सबको पता है हकीकत, फिर यूएस एड पर क्यूं बरपा है हंगामा ?

अमरीका के राष्ट्रपति बनते ही डोनल्ड ट्रम्प ने अपने बयानों और फैसलों से जिस तरह से पूरी दुनिया में भूचाल ला दिया है, अब उस भूचाल की एक लहर भारत को भी अपनी चपेट में ले चुकी है। गत 15 फरवरी, 2025 को डोनल्ड ट्रम्प के सहयोगी एलोन मस्क ने अपने नेतृत्व वाले, ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी’ (डीओजीई) के तहत भारत की दी जाने वाली 182 करोड़ रुपये की फंडिंग रद्द कर दी, लेकिन भारत में हंगामे की वजह यह रोकी गई 182 करोड़ रुपये की फंडिंग नहीं बल्कि इसका ‘खुलासा’ रहा, क्योंकि 19 फरवरी 2025 को अपने ही अंदाज़ से  हमला करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘हम भारत को 182 करोड़ रुपये क्यों दे रहे हैं?’ 
इस खबर के फ्लैश होते ही भाजपा के कई प्रवक्ता और विपक्ष विशेषकर राहुल गांधी पर बरस पड़े। भाजपा के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने प्रेस कॉन्फ्रैंस में कहा कि यह पैसे कांग्रेस और राहुल गांधी को मिले, जो भारत के दुश्मनों के साथ हैं। गौरव भाटिया के मुताबिक, ‘राहुल देश को कमज़ोर करना चाहते हैं, उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर भी किए हैं और अमरीकी अरबपति जार्ज सोरोस के साथ भी उनका नाम जुड़ा है।’ जबकि भाजपा के झारखंड से सांसद निशिकांत दुबे ने तो यहां तक कह दिया  कि देश में जितने भी भारत विरोधी आंदोलन हाल के सालों में हुए हैं, चाहे वह अग्निवीर भर्ती विरोध रहा हो, चाहे देश में  जातीय जनगणना की मांग रही हो या नक्सलाइट मूवमेंट, सबके पीछे यूएस एड का हाथ है।
लेकिन चाहे भाजपा के नेताओं की बात हो या कांग्रेस के नेताओं की बात लगता है वे सब इस भ्रम में हैं कि यूएस एड की सच्चाई उनके अलावा कोई नहीं जानता और यह भी कि वे लोग अपनी आक्रामकता से इस मामले में जो चाहेंगे, जनता को समझा देंगे, परन्तु हकीकत यह नहीं है। हकीकत यह है कि भारत में यूएस एड आज से नहीं 1961 से आ रही है, जब अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कनेडी द्वारा शीतयुद्ध के दौरान यूएस एजेंसी फार डिवेल्पमेंट या यूएस एड की स्थापना की थी ताकि उस समय सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके। चाहे केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, यूएस एड से आने वाले डॉलर किसी ने नहीं ठुकराये। भारत सरकार चाहे तो बकायदा इस पर श्वेतपत्र निकाल सकती है और संसद में जेपीसी गठित करके दूध का दूध और पानी का पानी भी कर सकती है कि कब-कब, किस-किस संगठन, मंत्रालय या एनजीओ को यूएस एड के ज़रिये सहायता मिली है?
