ज़रूरत

कल रात से सोनू की आंटी की तबियत खराब थी। सुबह उठीं तो वह तेज़ बुखार से तप रहीं थी शायद बदलते मौसम की वजह से उन्हें संक्रमन हो गया था। मम्मी पापा आंटी को लेकर अस्पताल चेकअप कराने ले गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी लिहाजा मम्मी पापा ने उसी वक्त उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना मुनासिब समझा। डाक्टर ने पर्चे पर दवाई लिख दी और वार्ड बॉय को ड्रिप लगाने का आदेश देकर बाहर निकल गया। मम्मी पापा वही आंटी के साथ अस्पताल में रुक गए। सोनू घर पर अकेला था, सोनू को अपनी आंटी से बहुत लगाव था काफी देर तक मम्मी पापा के लौटने का इंतजार करने के बाद जब वो नहीं आये तो उसने खुद पापा से अस्पताल का पता पूछ अस्पताल आने की इच्छा जताई। चूंकि पापा को अपने ऑफिस भी जाना था इसलिए उन्होंने सोनू को खा कि वह मम्मी और आंटी के साथ अस्पताल में रहे और जब वह अस्पताल पहुंच जाएगा तो पापा ऑफिस के लिए तैयार होने घर आ जायेंगे। सोनू तो यही चाहता था क्योंकि उसका अपनी प्यारी आंटी से मिलने का बहुत मन था। सोनू ने जल्दी से अपनी एक्टिवा उठायी और अस्पताल के लिए निकल गया। जैसे ही वह लिफट से उतर आंटी के वार्ड के लिए चला एक नर्से तेजी से उसकी ओर आई और बोली ‘आपके पिताजी की हालत बहुत नाजुक है, आइये मेरे साथ वो बस आपको याद कर रहे हैं। सोनू नर्स के पीछे-पीछे चल दिया। उस वार्ड में एक पचास वर्षीय व्यक्ति जिसकी आंखों के नीचे काले धब्बे बने हुए थे और चेहरे से लग रहा था जैसे कि कितना दर्द उसे सहन करना पढ़ रहा है। नर्स ने उस आदमी को आवाज़ लागते हुए कहा-‘मेहरा जी आपका बेटा आपसे मिलने आया है मेहरा जी इतने कमजोर और पीड़ित थे कि वह अपनी आंख तक नहीं खोल पा रहे थे मगर उनकी आंखों से कुछ बूंद आंसू की ढलक रही थीं। सोनू ने उनके हाथ पर अपना हाथ रख दिया, और उन्हें सहलाने लगा।
बूढ़े मेहरा जी धीमे-धीमे बुदबुदा रहे थे-‘अब मुझे वहां मत छोड़के जाना। मुझे तुम्हारी याद आती है!’
...नहीं अब मैं कभी आपको नहीं छोडूंगा हमेशा आपके साथ रहूंगा। बूढ़े मेहरा जी। मेरा अकेले मन नहीं लगता, मेरे साथ रहना’
‘हम हमेशा साथ रहेंगे।’
मेहरा जी मैं तुम और तुम्हारी मां। बूढ़े चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान खिंच गयी। सोनू-आप जल्दी ठीक हो जायेंगे, हम सब साथ ही रहेंगे।
नर्से इतने में दूसरा इंजेक्शन देने आई उसकी आंखें पिता पुत्र के संवाद सुन भर आयीं। सोनू करीब तीन घंटे तक उस बूढ़े मेहरा जी के पास बैठा उनका हाथ सहलाता तो कभी उनसे बात करता।
इतने में मेहराजी को जोर से कंपकंपी आई, सोनू ने नर्से और डॉक्टर को आवाज लगाई तो उन्होंने मेहराजी की ऑक्सीजन हटाते हुए कहा-माफ कीजिये हम आपके पिताजी को नहीं बचा सके।
सोनू ने नर्से से पूछा-यह अंकल कौन थे? 
नर्स-हैरानी से ‘क्या यह आपके पिता नहीं थे? सोनू ने इनकार में सर हिलाया। 
नर्से-माफ कीजियेगा, मैं बिना आपकी बात सुने आपको जबरदस्ती इनके पास ले गयी, दरअसल मेहरा जी की हालत नाजुक थी और वो बस अपने बेटे को याद किये जा रहे थे।
इतने में सोनू के पापा परेशान से उसे ढूंढ़ते हुए जनरल वार्ड की तरफ आये, वहां सोनू को देख उन्होंने राहत की सांस ली और फिर उसे डांटते हुए बोले-सोनू, तुम यहां क्या कर रहे हो? वहां बुआ की दवाइयों के लिए पैसे और मुझे ऑफिस जाने के लिए तुम्हारी ज़रूरत थी और तुम पिछले तीन घंटे से यहां वहां भटक रहे हो। ज़रूरत के समय तुम हमेशा नदारद रहते हो।
सोनू सूनी आंखों से बुदबुदा रहा था-‘उन्हें मेरी ज्यादा ज़रूरत थी पापा।’ (सुमन सागर)

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