धुप्प दी महफिल’ तथा बेटियों की बात
नवयुग दिल्ली वाले भापा प्रीतम सिंह को इस दुनिया से गए 12-15 वर्ष हो गए हैं, परन्तु उनकी याद में मेले लगातार जारी हैं। मेल-मिलाप के स्थान तथा तिथियां भी निश्चित हैं। प्रत्येक वर्ष सितम्बर/अक्तूबर के किसी दिन उनके द्वारा स्थापित किए गए पंजाबी भवन दिल्ली में यादगारी भाषण होता है और वर्ष के शुरू होते फरवरी के पहले सप्ताह दिल्ली मुं कुतुब की लाठ के निकट उनके फार्म में साहित्य संसार के मित्रों का मेला भी लगता है, दोनों स्थानों पर गीत, संगीत तथा बातों के अतिरिक्त सुबह के 11 बजे से शाम के 3 बजे तक विचार-विमर्श एवं खान-पान भी चलता है। भापा जी के मन में इस मेल-मिलाप की भावना की शुरुआत वर्ष 47 के देश विभाजन से हुई प्रतीत होती है, जब उन्हें प्रीत नगर छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा था और तत्कालीन उपायुक्त एम.एस. रंधावा के चांदनी चौक की प्लीयर गार्डन मार्किट में उन्होंने छापेखाने के लिए जगह अलाट कर दी थी। यह स्थान रेलवे स्टेशन तथा बस अड्डे के इनता निकट था कि दिल्ली आने वाले लेखक एवं पाठक अपने ठिकाने पर पहुंचने से पहले यहीं हाज़िरी लगवाते थे। यहां उन्हें गर्मा-गर्म चाय तथा पकौड़े भी मिल जाते थे और दूर-निकट से दिल्ली पहुंचने वाला कोई न कोई साहित्य रसिया भी मिल जाता था। ऐसी भावना के कारण बलवंत गार्गी ने भापा जी को उनके रेखा चित्र में तकिये का पीर लिखा था।
तकिये के इस पीर ने चांदनी चौक वाला ठिकाना छोड़ने से पहले 1990 में कुतुब की लाठ के निकट एक फूलों-पौधों वाला फार्म स्थापित कर लिया था, जहां उस समय से ही वर्ष के शुरू वाला वह मेला लगता है जिसे उनकी लेखिका मित्र अजीत कौर ने ‘धुप्प दी महफिल’ का नाम दिया था। 1990 से प्रत्येक वर्ष साहित्य-संस्कृति को समर्पित मित्र-प्यारे सर्दियों की ठंड को अलविदा कह कर यहां आते हैं।
वर्ष 2025 की यह महफिल 16 फरवरी को थोड़ी देर से होने के कारण इस बार की धूप में गर्माहट भी अधिक थी, आपसी मेल-मिलाप भी, जिसे इस मेले की अध्यक्षता कर रहे रघबीर सिंह सिरजना के शब्दों ने और भी उत्तम बना दिया था। इस गर्माहट का कारण भी विशेष ज़िक्र मांगता है। इसलिए कि जिस तरह से रघबीर सिंह चंडीगढ़ से नहीं, अपितु कनाडा से यहां पहुंचे थे। वह कई माह कनाडा रह कर इंडिया लौटे थे। यह बात भी किसी से छिपी नहीं कि रघबीर सिंह की बेटी रचना सिंह कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की विधायक भी रह चुकी हैं और वहां की कैबिनेट में एजुकेशन एंड चाइल्ड वैल्फेयर मंत्री भी। श्रोता यह भी जानते थे कि रघबीर सिंह की दूसरी बेटी सिरजना सिंह का अमरीका के ह्यूस्टन क्षेत्र में प्रभाव है। उन दोनों की बात हुई तो महफिल में उपस्थित अजीत कौर की बेटी अर्पना का ज़िक्र भी होना ही था, जिन्होंने चित्र कला संसार में अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धि हासिल की है। बेटियों की बात हुई तो महफिल में उपस्थित तारा सिंह कामल की बेटियों का ज़िक्र भी हुआ जिनका भाई नहीं। महफिल की सिरताज रेणुका सिंह को तो आज सभी हाज़रीन जानते है थे, जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहने के बाद पंजाबी साहित्य सभा, नई दिल्ली की चेयर पर्सन होने के आतिरिक्त नई दिल्ली की बोद्धी संस्था से भी जुड़ी हुई हैं।
