सिख रैफरेंस लाइब्रेरी का मामला : शिरोमणि कमेटी को गम्भीर होने की ज़रूरत

दरबार साहिब पर सेना द्वारा किये गये आप्रेशन ब्लू स्टार के दौरान एक बार तो प्रत्येक पक्ष से इतना बड़ा नुक्सान हुआ कि समूचा समाज सन्न होकर रह गया था। धीरे-धीरे समय बीतने के साथ इस नुक्सान का पूरा एहसास होने लगा। इसकी प्रतिक्रियाएं भी सामने आती रहीं। आज तक भी उस समय उठे इस दर्द को महसूस किया जाता रहा है। 35 वर्ष बीत जाने के बाद अब भी जो बात बेहद महसूस करने वाली है वह सिख रैफरेंस लाइब्रेरी का हुआ बड़ा नुक्सान है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अस्तित्व में आने के बाद और आज़ादी मिलने के कुछ समय पूर्व उस समय के सिख इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा शिरोमणि कमेटी को ऐसी लाइब्रेरी बनाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा था, जिसमें हर तरह का पुराना समय के वेग से बचा रहा लिखित इतिहास सम्भाला जाए और उसको राष्ट्र की पूंजी के तौर पर सुरक्षित रखा जाए। इसमें सबसे पहले इसके प्रेरणा स्रोत बाबा प्रेम सिंह होती, डा. गंडा सिंह और प्रो. तेजा सिंह जैसे सिख विद्वान थे, जिनके प्रयासों के कारण इस लाइब्रेरी की स्थापना की गई। बाद में इस उत्तम कार्य में शमशेर सिंह अशोक, स. रणधीर सिंह तथा अन्य प्रसिद्ध सिख विद्वानों ने योगदान डाला। पिछले लिखित खज़ाने को भी सम्भालने का प्रयास किया गया और समय के अनुसार इसमें और भी वृद्धि की जाती रही। इसमें उर्दू और फारसी के विद्वान मुंशी फैज़ल हक ने भी अपना योगदान डाला था। उन्होंने सिख इतिहास से संबंधित फारसी की बहु-मूल्य पुस्तकों के अनुवाद भी करवाए और उर्दू तथा फारसी के साहित्य से संबंधित अन्य भी मसौदों को सुरक्षित किया। इस तरह सभी के प्रयासों से इस रैफरेंस लाइब्रेरी में बहुत सारा पुराना रिकार्ड सम्भाला जा सका। वहां हुक्मनामे, पोथियां और बड़ी संख्या में हस्त लिखित खरड़े भी शामिल थे। इस बात का भी खास ध्यान रखा गया था कि इसकी भरपूर और बहु-मूल्य सामग्री बाहर न जा सके, परन्तु 1984 के दरबार साहिब पर किये गये सैन्य हमले से एक बार तो सब कुछ तहस-नहस हो गया, जिसकी चपेट में सिख रैफरेंस लाइब्रेरी भी आ गई। पहले पहल तो यह भी प्रभाव दिया गया कि आग लगने के कारण यह दुर्लभ खज़ाना पूरी तरह नष्ट हो गया है, परन्तु बाद में विस्तार सामने आने पर यह भी पता चलता रहा कि सेना द्वारा दरबार साहिब का बहुत सारा सामान उठा लिया गया था, जिसमें सिख रैफरेंस लाइब्रेरी का लिखित खज़ाना भी शामिल था। बाद में यह बात भी सामने आई कि सेना ने यह सामान जांच-पड़ताल के लिए सी.बी.आई. को दे दिया था। उसके बाद सी.बी.आई. ने कुछ किश्तों में यह सामान लाइब्रेरी की लिखितों और पुस्तकों सहित वापिस भी किया था और इस संबंध में लिखा-पढ़ी भी की गई थी। परन्तु अब जब एक बार फिर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने गृह मंत्री अमित शाह को मिल कर लिखितों सहित बचे रहे सामान को वापिस देने की बात की है, तो इस मामले ने एक बार पुन: तूल पकड़ लिया प्रतीत होता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मुख्य सचिव डा. रूप सिंह और कमेटी के पिछले अधिकारियों ने विस्तृत बातचीत के बाद यह स्पष्ट किया है कि सेना द्वारा अब तक सात बार सामान वापिस किया गया, जिसमें लाइब्रेरी का सामान भी शामिल है। इसके अनुसार सेना द्वारा 205 हस्त लिखित स्वरूप, 807 पुस्तकें, एक हुक्मनामे सहित कुछ अखबार शामिल हैं। पिछले रिकार्ड के अनुसार इनमें 307 हस्त लिखित स्वरूप अब तक कमेटी को वापिस नहीं मिले। इस संबंध में गत साढ़े तीन दशकों से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी केन्द्र सरकार के साथ पत्राचार भी करती रही है। उसने दरबार साहिब पर हमले के नुक्सान की पूर्ति के लिए एक हज़ार करोड़ रुपए का मुकद्दमा भी दायर किया हुआ है, परन्तु पुराने हस्त लिखित ऐतिहासिक खज़ाने के संबंध में आज तक पूरी तरह असमंजस ही पैदा हुआ नज़र आता है। हम महसूस करते हैं कि इसके बारे में जिस सीमा तक तत्कालीन कमेटी के अधिकारियों को पूरी निष्ठा से हर पक्ष से पहुंच करनी चाहिए थी, उसके बारे में उनके द्वारा बड़ी ढील दिखाई जाती रही है। अब शिरोमणि कमेटी द्वारा इस संबंध में एक उच्च स्तरीय कमेटी बना कर इस समूचे घटनाक्रम की विस्तृत और गम्भीर जानकारी लेने और छिन चुके इस बहु-मूल्य खज़ाने को वापिस करवाने के लिए गम्भीरता से हर हथकंडा अपनाने की ज़रूरत होगी। इस समय एक बार फिर यह भी सोचने की ज़रूरत है कि यह समूचा दुखद घटनाक्रम कैसे हुआ और इसके लिए कौन-कौन ज़िम्मेदार ठहराये जा सकते हैं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द