निर्वासितों के साथ अमरीका का अमानवीय व्यवहार
अमरीका भारतीय व अन्य देशों के अवैध प्रवासियों की वापसी न केवल हथकड़ियां-बेड़ियां डालकर कर रहा है, बल्कि प्रवासियों उपहास भी कर रहा है। 41 सेकेंड के वायरल हुए एक वीडियो में सैन्य विमान और खनखनाती हथकड़ियों की अवाज़ें सुनाई देती हैं। यह वीडियो व्हाइट हाउस ने अपने एक्स अकाउंट पर साझा किया है। इसकी कैप्शन है ‘एएसएमआर : अवैध विदेशी निर्वासन उड़ान।’ इस पोस्ट के बाद ट्रम्प के करीबी अरबपति सहयोगी एलन मस्क ने इस वीडियो को फिर से पोस्ट करते हुए दयनीय स्थिति से गुज़र रहे निर्वासितों का उपहास किया। मस्क ने लिखा, ’हा हा हा...! मज़ा आ गया।’ इस वीडियो की पृष्ठभूमि में संगीत बज रहा है। मस्क इस समय सरकारी दक्षता विभाग के सह-अध्यक्ष भी हैं, अतएव उनका यह लहज़ा गरिमा के अनुकूल कतई नहीं कहा जा सकता है। इस वीडियो की दर्शक तो आलोचना कर ही रहे हैं, मानवाधिकारों के हितों से जुड़ी एजेंसियां भी नाराज़गी जता रही हैं। एक्स उपभोक्ता तो यहां तक कह रहे है कि ‘यह घृण्ति और अमानवीय है। अगर आपको लगता है कि यह मज़ाकिया वीडियो है तो यह आपकी मनोदशा को दर्शाता है। आपके इस आचरण से बहुत कुछ पता चलता है।’ मस्क को आड़े हाथों लेते हुए एक उपभोक्ता ने कटु टिप्पणी करते हुए लिखा है, ‘निर्वासित होने वाले बेड़ियों में जकड़े हुए अप्रवासियों के वीडियो पर हंसना आपकी दयनीय सोच को प्रकट करता है।’
अब तक अमरीका अनेक देशों के कुछ प्रवासियों को स्वदेश लौटा चुका है। निर्वासितों को हथकड़ियां व बेड़ियां लगा कर भेजने पर दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता अमरीका की पक्षपात पूर्ण मानसिकता पर तीव्र टिप्पणी कर रहे हैं। दूसरी तरफ अब रूस और चीन के लगभग 3 लाख प्रवासियों को यात्री विमानों से भेजा जा रहा है। दुनिया जानती है कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रवासी मुक्त अमरीका के मुद्दे पर चुनाव जीते हैं। इसलिए अमरीका में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के दावों के बावजूद अवैध प्रवासियों का उपहास अमरीका के प्रतिष्ठित लोगों के साथ ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के कार्यकार्ता भी मज़ाक उड़ाते हुए अनर्गल कटाक्ष कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि अमरीका में मानवीयता व समता के दावे खोखले हैं।
ट्रम्प ने अब बिना वैध दस्तावेज़ वाले विदेशी नागरिकों का सामूहिक निर्वासन लक्ष्य बनाया हुआ है। प्यू रिसर्च सेंटर 2022 के आंकड़ों के अनुसार अमरीका में लगभग 7,25,000 भारतीय अवैध प्रवासी के रूप में रह रहे हैं। अमरीका प्रथम की मानसिकता के चलते अन्य देशों के अवैध प्रवासी भी निकाले जा रहे हैं। अमरीका के इस अमानवीय व्यवहार पर सर्वोच्च न्यायालय के वकील वीरेंद्र वषिश्ठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर अमरीका से निर्वासित किए गए भारतीय प्रवासियों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार पर चिंता जताई है। पत्र में लिखा है कि निर्वासित भारतीयों को पूरी यात्रा के दौरान हथकड़ी-बेड़ी में रखा गया, मानो वे पेशेवर अपराधी हों, जबकि उनका एकमात्र अपराध अवैध प्रवास रहा है। इस तरह की कठोर प्रक्रिया से इन लोगों को शारीरिक दर्द और मानसिक आघात झेलना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार नियमों के अनुसार गैर-हिंसक व्यक्तियों पर इस प्रकार का बल प्रयोग अनुचित है। बिना किसी सुरक्षा संबंधी खतरे के निर्वासित लोगों को हथकड़ियों और बेड़ियों में रखना अपमानजनक, अमानवीय एवं असंगत व्यवहार था।
