क्या भारत का उपहास कर रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प और मस्क ?

इधर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक इस बात पर लहालोट हो रहे है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मोदी को महान नेता व अपना दोस्त बताया और उनके लिए कुर्सी सीधी की, लेकिन दूसरी ओर ट्रम्प ने अवैध भारतीय प्रवासियों को बेहद अपमानजनक तरीके से भारत वापिस भेजने का सिलसिला जारी रखा हुआ है और उसका वीडियो शेयर करके मज़ाक बना रहे हैं। सवाल है कि अमरीकी राष्ट्रपति क्यों भारत का अपमान करके और उसे उदाहरण बना कर पूरी दुनिया को दिखाना चाहते हैं? अगर ऐसा नहीं होता तो सीधे व्हाइट हाउस से प्रवासी भारतीयों के वीडियो नहीं जारी होते। पहला वीडियो जारी होने पर जब भारत में इसकी आलोचना हुई तो विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने इस बारे में अमरीका से बात की है और अब ऐसा नहीं होगा। लेकिन उसके बाद दो विमान और आए, जिनमें कुछ नहीं बदला। अब 41 सेकेंड का एक वीडियो व्हाइट हाउस ने जारी किया है, जिसमें भारत सहित दूसरे कई देशों के प्रवासी हथकड़ी और बेड़ी में दिख रहे हैं। इस वीडियो में राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके करीबी सहयोगी इलॉन मस्क हंसते हुए दिख रहे हैं और मस्क कह रहा है कि मज़ा आ गया। वही मस्क जो अपनी 21 लाख की कार 36 लाख में बेचने भारत में आ रहा है। गौरतलब यह भी है कि रूस और चीन के तीन-तीन लाख अवैध प्रवासी अमेरिका में हैं, लेकिन उन्हें उस तरह से नहीं निकाला जा रहा है, जैसे भारतीयों को निकाला जा रहा है।
गौरव गोगोई से घबरा रहे हैं हिमंता 
आतंकी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) से अपनी राजनीति की शुरुआत करने के बाद लम्बे समय तक कांग्रेस में रहे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को भाजपा में जाने के बाद सांप्रदायिक नफरत और विभाजनकारी राजनीति के अलावा कुछ समझ में नहीं आ रहा है। चार महीने पहले झारखंड में इसी राजनीति में बुरी तरह से पिटने के बावजूद वे अपने राज्य असम में इसी राजनीति के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि असम में अगले साल मई में चुनाव है। उससे पहले उन्होंने कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई को उनकी ब्रिटिश पत्नी एलिजाबेथ के बहाने निशाना बनाया है। करीब 9 साल तक सरकार में रहने के बाद अब हिमंता बिस्वा सरमा को यह मुद्दा मिला है। इससे पहले करीब 11 साल की केंद्र सरकार और 9 साल की राज्य सरकार ने यह मुद्दा नहीं उठाया। अब उन्होंने कहना शुरू किया है कि गौरव गोगोई की पत्नी का संबंध पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी से पहले बतौर ब्रिटिश नागरिक उन्होंने पाकिस्तान में जलवायु परिवर्तन से जुड़े कुछ काम किए थे और उस दौरान वह जिस पाकिस्तानी व्यक्ति के साथ काम करती थीं, उसका नाम अली तौकिर शेख है। असम पुलिस ने उसके खिलाफ यूएपीए के तहत मुकद्दमा दर्ज किया है। ऐसा लग रहा है कि हिमंत बिस्वा सरमा को अगले चुनाव में गौरव गोगोई से बड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। इसलिए वह घबराहट में इस तरह के कदम उठा रहे हैं। गौरव गोगोई पहले कोलियाबोर सीट से सांसद थे। यह मुस्लिम बहुल सीट थी, लेकिन बाद में परिसीमन के ज़रिए सीट की संरचना बदल दी गई है। इसलिए इस बार गौरव गोगोई हिंदू बहुल जोरहाट सीट से चुनाव लड़े। इस सीट पर गौरव गोगोई 54 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर जीते। इसी नतीजे ने हिमंत बिस्वा सरमा की चिंता बढ़ाई है। 
कहां गया भाजपा का अनुशासन?
कैडर आधारित पार्टियां अपेक्षाकृत ज्यादा अनुशासित मानी जाती हैं। हालांकि भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी या नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह की भाजपा के समय नेताओं को अपनी पसंद से बयान देने और कुछ फैसले करने की आज़ादी थी, परन्तु नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा में 100 फीसदी अनुशासन सुनिश्चित किया गया है। सबको वही कहना और करना पड़ता है, जो ऊपर से कहा जाता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर एकदम नीचे पंचायत स्तर तक सब कुछ एक तरीके से होता है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से पार्टी में अनुशासन भंग की खबरें लगातार आ रही हैं। राजस्थान और हरियाणा से लेकर कर्नाटक और मणिपुर तक नेता मनमाने बयान दे रहे हैं और मनमाने तरीके से काम भी कर रहे हैं, जिसका पार्टी को राजनीतिक नुकसान भी हो रहा है। बताया जा रहा है कि कर्नाटक में पार्टी के अंदर जो घमासान मचा है उसमे कही न कही पार्टी के संगठन महामंत्री की भूमिका है। पता नहीं उनकी कितनी भूमिका है लेकिन यह तो तय है कि पार्टी के आधा दर्जन मजबूत नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। खुलेआम उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे ही हरियाणा में वरिष्ठ नेता अनिल विज ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के खिलाफ और राजस्थान में वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने राज्य में अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मणिपुर के नेताओं ने तो दिल्ली दरबार में भागदौड़ करके मुख्यमंत्री का इस्तीफा भी करा दिया है। 
उत्तराधिकारियों की समस्या
भारत की महिला नेताओं ने जब भी मौका मिला, अपने अपने हिसाब से शासन किया, लेकिन एक समस्या सबके साथ रही। किसी ने अपने जीवनकाल में अपना उत्तराधिकारी तय नहीं किया। इंदिरा गांधी अपवाद है, जिन्होंने पहले संजय गांधी और उनके निधन के बाद राजीव गांधी को राजनीति में उतार कर उत्तराधिकार का संकेत दे दिया था, परन्तु उसके बाद कम से कम कोई प्रादेशिक महिला नेता अपना उत्तराधिकारी नहीं तय कर पाई और किया भी तो वह चल नहीं पाया। जैसे जयललिता के लिए माना जाता था कि उनकी सहेली वी.के. शशिकला उनकी जगह लेंगी या शशिकला के भतीजे टी.टी.वी. दिनाकरण उनके उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन जब वह जेल गईं तो पहली बार ओ. पनीरसेल्वम को और दूसरी बार में ई. पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया। अब स्थिति यह है कि पनीरसेल्वम, पलानीस्वामी और दिनाकरण तीनों आपस में लड़ रहे हैं। 
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया, लेकिन पहली बार यह हुआ कि किसी को उत्तराधिकारी पद से हटाया गया। मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी पद से हटाया और फिर बाद में बहाल किया। अब उन्होंने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया है। उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तय नहीं कर पा रही है कि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को कब सत्ता सौंपनी है। वह उनके उत्तराधिकारी हैं लेकिन ममता को हमेशा उनकी लगाम खींच कर रखनी होती है और वह बीच-बीच में उन्हें भी झटका देती रहती हैं।

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