बजट पर भारी पड़तीं मुफ्त की योजनाएं
केंद्र एवं राज्य सरकारें जब भी बजट पेश करती हैं, उनके सामने आगामी चुनाव छाया की तरह नज़र आता है। सरकारों को शायद अब इस बात की चिंता बिल्कुल नहीं रह गई है कि मुफ्त की योजनाएं चलाने से खज़ाने पर पड़ने वाले बोझ की भरपाई कहां से हो पाएगी। मुफ्त योजनाओं को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी नसीहत दे चुका है और अनेक अर्थ शास्त्री मुफ्त योजनाओं को लेकर समय-समय पर सावधान करते रहे हैं, परन्तु हर सरकार चुनावी समीकरण को ध्यान में रखते हुए न केवल पहले से चल रही मुफ्त की योजनाओं को जारी रखने का प्रयास करती हैं, बल्कि कुछ नई योजनाएं भी घोषित करती देखी जाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का इस वर्ष का बजट इसका ताज़ा उदाहरण है। वहां पहले से विद्यार्थियों, खासकर छात्राओं को मुफ्त लैपटाप, टैबलेट, मोबाइल फोन आदि बांटने की योजना चल रही हैं। अब 25-26 के बजट में मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी बांटने के लिए चार सौ करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। 8 लाख, 8 हज़ार, 736 करोड़ रुपए के इस बजट में पिछले वर्ष की तुलना में 9.8 फीसदी अधिक धन का प्रावधान किया गया है। मगर बजट का काफी बड़ा हिस्सा मथुरा, वृंदावन और मीरजापुर जैसी जगहों पर धार्मिक गलियारों के विकास, मंदिरों के जीर्णोद्धार-पुनरुद्धार और द्रुतगामी मार्गों के लिए आबंटित किया गया है। पहले से चल रही लखपती दीदी जैसी योजनाओं का दायरा और बढ़ाने के लिए बड़ी राशि आबंटित की गई है।
बजट सरकार एवं सरकारों के कामकाज का आईना होते हैं। बजट संकेत देता है कि कोई सरकार अगले एक वर्ष में क्या काम करने जा रही है और उसकी प्राथमिकता क्या होगी। जनअपेक्षा की जाती है कि सरकारें जनकल्याण और सामाजिक कल्याण के कार्यों पर अधिक खर्च करें। ऐसी योजनाओं को प्रोत्साहित करें, जिससे राज्य और देश के आर्थिक विकास को बल मिले जबकि मुफ्त की योजनाओं का व्यापक अनुभव यही रहा है कि वे अनुत्पादक साबित होती हैं। उनसे सरकार पर वित्तीय बोझ ही बढ़ता है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में कहा कि सरकारें मुफ्त की योजनाएं चला कर लोगों को अकर्मण्य बना रही हैं। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने बजट में 400 करोड़ रुपए मुफ्त स्कूटी बांटने के लिए आबंटित किए हैं, तो ज़ाहिर है, उसका मकसद अगले चुनाव में लोगों को आकर्षित करने का है, इसके कोई उत्पादक नतीजे नहीं निकलने वाले। सरकार ने उच्च शैक्षिक संस्थानों और राज्य विश्वविद्यालयों में आधारभूत ढांचा मज़बूत करने के लिए महज पचास करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। नए बन रहे महाविद्यालयों के लिए भी पचास करोड़ रुपए तय किए हैं। उत्तर प्रदेश में शिक्षा के स्तर को लेकर अनेक बार अंगुलियां उठती रही हैं। बोर्ड परीक्षाओं में नकल, प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चाफोड़ और अनियमितताओं आदि को लेकर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में अगर मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी दे भी दी जाए, तो उनके जीवन में कितना बदलाव आ जाएगा, कहना मुश्किल है। अगर शिक्षा का स्तर सुधारने को लेकर सरकार सचमुच संजीदा होती, तो वह शैक्षिक संस्थानों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने, विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक सुविधाएं बेहतर बनाने, स्कूल-कालेजों में अध्यापकों के खाली पदों पर भर्ती आदि पर ज़ोर देती। स्कूटी, लैपटाप, टैबलेट, मोबाइल जैसे साधन देने से वास्तव में उन्हें कितना लाभ मिलेगा, इसका आकलन शायद नहीं किया गया।
मुफ्त योजनाओं पर यह सवाल दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही खड़ा किया था, जब कांग्रेस ने कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में भी महिलाओं और नौजवानों के लिए ऐसे ही वादे किए थे। हिमाचल में कांग्रेस ने दस चुनावी वादे किए थे। तीनों जगह महिलाओं और नौजवानों को लुभाने के लिए उन्हें हर महीने भत्ता देने का वादा हुआ। कह सकते हैं, पार्टी को इसका फायदा भी मिला, लेकिन तेलंगाना में केसीआर और आंध्र में जगन मोहन रेड्डी अपनी सरकारों की कल्याणकारी योजनाएं गिनाते रह गए और वोटरों ने उनका साथ नहीं दिया, जबकि मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत में ऐसी ही योजनाओं की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। राज्यों के चुनाव को छोड़ भी दें, तो देश की राजनीति में किसान सम्मान योजना, मुफ्त रसोई गैस, मुफ्त शौचालय, मुफ्त घर और मुफ्त अनाज योजना ने जो भूमिका निभाई है, उसे भला कैसे नज़रअंदाज करेंगे? नोबेल विजेता अर्थशास्त्री भी अब कह रहे हैं कि आने वाले वक्त में सबके लिए काम जुटाना संभव नहीं होगा, ऐसे में सरकारों को न सिर्फ गरीबों को मदद देने, बल्कि बिना उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाए मदद का इंतजाम करना पड़ेगा। केंद्र या राज्य सरकारों का हाल देखें, तो वे मदद पहुंचाने में अपना भी राजनीतिक फायदा देख पा रही हैं। सम्मान का सवाल अभी केंद्र में आ नहीं पाया है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार इकलौती नहीं है, जो ऐसी मुफ्त की योजनाओं पर ज़ोर दे रही है, ज्यादातर राज्य सरकारों ने यही नीति अपना रखी है।