अब यूक्रेन की हालत ‘आगे कुआं, पीछे खाई ’ वाली
एक देश को कभी भी किसी दूसरे देश के भरोसे युद्ध नहीं लड़ना चाहिए। यह बात रूस-यूक्रेन युद्ध ने एक बार फिर साबित कर दी है। अमरीका पर भरोसा करते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ैलेंस्की ने अपने देश को ऐसे अंधे कुएं में धकेल दिया है जहां से यूक्रेन कभी भी बाहर नहीं निकल पायेगा। डोनाल्ड ट्रम्प न केवल यूक्रेन से अब तक की गई अमरीकी मदद की कीमत मांग रहे हैं, बल्कि आगे मदद करने की बड़ी कीमत वसूलने का इशारा भी कर रहे हैं। देखा जाए तो ज़ैलेंस्की ने नाटो में शामिल होने के जिद्द में आकर अपने देश को रूस जैसी बड़ी ताकत के खिलाफ युद्ध में धकेल दिया। अब यह बात कोई और नहीं बल्कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी कह रहे हैं। उनका कहना है कि यूक्रेन ने अपने युद्ध के लिए यूरोप और अमरीका का इस्तेमाल किया है। जिस नाटो में शामिल होने के लिए उन्होंने अपने देश को युद्ध की आग में झोंक दिया, अब उसी नाटो ने यूक्रेन को शामिल करने से इन्कार कर दिया है। जिस नाटो में शामिल होने के लिए जेलेन्स्की बेकरार थे, आज उसी नाटो को अमरीका छोड़ने की धमकी दे रहा है। बिना अमरीका के नाटो का कोई मतलब नहीं है, यही कारण है कि अब ज़ैलेंस्की यूरोपीय देशों को अपना नाटो बनाने की सलाह दे रहे हैं ।
अभी तक ज़ैलेंस्की यूरोप और अमरीका के भरोसे थे लेकिन अमरीका में सत्ता परिवर्तन होते ही हालात एकदम विपरीत हो गए हैं। जो बाइडन यूक्रेन युद्ध के ज़रिये रूस को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ट्रम्प की सोच इससे अलग है।
अमरीका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने कहा था कि अमरीका का दुश्मन होना खतरनाक है, लेकिन अमरीका का दोस्त होना उससे भी ज्यादा खतरनाक है। यह बात आज यूक्रेन और यूरोप के लिए सच साबित हो रही है। पश्चिमी मीडिया ने अभी तक यह प्रचारित किया है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है और यूक्रेन अपनी रक्षा कर रहा है, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प ने इस झूठ का पदाफाश कर दिया है। सच यह है कि नाटो ने ज़ैलेंस्की को उकसाकर रूस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि रूस के पास यूक्रेन पर हमला करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। रूस ने यह युद्ध यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए शुरू किया था। इसके अलावा यूरोपीय देश यह मानते थे कि अगर रूस को रोका नहीं गया तो रूस यूरोप पर भी हमला कर सकता है। यूरोप अभी भी अपनी पुरानी सोच पर चल रहा है, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प का अमरीका मानता है कि युद्ध का कारण यूक्रेन की नाटो में शामिल होने की जिद्द है।
ट्रम्प का कहना है कि अमरीका ने यूक्रेन को बचाने के लिए बहुत पैसा खर्च किया है। अब यूक्रेन को इसकी भरपाई करनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति ज़ैलेंस्की को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अमरीका को यूक्रेन के सभी प्राकृतिक संसाधनों में आधा हिस्सा चाहिए। इसके लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने बाकायदा एक ड्राफ्ट एग्रीमेंट बनाकर यूक्रेन को दिया है और कहा है कि इस पर विचार किया जाए। अमरीका चाहता है कि यूक्रेन से जितने भी प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात किया जाए, उसमें से पहले अमरीका का आधा हिस्सा निकाला जाए। इसके बाद अमरीका ही तय करे कि वह उन संसाधनों को खरीदेगा या नहीं, अगर अमरीका नहीं खरीदता है तो ही उन्हें दूसरे देशों को भेजा जाए। देखा जाए तो अमरीका यूक्रेन की मदद के बदले हर्जाना चाहता है। अमरीका ने यह भी कहा है कि अगर यूक्रेन चाहता है कि अमरीका उसकी मदद आगे भी जारी रखे तो उसे अमरीका की शर्तें माननी ही होंगी। इस ड्राफ्ट एग्रीमेंट में कहा गया है कि यूक्रेन की जो भी आय होगी, उसमें से पहले अमरीका का हिस्सा अलग किया जाएगा। उसके बाद ही यूक्रेन उस पैसे का इस्तेमाल कर सकता है।
वास्तव में ज़ैलेंस्की ने रूस से बचाव के लिए खुद ही अमरीका के सामने ऐसा प्रस्ताव रखा था, जिसमें यूक्रेन में मौजूद बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों में कुछ हिस्सा अमरीका का भी होगा। उनका मानना था कि ऐसा करने से रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा, क्योंकि इससे अमरीका का नुकसान होगा। दूसरी तरफ ज़ैलेंस्की ने यूरोप और अमरीका को यह डर भी दिखाया कि अगर यूक्रेन को नहीं बचाया गया तो इन संसाधनों पर रूस का कब्ज़ा हो सकता है। अब ज़ैलेंस्की की चाल उल्टी पड़ गई है। ट्रम्प ने आधा हिस्सा मांग लिया है जिसे ज़ैलेंस्की कभी स्वीकार नहीं कर सकते। देखा जाए तो अगर यूक्रेन अमरीका की यह मांग मान लेता है तो वह एक तरह से अमरीका का आर्थिक उपनिवेश बन जायेगा और उसका पुनर्निर्माण भी मुश्किल हो जाएगा। रूस ने यूक्रेन को बहुत नुकसान पहुंचाया है। युद्ध रुकने के बाद यूक्रेन की पहली ज़रूरत होगी कि वह अपने देश का पुनर्निर्माण करे। सवाल उठता है कि जब यूक्रेन अपनी आधी कमाई अमरीका को दे देगा तो वह अपना पुनर्निर्माण कैसे करेगा।
अब यूक्रेन की हालत ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ वाली हो गई है। अब अगर यूक्रेन अमरीका की बात मानता है तो बर्बाद होगा और अगर नहीं मानता है तो भी बर्बाद होगा। यूरोप आज भी यूक्रेन के साथ खड़ा नज़र आ रहा है, लेकिन बिना अमरीका के रूस को रोकना यूक्रेन के लिए मुश्किल होगा। रूस ने यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है और यह कब्ज़ा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । अगर अमरीका यूक्रेन को वार्ता से बाहर रख कर रूस से कोई समझौता कर लेता है तो यूक्रेन के हितों की सुरक्षा कैसे होगी? इसकी गारंटी कौन लेगा कि समझौता होने के बाद रूस यूक्रेन के अन्य इलाकों पर कब्ज़ा नहीं करेगा? इसके अलावा सवाल यह भी है कि यूक्रेन के जिन इलाकों पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है, उन्हें वापिस दिया जायेगा कि नही? अब देखने वाली बात यह होगी कि इस युद्ध का अंत कैसे होता है और युद्ध के बाद हालात क्या मोड़ लेते हैं। (युवराज)