भारत-पाकिस्तान संबंध - रणनीति बदलने की ज़रूरत
भारत और पाकिस्तान के ब्रिगेड कमांडर स्तर के अधिकारियों की एक बैठक जम्मू-कश्मीर के पुंछ ज़िले के चक्कां का ब़ाग सीमांत गलियारा पर हुई, जिसमें 2021 में लिए गए फैसले की रौशनी में सीमा पर दोनों तरफ अमन और सद्भावना बनाए रखने के संबंध में सहमति व्यक्त की गई। 2021 में हुए इस समझौते के बाद जम्मू-कश्मीर में सीमा के आर-पार काफी सीमा तक अमन-शांति बनी रही है, चाहे समय-समय पर पाकिस्तान की ओर से युद्ध-विराम संबंधी हुए इस समझौते का उल्लंघन भी होता रहा है।
ताज़ा बैठक इस कारण करनी पड़ी, क्योंकि जम्मू क्षेत्र के अखनूर सैक्टर में 11 फरवरी को संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा बिछाई गई एक सुरंग में हुए विस्फोट के कारण भारतीय सेना के एक कैप्टन सहित 2 सैनिक शहीद हो गए थे और एक अन्य सैनिक घायल हो गया था। राजौरी और पुंछ ज़िलों में 10 व 14 फरवरी को नियन्त्रण रेखा के आर-पार छोटे हथियारों से भारतीय और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के मध्य गोलीबारी की हुई दो घटनाओं में भारत के 2 सैनिक घायल हो गए थे। विगत सप्ताह भी पुंछ क्षेत्र में बारूदी सुरंग में हुए एक विस्फोट में भारत के दो और सैनिक घायल हो गए थे। इसके बाद भारत की ओर से भी जवाबी कार्रवाई की गई, जिसमें पाकिस्तान के भी सैनिकों के भारी जानी नुक्सान होने के समाचार प्राप्त हुए थे।
उपरोक्त घटनाओं के सन्दर्भ में हमारा यह विचार है कि दोनों देशों को जम्मू-कश्मीर और अन्य सीमांत क्षेत्रों में सीमाओं पर अमन और सद्भावना बनाए रखनी चाहिए। विशेष रूप से पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों द्वारा अलग-अलग आतंकवादी संगठनों के साथ मिलीभुगत करके जम्मू-कश्मीर में जो अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ा जा रहा है, उसे अब पूरी तरह बंद करने की ज़रूरत है। पाकिस्तान ने विगत लम्बी अवधि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष युद्ध भारत के विरुद्ध छेड़े रखा है। पाकिस्तान और भारत के मध्य 1965 और 1971 में दो बड़े युद्ध हुए और 1999 में कारगिल युद्ध भी हुआ परन्तु इनसे केवल जानी और आर्थिक नुक्सान उठाने से पाकिस्तान को कुछ भी हासिल नहीं हुआ और न ही आगामी समय में कुछ हासिल होने की सम्भावना है। इस समय भी पाकिस्तान की ओर से व्यापक स्तर पर पंजाब में ड्रोनों द्वारा हथियार और नशीले पदार्थ फैंके जा रहे हैं, जिसमें पाकिस्तान के उद्देश्यों के प्रति भारतीय लोगों में अविश्वास बढ़ता जा रहा है, जबकि भारत और पाकिस्तान के करोड़ों लोग यह चाहते हैं कि दोनों देशों की सरकारें, विशेष रूप से पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी भारत के साथ द्विपक्षीय मामले बातचीत से सुलझाने के लिए अपनी सरकार को भारत के साथ वार्ता शुरू करने की छूट दें। पाकिस्तान में बनीं कई सरकारें भारत के साथ बातचीत करके द्विपक्षीय मामले हल करना चाहती थीं, परन्तु सैन्य अधिकारियों ने बार-बार उनका रास्ता रोका है।
दोनों देशों के लोगों की यह भी मांग है कि अटारी और वाघा सीमाओं को व्यापार और जन-साधारण के आवागमन के लिए खोला जाए। इससे भारत और पाकिस्तान दोनों को ही व्यापारिक रूप से बड़ा लाभ हो सकता है। भारत का केन्द्रीय एशिया के साथ और पाकिस्तान का दक्षिणी एशिया के साथ व्यापार भी खुल सकता है। दोनों देशों के करोड़ों लोगों की रोटी-रोज़ी चल सकती है। दोनों देशों में ज़रूरी वस्तुओं की महंगाई घट सकती है। 20वीं सदी दोनों देशों ने टकराव और तनाव में गुज़ारी है और अब 21वीं सदी का भी चौथा हिस्सा व्यतीत हो चुका है। दोनों देशों का अब तक का इतिहास विकास की सम्भावनाओं को गंवाने और अपने लोगों को टकराव से गरीबी में धकेले रखने का ही बना रहा है। दोनों देशों को अपनी इस रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए एक दूसरे के साथ फिर से अमन के साथ बातचीत करके आपसी मामले सुलझाने चाहिएं और अपने-अपने लोगों को सुरक्षित और बेहतर जीवन देने के लिए खुले मन से आगे बढ़ना चाहिए।
उम्मीद करते हैं कि जिस तरह दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने 2021 के फैसले अनुसार सीमाओं पर अमन बनाए रखने संबंधी सहमति की अभिव्यक्ति की है, आगामी समय में दोनों देशों की सरकारें भी इस दिशा में और भी अहम फैसले लेने में समर्थ होंगी।