धुप्प दी महफिल में पजाबी साहित्य कला संसार की चार प्रसिद्ध शख्सियतों को सम्मानित भी किया गया, जिनमें से तीन भारतवासी हैं और एक कनाडा निवासी हो चुका कवि अजमेर रोडे। भारतवासियों में उपन्यासकार बलदेव सिंह सड़कनामा, पत्रकार एवं नावल नवीस बलबीर परवाना तथा फिल्ली दुनिया वाला गुरविन्दर सिंह शामिल हैं।
इस बार की बैठक का श्रेय नव-प्रकाशित पुस्तकों के लोकार्पण को मिला जब लोकार्पित हुई दर्जन पुस्तकों में से एक पुस्तक सिखी धारणा को समर्पित सिख महिलाओं के योगदान को उजागर करने वाली सामने आई। इस पुस्तक की लेखिका परमजीत कौर सरहिंद है। बेटियों की बात में गुलबदन बेगम का नाम भी आया जिन्होंने अपने भाई एवं मुगल बादशाह हमायूं का जीवन-परिचय ‘हमायूंनामा’ लिखा था। इसे पंजाबी पाठकों के लिए तैयार करने वाली भी महिला है। स्वर्णजीत कौर सम्मी। इस महफिल में लोकार्पित हुईं अन्य पुस्तकों में धर्म सिंह कम्मेआना की ‘कोसा पानी’, नच्छतर की ‘मुहाज’, बूटा सिंह चौहान की ‘मेरे तीन नावल’, डा. नरेश की ‘बोल मिट्टी दिया बाविया’ तथा मोनिका देवी रचित ‘अपनी होंद दी भाल विच्च सिमरन’ भी थीं। और पूछते हो तो अमरीक सिंह दीप रचित ‘विष कन्या’ (जिसका अनुवाद केसरा राम ने किया है) तथा आवी योरिश की ‘नवें तों नवें हल्ल’ भी लोकार्पित हुईं।
इन पुस्तकों में चंद्र मोहन की अनुवाद की गई ‘लिखतम सुखबीर’ तथा कुलवंत कौर नारंग रचित ‘उडीक अटक गई है’ (काव्य संग्रह) तथा ‘दस्तावेज़’ (वार्तक ) भी शामिल हैं और नासिरा शर्मा की साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता ‘चन्न तारियां दी शतरंज’ (अनुवादक मनजीत सिंह) भी शामिल थीं तथा के.एल. गर्ग रचित ‘चन्न दा उचड़िया चेहरा’ सहित निरवैर सिंह का ‘ब्रह्म सूत्र ब्रह्म विचार’ भी। रणजीत कौर की ‘ज़िन्दगी’ तथा वरियाम मस्त की ‘आई मैट ब्यूटीफुल गर्ल्स’ सहित। ‘मार्फत दिल्ली’ के माध्यम से कृष्णा सोबती की पेश की गईं 1947 की अविस्मरणीय यादें भी पाठकों का मन मोह लेने वाली हैं। धुप्प दी महफिल में लोकार्पित हुईं इन पुस्तकों की विलक्षणता एवं संख्या बिजलई मीडिया से मुकाबला करने वाली थी, जिसमें भीषण साहनी की ‘अज्ज ते अतीत’ (अनुवादक जसविन्दर कौर वीनू) ही नहीं रूप सिंह की ‘जेब विचला ब्रह्मंड’ भी शामिल थीं। मित्रों की आमद तथा शुरुआती भाषण में बेटियों के मान-सम्मान के अतिरिक्त नव-प्रकाशित पुस्तकों के लोकार्पण ने इसे सचमुच ही यादगारी बना दिया। धुप्प दी महफिल सदा लगती रहे। लगाने वाले का विशेष धन्यावाद।
कृषि विश्वविद्यालय में सुरजीत पातर चेयर की स्थापना
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना ने सुरजीत पातर चेयर स्थापित करके बिछुड़ी हुई आत्मा का सम्मान बढ़ाने के अतिरिक्त पंजाबी साहित्य एवं संस्कृति को भी सम्मानित किया है। मेरे लिए तो यह बात भी खुशी की है कि इस चेयर की प्रथम चेयरपर्सन का सम्मान विश्वविद्यालय के उस संचार केन्द्र की प्रमुख (जगदीश कौर) को दिया गया है, जिसका कभी मैं भी प्रमुख रहा और मुझ से बड़ा कहानीकार कुलवंत सिंह विर्क भी। सुरजीत पातर तो थे ही इस शहर के। विश्वविद्यालय के उपकुलपति सतिबीर सिंह गोसल इस पहलकदमी के लिए विशेष प्रशंसा के हकदार हैं।