ज़रूरी है ट्रम्प के आरोपों की जांच
अमरीका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने लगातार अपनी बेबाक टिप्पणियों के साथ एक तरह से दुनिया भर में हड़कंप मचा दिया है। वह रूस-यूक्रेन युद्ध संबंधी बयानों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उनके प्रतिनिधियों ने इस संबंधी रूस के प्रतिनिधियों के साथ सऊदी अरब में विस्तारपूर्वक बातचीत भी की है। इस बातचीत में यूक्रेन को शामिल नहीं किया गया और न ही तीन साल की इस लड़ाई में उससे बड़े गुट बनकर खड़े यूरोपियन यूनियन के देशों को ही विश्वास में लिया गया है। शुरुआती यह बातचीत न तो यूक्रेन को स्वीकार है और न ही यूरोप के देशों को। इसी प्रकार वह इज़रायल-हमास के युद्ध को खत्म करवाने के लिए भी अपना ही दो टुक फैसला सुनाकर एक अजीबो-गरीब और नई स्थिति पैदा करने के लिए जल्दबाज़ी में हैं।
एक तरफ ट्रम्प भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दोस्ती का दम भरते हैं और दूसरी तरफ न सिर्फ उन्होंने गैर-कानूनी भारतीयों को वापस भेजने की जल्दबाज़ी की है, बल्कि एक प्रकार से उनको जलील भी किया है। व्यापार संबंधी आपसी टैक्स दरों के मामले में भी वह अपनी घोषित नीति में टस से मस नहीं हुए।
अब उन्होंने भारत को मतदाता बढ़ाने (वोटर टर्न आऊट) के नाम पर दिए जाने वाले फंडों के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया है, इससे पहले उन्होंने अपने से पहले जो बाइडन प्रशासन पर इसलिए आरोप लगाया है कि दी गई लगभग ऐसी 182 करोड़ रुपये (21 मिलियन डॉलर) की सहायता एक तरह से रिश्वत थी। इस संबंधी ऐसा बयान उन्होंने तीसरी बार दिया है। भारत की राजनीति में इन बयानों को लेकर एक तरह से राजनीतिक हड़कंप मच गया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन बयानों को चिंताजनक करार दिया है। इनको भारत के अंदरूनी मामलों में अमरीकी दखलअंदाज़ी भी कहा जाने लगा है। इस संबंधी भाजपा और कांग्रेस में एक सख्त शाब्दिक जंग भी छिड़ गई है और उन्होंने भी एक-दूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिये हैं। भाजपा द्वारा यह आरोप लगाया गया है कि यह फंड पिछले अमरीकी जो बाइडन प्रशासन द्वारा भारत पर राजनीतिक असर डालने के लिए यह फंड दिये गये थे। दूसरी ओर कांग्रेस ने यह आरोप लगाया है कि मोदी सरकार की सभी एजेंसियों को यदि इतनी बड़ी राशि का भारत आने पर पता नहीं चला तो यह उसके लिए नमोशी की बात है। कांग्रेसी नेताओं ने यह भी कहा है कि इस संबंधी सरकार को जल्द ही एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए।
एक अखबार ने इसे उस समय के चुनावों के दौरान बांग्लादेश के लिए जारी की गई राशि कहा है। ट्रम्प ने यह भी कहा कि वह अमरीकियों का पैसा दूसरे देशों को सहायता देने के लिए खर्च नहीं करेंगे और इसे रोकेंगे। जहां तक अमरीकी सहायता का संबंध है, विगत लम्बे समय से विश्व के अनेक देशों को किसी न किसी रूप में यह मदद दी जाती रही है। इस समय अमरीका की सरकारी एजेंसी द्वारा विश्व भर में लगभग 4211 करोड़ रुपये (486 मिलियन डॉलर) की राशि दी जा रही है, जिसमें बांग्लादेश, नेपाल, कम्बोडिया, सर्बिया तथा अन्य बहुत-से देश शामिल हैं। यह सहायता एजेंसी जॉन एफ. कैनेडी के राष्ट्रपति होते हुए शुरू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य तीसरी दुनिया के देशों को सहायता देना था और ऐसा करके अमरीकी प्रशासन उस समय सोवियत यूनियन के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहता था। भारत को भी कई अन्य उद्देश्यों के लिए ऐसी राशि उपलब्ध करवाई जाती रही थी, परन्तु किसी अमरीकी प्रशासन द्वारा भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऐसी राशि दी जाती रही हो, यह बेहद हैरान करने वाली तथा भारतीय लोकतंत्र को ठेस पहुंचाने वाली बात कही जा सकती है। देश में इस संबंधी जो बड़ा विवाद शुरू हुआ है, उसके उस समय तक खत्म होने की सम्भावना नहीं है, जब तक इसकी वास्तविकता सामने नहीं आती। अमरीका जैसे शक्तिशाली देश द्वारा यदि ऐसी राशि भारत में किसी भी पक्ष को दी जाती रही है तो यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में घुसपैठ करने का शर्मनाक घटनाक्रम है। हम सरकार से यह उम्मीद करते हैं कि वह हर हाल में इस समूचे घटनाक्रम का विवरण प्राप्त करके देशवासियों को इससे अवगत करवाए। जिस प्रकार का ट्रम्प ने रवैया अपनाया हुआ है, उसे देखते हुए यह ज़रूर प्रतीत होने लगा है कि अमरीकी राष्ट्रपति ऐसी मानसिकता एवं दृष्टिकोण को यदि अपनाए रखते हैं तो उस हालात में भारत के साथ उनके संबंध पहले जैसे सुखद नहीं रहेंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द