सच बात तो यह है कि 2000 के बाद से अब तक हिंदुस्तान को यूएस एड से 3 बिलियन डॉलर की फंडिंग हो चुकी है। 6 मिलियन डॉलर तो कोरोना महामारी से निपटने और उसके बाद के प्रभाव से लड़ने के लिए ही भारत सरकार को मिल चुके हैं और अभी 2023 में ही भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमरीका में यूएस एड की प्रमुख सामंथा पावर के बीच मुलाकात इस एड के सिलसिले में ही हुई थी। तो डोनल्ड ट्रम्प भले इसे भारत में ‘मतदान बढ़ाने के नाम पर’ रिश्वतखोरी की मदद करार दे रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि जब से अमरीका ने यूएस एड की फंडिंग करनी शुरु की है, तब से अब तक भारत को करीब 14 बिलियन डालर की मदद मिल चुकी है।
जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर इस एड को लेकर हमलावर हैं, उससे लगता है कि जैसे इसकी हकीकत को जानने और साफ साफ पता करने का कोई जरिया ही न हो सालों में आ रही यह ऐड कब और किसे मिलती रही है और उससे क्या होता रहा है? वास्तव इसे जानना बहुत आसान है। भारत में जो भी पैसा विदेश से आता है, चाहे वह किसी भी रास्ते से आता हो, अगर वह आये हुए पैसे के रूप में दर्ज होता है, तो उसका बकायदा चिन्हित रूट होता है और एक एक बात स्पष्ट होती है कि वह कहां से आया, किसको मिला और किस काम के लिए मिला। फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) की बकायदा निगरानी होती है यानी यूएस एड, जो आमतौर पर देश की किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया मसलन मीडिया स्वतंत्रता या चुनावी पारदर्शिता संबंधी उद्देश्यों के लिए भेजी जाती है तो वह किसी एनजीओ के ज़रिये, किसी थिंक टैंक्स या प्रोजेक्ट के एकाउंट में आती है और इसका यह आना बकायदा सरकार की जानकारी में होता है। चाहे अमरीकी थिंक टैंक्स या गैर-सरकारी संस्थानाओं (एनजीओ) के माध्यम से ही ऐसी कोई राशि भारत क्यों न आती हो। ये सभी संस्थाएं बकायदा रजिस्टर्ड होती हैं। कई बार ऐसी सहायता राशियां संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और दूसरी एजेंसियों के माध्यम से भी आती हैं। इन सबका बकायदा रिकॉर्ड होता है। भारत में काम कर रहे किसी भी गैर-सरकारी संगठन, मीडिया संगठन या चुनाव से जुड़े विभिन्न प्रोजेक्टों को दी गई यह धनराशि बकायदा साक्ष्य और नियमों के साथ आती है और इसलिए इस समय देश में अमरीका से मिले 21 मिलियन डॉलर को लेकर जो हंगामा है, वह बिल्कुल गैर-जरूरी और उन लोगों को भरमाने के लिए है जो नहीं जानते कि यह सब सहायता कैसे आती है।
अगर भाजपा के प्रवक्ता और सांसद आश्चर्य भरे आरोप लगा रहे हैं कि कहीं ये इन मकसदों के लिए तो नहीं आयी?, उन्हें ऐसे अनुमान लगाने की ज़रूरत नहीं है। वह सरकार से कहें और सरकार एक-एक तथ्य उजागर कर सकती है कि यूएस एड कब-कब, किस-किस वजह से आयी और किस किस संगठन, संस्थान, एनजीओ, थिंक टैंक्स या प्रोजेक्ट्स के खाते में गयी। इसे जानना ज़रा भी जटिल नहीं है। भारत सरकार देश में किसी भी संस्था, संगठन या संस्थान द्वारा ली गई विदेशी फंडिंग की पूरी जानकारी रखती है, क्योंकि उसे यह सहायता तब तक नहीं मिलेगी, जब तक उसके पास सरकार द्वारा उपलब्ध कराया गया एफसीआरए लाइसेंस न हो। इस लाइसेंस की शर्त ही यह होती है कि इन्हें मिली हर सहायता राशि को न सिर्फ रिपोर्ट करना पड़ता है बल्कि यह भी बताना पड़ता है कि उसे कहां और कितना खर्च किया गया। बकायदा इसकी क्रॉस जांच-पड़ताल भी होती है। यही नहीं भारत सरकार इस डेटा को गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से अपडेट भी करती है। ..तो फिर ऐसा आश्चर्य में डूबा माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि अरे, हमें तो यह पता ही नहीं था और इस रकम के ज़रिये उस पार्टी या संगठन अथवा संस्थान ने तो ये समस्याएं खड़ी कर दीं। यह हंगामा तो लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए किया जा रहा है कि हम तो पाक-साफ हैं, शक की सुई सामने वाले पर है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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