा कदापि न करें।
* बच्चे को कभी भी प्यार करने के लिये चूमें नहीं। नवजात शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। चूमने आदि से उन्हें इन्फेक्शन हो सकता है।
* बच्चों की आंखों में काजल कभी न लगाएं। यह एक मिथक ही है कि काजल लगाने से आंखें बड़ी काली अथवा सुन्दर होती हैं या उनकी नेत्र ज्योति बढ़ती है। काजल या सुरमा लगाने से लाभ के बजाय शिशु को हानि ही होती है।
* जब भी शिशु नैपी गीली करे, उसे तुरंत बदलें। गीलेपन से फंगल इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
* डाइपर्स का प्रयोग जब तक बहुत अधिक आवश्यक न हो, नहीं करें। 
* चार माह की उम्र तक शिशु को मां के दूध के अलावा अन्य कोई भी ऊपरी आहार न दें।
*बच्चे को कभी भी बोतल से दूध न पिलाएं। ऊपर का दूध देने के लिए सिर्फ कटोरी चम्मच का ही प्रयोग करें।
* बच्चों के मुंह में जाने वाली सभी चीज़ें जैसे-टीदर, कटोरी, चम्मच, शिशु के हाथ, नाखून आदि की सफाई का विशेष ध्यान रखें। जरा सी भी गंदगी इंफेक्शन फैला सकती है, नतीजन डायरिया होने में देर नहीं लगती। (उर्वशी)

                —ज्योति गुप्ता