वैश्वीकरण और बाज़ारवाद जैसी वजहों से अमरीका तथा अन्य पश्चिमी देशों के प्रति भारत समेत अन्य एशियाई देशों के लोगों का रुझान नौकरी, व्यवसाय और उच्च शिक्षा के लिए बढ़ा है। कई यूरोपीय देशों की डूबती अर्थव्यवस्था को संवारने का आधार विदेशी लोगों के काम और शिक्षा बन रही है। इस कारण शिक्षा के व्यापारीकरण और बाज़ारीकरण को अमरीका जैसा सख्त मिज़ाज देश भी प्रोत्साहित कर रहा है। अमरीका में ड्राइवर जैसी नौकरी में भी लाखों का वेतन मिलता है, इसलिए भारत के युवा अपने परिजनों की जीवन भर की पूंजी दांव पर लगाकर डंकी रूट के ज़रिए अमरीका जाते हैं। यह डंकी रास्ता एक ऐसा अवैध रास्ता है, जिसके माध्यम से लोग बिना किसी वैध वीजा एवं दस्तावेज़ों के ज़रिए किसी दूसरे देश में दाखिल हो जाते हैं। इस मार्ग के ज़रिए मुख्य रूप से लोग अमरीका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे चमक-दमक वाले देशों में जाते हैं। पहले इस रास्ते से केवल आपराधिक मानसिकता के लोग जाया करते थे, लेकिन अब विदेश जाने का यह मार्ग बेहतर जीवन जीने का सपना माना जाने लगा है। पंजाब में इस रास्ते से इन देशों में पहुंचाने के लिए बाकायदा एजेंट हैं, जिनके विभिन्न शहरों में दफ्तर खुले हुए हैं। ये एजेंट नकली दस्तावेज़ भी तैयार करा देते हैं। इनकी विदेश पहुंचाने की शुल्क 30 लाख से लेकर 60 लाख रुपए तक होती है। इस राशि को एकत्रित करने में विदेश जाने की इच्छा रखने वाले युवा अपनी पैतृक संपत्ति बेचने में कोई संकोच नहीं करते। अनेक अवैध प्रवासियों की स्वदेश वापसी ने उन्हें कंगाल बना दिया है।
विदेशी नौकरी ही नहीं शिक्षा पाने के भी भारतीय युवा इच्छुक हैं, लेकिन शिक्षा का भी नकली जाल इन देशों में फैला हुआ है। कुछ साल पहले कैलिफोर्निया जैसे मशहूर शहर में एक पूरा का पूरा फर्जी विश्वविद्यालय वजूद में आया था। यह विश्वविद्यालय बाकायदा विज्ञापन देकर विदेशी छात्रों को रिझाने में वर्षों से लगा हुआ था। बाद में पता चला कि विश्वविद्यालय फर्जी था। वह उच्च शिक्षा के बहाने विदेशी मुद्रा कमाने के गोरखधंधे में लगा था। विदेशी शिक्षा की मृगतृष्णा ने हज़ारों भारतीय व एशियाई देशों के छात्रों के भविष्य पर ग्रहण तो लगाया ही, वहां की सरकार ने भारतीय छात्रों के साथ अमानवीय व्यवहार भी किया था। कमोबेश ऐसा आचरण जंगली जानवरों पर निगरानी रखने के लिए वनाधिकारी अपनाते हैं। अमरीकी अधिकारियों ने इसे धोखाधड़ी का मामला मानते हुए छात्रों को दोषी माना था, जबकि संस्था को पूरी तरह से दोषी माना चाहिए था। यह कार्रवाई अमरीका के उस मुखौटे का प्रतीक है, जिसके पीछे नस्लभेदी मानसिकता काम करती है। दुनिया को मानवाधिकारों की सीख देने वाला अमरीका खुद कितना मानवाधिकारों का हितैषी है, उक्त घटना और अब अवैध प्रवासियों के साथ दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार से स्पष्ट हो जाती है।
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